कुम्हार की माटी
कुम्हार की माटी
माटी कहे कुम्हार से
तू भी तो औरों के लिए बना भगवान,
लाता तू बच्चों के चेहरे पर खुशी,
बनाकर उनके लिए खिलौनों का जहान।
इतराती हूं मैं तेरे,चाके पर घूम घूम कर
जब देता तू मुझको आकार नया
पर हूं तो माटी ही फिर टूटकर माटी ही बन जाऊंगी।
फिर पैरों में रौंद कर चाक पर घूम
एक नया आकार पाऊंगी
फिर एक दबी जुबान से
कुम्हार बोला माटी से
नहीं हूं मैं भगवान,
मैं तो हूं एक अदना सा इंसान
बहुत से लोग तो ना पीते मेरे घर
का पानी भी
फिर क्यों बनाती है तु मुझे भगवान
माटी बोली कुम्हार से
फिर तू एक बात मुझे बता
समझते तुझको छोटा सब
फिर भी तेरी माटी से बने घड़े से करते
अपने जीवन की ख़ुशियों का शुभारंभ
जन्म से लेकर मृत्यु तक का घड़ा तो तू ही बनाता है ।
लोगों की सोच भी बड़ी निराली है
किस बात का अहंकार लिए घूमा करते हैं
पर तू मत घबराना ना घमंड करना
समय का पहिया चलता है
राजा हो या रंक एक़ दिन सब माटी बन जाएगा
और फिर एक कुम्हार उनको अपने पैरों से ही
रौंद कर फिर एक नया घड़ा बनाएगा
और समय का चक्र ऐसे ही चलता चला जाएगा!