एक वक्त के बाद
एक वक्त के बाद
एक वक़्त के बाद,
सब कुछ ख़त्म हो जाता है,
वो सूरज जो सुबह में,
उम्मीद की रोशनी लिए जागता है।
शाम होते हीं निराशा की,
बेचैनी से ढल जाता है,
वो लहरें जो चाँद का,
आकर्षण देख उमड़ती है।
साहिल पे आते हीं,
ख़ामोशी के आग़ोश में समां जाती हैं,
वो परिंदे जो आज़ाद हवा में,
आज़ादी के गीत गुनगुनाते हैं।
अँधेरा होते हीं क़ैद की मौनता,
उन्हें घेर लेती है,
वो रास्ते जो अनंत दूरी तक चलते हैं,
मंज़िल आते हीं ठहर जाते हैं।
वो पेड़, वो झरने, वो पहाड़, वो नदियाँ,
क़ुदरत के इशारों पे सिकुड़ जाती हैं,
वो सपने जो तुम हर रोज़ देखा करते हो,
नींद के टूटते हीं कहीं ओझल हो जाते हैं।
वो इश्क़ की आग,
जो तुम अपने सीने में सुलगाये रहते हो,
एक बरसात के बाद हीं बुझ जाती हैं।
वो ज़िन्दगी जिसके लिए,
तुम ज़िन्दगी भर जद्दोज़हद करते हो,
मौत आते हीं इक पल में मर जाती है।
एक वक़्त के बाद,
अगर कुछ नहीं ख़त्म होता,
तो वो है,
'वक़्त'..
मैं 'वक़्त' की चंद पुड़िया,
हमेशा अपने जेब में लिए फिरता हूँ।
और हर रोज़,
सुबह नाश्ते से पहले,
और रात खाने के बाद,
'वक़्त' की दो गोली लेता हूँ,
ताकि..
मैं ज़िन्दा रह सकूँ...