तुम्हारा आना !
तुम्हारा आना !
तुम्हारा आना !
और मेरे अधरों पर लाना मुस्कान,
अपने स्पर्श से पुलकित कर देना मेरा रोम-रोम,
और छेड़ देना हृदय के तार,
किसी सितार की तरह !
तुम्हारा आना !
स्वप्न, आकांक्षाओं, अभिलाषाओं का समंदर,
और मैं,
कभी डूबती कभी तैरती,
कभी साथ-साथ चलती,
उन लहरों के साथ,
तुम्हें बना के अपने आधार की तरह !
तुम्हारा आना !
यानी हँसी, ठहाके और रौनक़,
न समय की मर्यादा,
न पहर का होश,
हर घड़ी कोई उत्सव
किसी त्योहार की तरह !
तुम्हारा आना !
क़िस्से-कहानियों के रतजगे,
और कहानियों के बीच,
एक बेख़बर मासूम सा सच,
मुझे बींधता और तोड़ता,
व्यावहारिकता से मेरे साक्षात्कार की तरह !
तुम्हारा आना !
हँसी और नमी का संगम,
और रिश्तों के रेशम में उलझी मैं,
कभी सुलझाती कभी झुठलाती
कभी झटक देती ज़हन से,
किसी परिहार की तरह !
तुम्हारा आना !
तुमसे भी ख़ास है तुम्हारा आना,
जीवंत करता है मुझे तुम्हारे आने का विचार,
तभी तो फिर से,
जन्मों के प्रेम को,
फिर सींचती, सँवारती !
एक-एक पल सहेजती,
कि कोई याद अधूरी ना रह जाए,
ना रह जाए कोई बात अनकही
कि जाने फिर कब होगा
तुम्हारा आना !