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Kumar Naveen

Inspirational

5.0  

Kumar Naveen

Inspirational

खुद को भी विक्रय

खुद को भी विक्रय

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नैतिकता की गर बात करें,

दिल बार-बार कहता ही है।

सर्वस्व समर्पण जो कर दे,

वो माता और पिता ही है।।


अपने आँचल से पोंछ-पोंछ,

अपनी थपकी से ठोक-ठोक।

बचपन की कोमल आँखों में,

जो लोरी गाकर निद्रा भर दे,

वो माता और पिता ही है।।


अपने कंधों पर उठा-बिठा,

अपनी गोदी में लिटा-पिटा।

अपने बच्चों के हर दुख को,

जो हर कर नई खुशी भर दे,

वो माता और पिता ही है।।


अपने सपनों को छोड़-तोड़,

और पाई-पाई को जोड़-जोड़ ।

बच्चों के सुन्दर भविष्य हेतु,

जो खुद को भी विक्रय कर दे,

वो माता और पिता ही है।।


अपने सेहत को मिटा-मिटा,

अपनी ख़ुशियों से हटा-मिटा।

उस बचपन के हठ के आगे,

खुद मेहनत कई गुनी कर दे ,

वो माता और पिता ही है।।


अंत समय भी सोच-सोच,

सिर के बालों को नोंच-नोंच।

बच्चों के सिर पर हाथ फिरा,

आयु का क्षण अर्पण कर दे ,

वो माता और पिता ही है ।।



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