मन की धूल
मन की धूल
हररोज मैं अपने मन की झटक के धूल
उठती हूँ उम्मीद से चुनने ख़ुशियों के फूल
के आज तो ये दिन गुजरे बिना शिकायतों के
और मिल जाये कुछ मौके हँसी मजाक के
बैठी थी इंतजार में कोई बदले जिंदगी मेरी
कितनी सोच थी ये मेरी गलत और गहरी
भावनाओं के बाजार में ऐसे फस गयी
ना ठीक से मर पायी और ना जी पायी
रोज अपने मृत मन का बोझ उठाये
अनमोल से लाखों पल उदासी में गवाँये
पर अब बस और नही मेरे दिमाग ने कहा
चल उठ जी ले अपनी हसीन जिंदगी यहा
तुझे हे ऐसे जीना के तू बने एक मिसाल
कर कुछ ऐसा दिखा जा अपना कमाल
दूसरों को बदलने की ना कर कोशिश नाकाम
खुदको बदलने की हर कोशिश आये तेरे काम
आये कितने भी तूफ़ान अंदर बाहर से झुकना नही है
आत्मसम्मान की ढाल से लडनी हर एक लडाई है
जो बातें अच्छी नही लगती कर दे उन्हें तु अनसुनि
फिर देख कैसे बदल जायेगी तेरे जिंदगी की कहानी
रोज नयी सोच लिए कुछ करुंगी जरुर खास
क्यूँ के मेरे ख़ुशियों की डोर है बस मेरे पास
दिमाग़ ने ठान ली है और दिल ने मान ली है
जिंदगी को जीने की सही रीत अब हमे आ गयी है
बस ज़रूरत है रोज मन की धूल झटकने की
और नयी उम्मीद से ख़ुशियों के फ़ूल चुनने की