फैसला
फैसला
कब तक दुनिया में यही सब चलता रहेगा।
लड़कियां ना तब सुरक्षित थी और ना आज है।
हमने सोचा था निर्भया केस के बाद शायद लोगों में
इंसानियत वापस आ जाएगी।
पर हमने गलत सोचा था।
क्यूंकि जो हैवान होते हैं वो ज्यादा देर तक
इंसानियत का चोला पहनकर रह कहां पाते है।
जिस हैवान ने ये हैवानियत
दिखाते वक़्त एक बार भी नहीं सोचा,
तो उसको सज़ा देने के लिए इतना सोच विचार क्यों?
क्या जो मैं महसूस कर सकती हूं वो नहीं कर पा रहे-क्या
तुम्हारी वो दर्दनाक चीखे कोई नहीं सुन पा रहा,
तुम्हारी वो सेहमी से आवाज़ में मदद मांगना,
तुम्हारा रोना चीखना चिलाना अभी भी
याद करके दिल बैठा जा रहा है,
तुम्हारा ख़ून से भारा जिस्म किसी को नहीं दिख रहा,
तुम्हारे जिस्म पर लगे एक एक घाव पर दवाई तो लगा सकते हैं
और शायद वो ठीक भी हो जाएंगे,
पर तुम्हरे अंदर की तकलीफ़
कोई चाह के भी समझ नहीं सकता,
इतना तड़पा तड़पा के तुम्हे मारा गया है।
अब फैसला लेना होगा
जिस तरह तुम्हे तड़पाया गया है
उस हैवान को भी तड़पा तड़पा के मार डालना चाहिए।
ताकि कोई और मेरे और तुम्हारे जैसी
लड़की के साथ ये ना हो पाएं।