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Jyoti Jaldewar

Classics

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Jyoti Jaldewar

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श्री ज्ञानदेव हरिपाठ

श्री ज्ञानदेव हरिपाठ

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चहूं वेदीं जाण साहीशास्त्रीं कारण । अठराही पुराणें हरिसी गाती ॥१॥

मंथुनी नवनीता तैसें घे अनंता । वायां व्यर्थ कथा सांडी मार्गु ॥२॥

एक हरि आत्मा जीवशिव सम । वायां तू दुर्गमा न भाली मन ॥३॥

ज्ञानदेवा पाठ हरि हा वैकुंठ । भरला घनदाट हरि दिसे ॥४॥


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