नव-वर्ष
नव-वर्ष
देव शास्त्र गुरू चरणों में नित,
बीते जीवन सारा..
कहो! कहो! क्या ऐसा होगा..
यह नव वर्ष हमारा ?
एक लक्ष्य हो बस अभेद का,
पूर्ण भाव जीवन अशेष का,
भव भव के सब दुखनि मेटने
सिद्धान्तों के रस विशेष का..
अनुभव के परिपाक स्वाद से
भीगे अन्तस् धारा।
कहो कहो क्या।
तत्वज्ञान की परिचर्चा में,
आगम सम्मत हर चर्या में
विनयवन्त होऊं हर पल रे!
स्वाऽऽभाविक परणति, चर्या में
श्रद्धान स्वयं के चिद्विलास पर
मेटे भव की कारा
कहो कहो क्या
संघ संघटन और समन्वय
त्याग शीघ्र हो निज से अन्वय।
मुक्ति मार्ग के पथिक निराले,
त्रैकालिक ध्रुव से हो समन्वय।
बहुत बिताया अन्धकार में
आज नया उजियारा
कहो कहो क्या।
कर्तव्यों के बोझ छोड़ कर
वैभाविक आधार तोड़ कर
सत्पथ का अनुचरण करें हम
निज को निज से सहज जोड़ कर
जोड़ तोड़ को अब मरोड़ दें
यह संकल्प हमारा, कहो कहो क्या।