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Nikhil Sharma

Abstract

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Nikhil Sharma

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खामोश सिपाही

खामोश सिपाही

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चुपचाप काम अपना करते हैं 

न ज़िक्र थकन का करते हैं 

खामोश सिपाही वतन के ये 

ज़िन्दगी रोशन किया करते हैं 


उम्मीद यहाँ जब बेबस है 

दुश्मन दिखता नहीं है , चौकस है 

खामोश सिपाही वतन के ये 

ज़िन्दगी बचाया करते हैं 


भूख से कोई जो गुमसुम है 

घरों में बंद जब हम तुम हैं 

खामोश सिपाही वतन के ये 

भूख मिटाया करते हैं 


लाचार हुई है इंसानियत जो 

ये हिम्मत संजोया करते हैं 

सरहद पर नहीं है तो क्या 

खामोश सिपाही वतन के ये 

फ़र्ज़ से वतन बनाया करते हैं।


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