सासू बुला रही है
सासू बुला रही है
संयुक्त परिवार में रह रहे
पति-पत्नी का संवाद ....
पत्नी उवाच -
देखो जी मुझे जाना होगा
सासू बुला रही हैं,
नयी बहुरिया सुन रे जल्दी
कब से चिल्ला रही हैं..!
ना गयी जो बुलावे पर तो
इसको समझेगी वो मान-हानि,
चारो तरफ पीटेगी ढिंढोरा कि
नयी बहुरिया करती मनमानी..!
समझो जरा तुम हालत मेरी
इज्जत दाव पर जा रही है,
देखो जी मुझे जाना होगा
सासू बुला रही हैं..!
पति उवाच-
रुक जाओ तुम मेरी रानी,
इतना क्यों सास से डरती हो..!
डोली चढ़ा कर लाया मैं पर
बात तुम उनकी सुनती हो..!
मेरे अरमानों पर फेर कर पानी,
हर बार निकल तुम जाती हो..
नहीं देता मैं वक्त तुम्हें
फिर उल्टा मुझे सुनाती हो..!
देखो अब ना चलेगा कोई बहाना,
तुम मुझको ना यूँ सताओ..!
बैठो जरा तुम पास मेरे,
कुछ मेरी सुनो कुछ अपनी सुनाओ ..!
दिन भर घुसी रहती हो किचन में,
बहता पसीना पूरे बदन में..
कभी लहसुन कभी प्याज,
कभी महके मसाले दामन में..!
कहाँ गयी वो लिप्सटिक लाली,
क्यूँ बनी फिरती हो तुम काली ..!
थोड़ा कुछ श्रृँगार सजाओ
बनो मेनका पति को रिझाओ,
यूँ दूर-दूर में क्या रखा है
तनिक मेरे तो पास तुम आओ..!
सबकी बातें सुनती हो
बस मुझ पर सितम क्यों ढा रही हो..,
पत्नी बना कर लाया हूँ मैं,
तुम बहु की ड्यूटी निभा रही हो.!
पत्नी उवाच -
क्या करूँ मैं असहाय,
दो तुम ही कुछ सुझाव,
औरत हूँ रोबोट नहीं
लगाऊँ कितने उपाय !
बहू जरा मेरी चाय लाना,
माताजी नीचे फरमा रही हैं ..
अदरक कम और दूध हो ज्यादा,
ज़ायका भी समझा रही हैं..!
कुछ तनिक इधर से उधर हुआ तो,
बात मायके तक पहुँच जाती है..!
अपनी इज्जत का वास्ता देकर,
माँ भी बहू धर्म ही सिखाती है ..!
किस ओर जाऊँ भला,
फँस जाती हूँ मैं बेचारी,
जिसे तुम कहते हो काली,
वह बन गयी है अबला नारी !
मैं लगाऊँ जो लाली लिपस्टिक
सासू जी आँखे दिखाती हैं,
निकल खड़ी हो जाऊँ बाहर तो
चरित्र पर उँगली उठाती हैं !
वास्ता मायके का देकर
बहू धर्म कर्म सिखाती है ...
जो हो जाये कुछ ऊँच-नीच तो
सब धर्म भूल वो जाती हैं।
आ जाये जब सासू सामने
तुम भी राह बदल जाते हो..
भूल के सारी प्रीत की बातें
पुत्र धर्म ही निभाते हो... !
देखो जी मैं ब्याहता तुम्हारी
तुम संग प्रीत निभाना है..
लेकिन जब से ब्याह के आयी
सबको खूब पहचाना है..
मंत्र भले ये पुराना है..
पर बात सभी ने माना है..
सास-ससुर की सेवा से ही
मुमकिन ससुराल में ठिकाना है।