अलविदा
अलविदा
हर लम्हा जिसके संग बांटी है ख़ुशी
हर लम्हा जिसने मुझको दी है हंसी
कैसे भूलूँ उसको
कैसे कर दूँ खुद से अब जुदा
कैसे कह दूँ
इन लम्हों को
अलविदा
दूर होने की सोचता भर हूँ
तो आँखें यह मेरी भर आती हैं
बढती हुई दूरी हर लम्हा मुझे
जाने क्यूँ ऐसे डराती हैं
न जाने क्यूँ हूँ मैं इस लम्हे पे फ़िदा
कैसे मैं कहूँ अलविदा
की जो मेहनत वो जाग जाग कर
सपने थे बनाये वो जो भाग भाग कर
अधूरे छोड़ कर क्यूँ है जाना अब उन्हें
जाने मेरे मौला तेरी कैसी है सदा
कैसे अब यूँ छोडूं
कैसे कह दूँ अलविदा
वो जिनके संग हर शाम कटती है
वो जिनसे मेरी ज़िन्दगी हंसती है
कैसे बनाऊं उनको याद , जो आज वक़्त मेरे है
इस वक़्त के ज़िन्दगी पे कितने पहरे हैं
नाराज़ नहीं हूँ पर हाँ हैरान हूँ
इस वक़्त के सवालों से परेशान हूँ
जाने कैसी है इस वक़्त की सदा
नहीं जाना मुझको दूर
नहीं कहना अलविदा
ए वक़्त इतना तो हक है मुझको
कि दे एक मौका तू
नहीं चाहता यूँ जाना
न ही कोई है बहाना
जाने क्यूँ यूँ कहना पड़ता है
अलविदा