जीत तक संघर्ष
जीत तक संघर्ष
जब तक करते नहीं हम स्वीकार,
तब तक होती नहीं है अपनी हार।
अनवरत करते रहिए नित नव प्रयास,
सफलता का मन में रखिए अटल विश्वास।
रही है जगत की सदा ही यह प्राचीन रीत,
धैर्यवान को सदा है मिली-मधुरता से परिपूर्ण जीत।
ज्योति आशा की सदा रखिए जला कर,
नैराश्य -तम भागेगा तब सिर छिपा कर।
मेघ समस्त निराशा के तो छंट ही जाएंगे,
गीत अंतरात्मा में सफलता के गुनगुनाएंगे।
हर चुनौती को करना है हमको स्वीकार,
तब तक होती नहीं है अपनी हार।
अति विचित्र है विश्व का भी व्यवहार,
अक्सर असफल का हैं करते तिरस्कार।
असफलता के कारणों पर करते विचार,
हुई त्रुटियों का करते हुए पूरा ही सुधार।
सकल बाधाएं मिटे सफलता की इस बार,
तब तक होती नहीं अपनी हार।
घटने मत दीजिए कभी अपना उत्साह,
नवाचार संग ढूंढिए इक नवीन सी राह।
होने दीजिए नयी आशा का सदा ही प्रवाह,
मन में प्रज्ज्वलित रखिए सफलता की चाह।
निश्चित प्रस्फुटित होगा विजय रूपी ज्वार,
जीत में बदल जाएंगी सारी हार।