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तुम्हारा ससुराल Vs मेरा ससुराल

तुम्हारा ससुराल Vs मेरा ससुराल

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जाते हो जब ससुराल तुम प्यारे,

खुल जाते हैं भाग्य तुम्हारे!

तुम पर सब हैं वारे जाते,

बैठ ठाठ से तुम इतराते


सास बढ़ाती तुम्हारी शान,

बनाती नित नये नये पकवान !

ससुर लड़ाते तुमसे गप्पे,

घर निहारते तुम चुप्पे चुप्पे !


भाई बहन करते तुम्हारी सेवा,

रोज परोसते तुम्हे प्लेट भर मेवा !

मानते तुम्हारी हर बात

ना करते तुमसे कोई फरेब,


पर तुम ठहरे कंजूस जीजाजी

ना करते हल्की अपनी जेब !

इतना प्यार सब बरसाते हैं

फिर भी अकड़ तुम दिखाते हो,


हो जाये जो चूक जरा सी

तन के वहाँ से निकल जाते हो


और देखो अब मेरी हालत ,

ससुराल मिला या मिली है आफ़त !

मुर्गों से पहले उठ जाना है,

घर का काम भी निपटाना है!


समय से देनी है चाय की प्याली,

नहीं तो बच्चू मिलेगी गाली!

ननद, देवर भी धौंस जमाते हैं,

अपने फरमान सुनाते हैं,


अगर कर गयी जो मैं अनसुना

ये सासु से चुगली कर आते हैं !

सिर आँखो पर इनको बिठाना है,

सबके नखरे भी उठाना है !


सिर झूका रहे और हो आवाज़ भी नीची,

चूँ से चाँ की भी नहीं अनुमति ,

कर लिया जो मन का कुछ अपने

तो दूसरी सास बन जाता है पति !


देखनी चाही थी सासु में माँ की झलक,

दिखा जो रूप इनका तो झपकी ना इकबारी भी पलक !

कहने को इन्हे माँ बुलाते हैं ,

पर माँ वाले कोई गुण नजर ना आते हैं


बड़ा सासरा, बड़े बड़े लोग,

रोज मिलेगा छप्पन भोग...

ना जाने क्या क्या आस लगाई थी

जब मैं ससुराल में आई थी


पर अब किस्मत को रोती हूँ,

हर रोज़ आधी नींद ही सोती हूँ !

तुम घोड़े बेच कर सोते हो,

फिर क्यूँ हर बात का रोना रोते हो !


अपने ससुराल में तुम मौज़ फरमाते हो ,

मेरे ससुराल की दशा क्यूँ नज़रअंदाज़ कर जाते हो !

वहाँ तुम खाते हो दूध मलाई,

यहाँ मैं करती कपड़ों की धुलाई !


वहाँ तुमको मिलता मक्खन मेवा,

यहाँ मैं करती सासु की सेवा !

वहाँ तुम पर लुटाते मीठे बताशे,

यहाँ मुझ संग होते नित नये तमाशे !


जब भी तुम ससुराल जाते हो,

नेग और तोहफे पाते हो,

मुझे तो घर की लक्ष्मी कह कह कर

सब खोटे सिक्के सा बजाते हो !


क्या तुम्हें नजर नहीं आता है,

या अपनी माँ का खौफ सताता है !

कब तक ओढ़ोगे माँ का पल्लू,

कब तक सीधा करोगे अपना उल्लू !


चलो इक तरकीब सुझाती हूँ,

तुम्हे नया पथ मैं दिखाती हूँ,

तुम मुझे पहुँचा दो मायके मेरे

मैं तुम्हें तुम्हारी माँ के पास छोड़ आती हूँ


फिर ना रहेगी ससुराल की झिक झिक,

ना होगी हमारे बीच कोई खिट पिट,

फिर चैन से मैं भी सो लूँगी

ससुराल का ताना तुम्हें कभी ना दूँगी


इतना सुनते ही धीरज का धीरज खोने लगा ,

उसे शत प्रतिशत यकीन हो गया कि

काजल अब बगावत के मूड मे है तो वो

झट से काजल के पास आ कर बोला-


कहीं ना जाना जान, तुम तो हो मेरी प्रिये,

तुम्हारे बिना तुम्हारा पति भला कैसे जिये !

हर काम में हाथ बटाऊँगा,

सुबह ना जल्दी उठाऊँगा


अब ना दूँगा ससुराल का ताना,

मुझे छोड़ मायके मत जाना !!!

धीरज की बातें सुन काजल भी मन ही मन मुस्काई

चल देर से ही सही पर बात तो समझ में आई !!




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