STORYMIRROR

Manju Saini

Inspirational

4  

Manju Saini

Inspirational

शीर्षक: नव जीवन उत्सर्जन

शीर्षक: नव जीवन उत्सर्जन

1 min
360


करती उद्बोधन प्रकृति मानो

जगा रही मानव को चिरनिंद्रा से

देखो कैसे नव उत्सर्जन फिर से भरता प्राण

न हो सुसुप्त ए वृक्ष तू हो फिर तैयार

सत्य यही कि तुझमे लुप्त न हो जीवन संचार

जागृत कर रही प्रकृति हमको न हिम्मत हार

मत छोड़ उम्मीद कि होगी फिर से भोर

सूखती जड़ से देखा आज मैंने नव जीवन प्रकाश

उमंग देख उस शाख की खुला भ्रम का द्वार

नही मरती प्रकृति में भी नव जीवन की चाह

और चाह होती जहां वही खुलती हैं राह

सूखे दरख़्त के खोखलेपन में पनपी हैं आस

प्रकृति के क्रियाकलाप से बंधी उसकी आस

समूल नष्ट मान उसको किया गया अनदेखा

किंतु फिर भी उसमे हो गया अचानक संचार

विक्षिप्त सी दरख़्त की जड़ फिर हुई प्रफुल्लित

मानो बता रही मानव को मुझमे भी जीने की आस

हरी हुई सूखे दरख़्त की काया भर नव प्राण

नव जीवन उत्सर्जन की उसमे भी थी चाह।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational