कालरात्रि
कालरात्रि
माता कालरात्रि
सप्तमी को करते पूजा माता कालरात्रि की,
रंगत जिनकी रात के अंधेरे से भी अधिक काली,
बिखरे बालों के संग दिखती हैं बड़ी ही भयंकर,
किंतु कृपादृष्टि हो जाए तो हैं बड़ी शुभकारी।
पहनती गले में बिजली सी चमकती हुई माला,
रूप माँ होता ये, तीन- तीन नेत्रों वाला।
पूरे ब्रह्मांड समान दिखते हैं गोल गोल नेत्र,
चमकीली ऐसी, मानो बिजली निकल रही हो।
श्वास- प्रश्वास उनका करता है बहुत शोर,
नाकों से फैलाती अग्नि ज्वाला चहूँ ओर।
चार हाथों वाली होती हैं कालरात्रि माता,
बाएँ हाथों में संभालें लौह काँटा व कटार
हो कर आती, माता इक गद्हे पर सवार,
करती हैं दुष्टों पर वो भरपूर रूप से वार।
भूत प्रेत, दानव, राक्षस दैत्य जो भी हो,
करते ही माँ का स्मरण, भागता नर्क की ओर।
जब कभी भी जीवन में कोई भी भय सताए,
सुख- चैन से जब कभी आप जी न पाएँ।
शुरू कर दें उपासना माता कालरात्रि की,
कभी फिर जल, जंतु, शत्रु आदि से भय न होगी।
हे जगप्रसिद्ध माता कालरात्रि और अम्बे,
‘रीता’ करती है आपको बारंबार प्रणाम।
हे माता हमारे देश और इस जग को ,
अब राक्षस ‘कोरोना’ का भय किसी को न हो।
