मंजिल तक
मंजिल तक
कहते हैं किसी को जमीन, किसी को आसमॉं नहीं मिलता,
मिल जाता, गर स्वयं पर विश्वास और सतत अभ्यास होता।
जैसे शरीर स्वस्थ एवं पुष्ट रखने को व्यायाम आवश्यक है,
वैसे ही मन एवं बुद्धि के विकास को अभ्यास आवश्यक है।
जन्म के वक़्त कोई भी व्यक्ति, सर्वगुण सम्पन्न नहीं होता,
और न ही कोई इंसान ज्ञान का भंडार लेकर पैदा होता है।
जीवन में हर इंसान परिश्रम एवं अभ्यास से आगे बढ़ता हैं,
ज्ञान एवं कार्यकुशलता अर्जित कर मंजिल तक पहुँचता है।
चलना, गिरना, उठकर फिर चल देना और चलते रहना,
रास्ते का ध्यान किये बिना मंजिल की तरफ बढ़ते रहना।
धीमे पर निरंतर चलकर ही कछुआ लक्ष्य तक पहुंचता है,
सतत अभ्यास से बेबकूफ भी, कुशलता प्राप्त करता है।
बार २ एक ही काम में निपुण होने का प्रयास अभ्यास है,
उपलब्धियां और सफलतायें, पाने का रास्ता अभ्यास है।
लक्ष्य पाने तक, आराम या आलस्य से दूरी आवश्यक है,
सॉंसो की रफ्तार संग आशावादी नज़रिया आवश्यक है।
कुछ बड़ा करने के लिये सोच बड़ी होना जरूरी होता है,
सोच के साथ जूनून परिश्रम और धैर्य भी जरूरी होता है।
इंसान खुद पीछे ना हट जाये, तब तक हार नहीं सकता,
जब सब कहें दुष्कर कुछ कर दिखाने का मौका होता है।
“योगी” सपने पूरे करने को, दिन छोटा दिखाई पड़ता है,
मंजिल यूं ही नहीं मिलती, दिल में जुनून जगाना पड़ता है।
थोडा दीवानापन, थोड़े से पागलपन की जरूरत होती है,
जीवन में हानि और लाभ को दरकिनार रखना पड़ता है।