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Sunanda Aswal

Abstract Classics

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Sunanda Aswal

Abstract Classics

रंग हरि का हरा

रंग हरि का हरा

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पत्तों पर प्रेम उभरा,

हरी समस्त वसुंधरा ।


शीशा सी ओस पड़ीं,

श्रृंगार कर पाती पर लड़ी।


पिरो मोती नक्काशी आसमानी,

आह...! सौंदर्य सी रानी।


गुनगुनी धूप टपकती ,

अनायास कोंपल खिलती।


मधुर -मधुर भ्रमर गुंजन,

सुमन की चाहत मकरंद।


प्रेयसी शशि रजनी को त्याग,

प्रेम प्रभात संग जाग।


उठा चंचल चितवन ,

तितली -प्रेम चंचल रंगीन।


हृदय से लगाकर अमृत पान,

प्रसून पर बैठे इठलाए तन ।


पंछियों कलरव प्रेम ठोस पांख,

नीड़ पर अडिग साख ।


रश्मि का उद्धरण,

निद्रा राज विराजमान ।


प्रेम कर रहा सियासत,

बदल रहा दिवाकर आहट।


बैरी पिया करवट ले रहा,

ऋतु राग बदल रहा।


आत्मा -परमात्मा मिलन,

ह्दय प्रेम का स्थल मनन।


प्रहर रात्रि का अंतिम न्योता,

दीए माटी का पुनः समझौता।

देहरी पर आस का जलता ,

भोर की दीवाली का दीया टिमटिमाता।


प्रभु राम की अयोध्या नगरी,

दिशाएं गूंजन करे हरी- हरी ..!


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