औरत
औरत
न दो मुझको देवी का दर्जा,
मैं औरत हूँ- औरत ही रहने दो।
आभूषणों से मेरा अलंकार करो न
अन्नपूर्णा का भी पद मुझे दो न,
अपने अधिकार और सम्मान की
अभिलाषा मुझको,
मैं औरत हूँ- औरत ही रहने दो।
सारा जग जन्मा मेरे उर से,
फिर भी कोख में मारी जाती हूँ।
दहेज लोभियों के कारण,
आग में कहीं जलाई जाती हूँ।
शिक्षा से वंचित कर,
घर में दबाई जाती हूँ,
कुछ नामर्दों के एसिड से,
चेहरे गँवा जाती हूँ।
तीन तलाक की धमकी दे कुछ,
अपनी मर्ज़ी कर जाते हैं
इतने अत्याचार करके,
चैन से कैसे रह पाते हैं ?
न दो मुझको देवी का दर्जा,
मैं औरत हूँ- औरत ही रहने दो।।