खुद को भी विक्रय
खुद को भी विक्रय
नैतिकता की गर बात करें,
दिल बार-बार कहता ही है।
सर्वस्व समर्पण जो कर दे,
वो माता और पिता ही है।।
अपने आँचल से पोंछ-पोंछ,
अपनी थपकी से ठोक-ठोक।
बचपन की कोमल आँखों में,
जो लोरी गाकर निद्रा भर दे,
वो माता और पिता ही है।।
अपने कंधों पर उठा-बिठा,
अपनी गोदी में लिटा-पिटा।
अपने बच्चों के हर दुख को,
जो हर कर नई खुशी भर दे,
वो माता और पिता ही है।।
अपने सपनों को छोड़-तोड़,
और पाई-पाई को जोड़-जोड़ ।
बच्चों के सुन्दर भविष्य हेतु,
जो खुद को भी विक्रय कर दे,
वो माता और पिता ही है।।
अपने सेहत को मिटा-मिटा,
अपनी ख़ुशियों से हटा-मिटा।
उस बचपन के हठ के आगे,
खुद मेहनत कई गुनी कर दे ,
वो माता और पिता ही है।।
अंत समय भी सोच-सोच,
सिर के बालों को नोंच-नोंच।
बच्चों के सिर पर हाथ फिरा,
आयु का क्षण अर्पण कर दे ,
वो माता और पिता ही है ।।