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ARVIND KUMAR

Tragedy

4  

ARVIND KUMAR

Tragedy

!! चासनी के चार दिन !!

!! चासनी के चार दिन !!

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कुछ अद्भुत लीला है जग की,

यह माया है मायाधर की।

जो सोचा था, वह हुआ नहीं

जो होता है, वह पता नहीं

जीवित को भोजन, वसन नहीं

घरबार नहीं, जलधार नहीं

खण्ड खण्ड करके मंगल

जा पहुंचा है अब मंगल पर 

पत्थर से जीवन निकला था,

यह नगरी केवल पत्थर की,

कुछ अद्भुत लीला है जग की,

यह माया है मायाधर की।......(1)


सब मस्त मगन हैं अपने में

कुछ कोठे में, कुछ सरबत में

कुछ चोरी में, कुछ छोरी में

करी चाकरी जीवन भर,

पर कुछ न मिला कटोरी में

चपके हैं बड़बोली में,

जैसी कृति, विकृति वैसी,

यह परिणति पालन पोषण की,

कुछ अद्भुत लीला है जग की,

यह माया है मायाधर की।.....(2)


मिले नहीं उसको कुछ भी

जिसे चाहिए धन, वैभव

विद्या है आधार धनों का

दासी है व्यापार जनों का

निश्चित नहीं अब स्वर्ग किसी का

जिसका कब्जा, राज उसी का

मौका है तो चौका है, मजबूरी नहीं बताने की,

कुछ अद्भुत लीला है जग की,

यह माया है मायाधर की।.......(3)


नदियों पर है सागर का हक

सुंदरियों पर धनवानों का,

आसमान पर बिजली का हक

सीधे पर शैतानों का 

तुम पानी पियो, चलो निकलो

कुछ सोचो समझो फिर बोलो

जो लड़े सिंह की तरह सदा,

जीवन में जीत उसी की,

कुछ अद्भुत लीला है जग की,

यह माया है मायाधर की।......(4)



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