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rekha shishodia tomar

Inspirational

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rekha shishodia tomar

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ज़हर

ज़हर

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गर्मियों की छुट्टियों में मायके में बैठी हुई फोन चला रही थी..किसी दोस्त ने एक कट्टर हिंदूवादी ग्रुप का एक पोस्ट व्हाट्सअप पर शेयर किया हुआ था।।

''सच्चे हिन्दू हो तो इस पोस्ट को शेयर करो.."

".........के एक इलाके में मुसलमानों ने खुले आम भारत का झंडा जलाया"

"इस पोस्ट को तब तक शेयर करो जब तक इन गद्दारो को सज़ा ना मिल जाए"

तभी फ़ेसबुक पर एक पोस्ट देखा किसी अल्पसंख्यक कमेटी की ओर से

"मंदिर के प्रांगण में..तथाकथित भक्तो ने महिलायों के साथ बदतमीजी की..हमारी कौम को बदनाम करने वाले अब कहाँ है??"

देख पढ़ कर सर घूमने लगा..तभी फोन बजा..अफशा कॉलिंग.. बेटी की सहेली है।।

बेटी को फोन दिया ,वो बात करने लगी

"हाँ अफशा,हाँ मुझे पता है ईद है..अच्छा, तू घर आई है पर मैं तो नानी के यहाँ आ गई..ठीक है पापा को देदे..हैप्पी ईद..bye"

सोचने लगी बस बच्चो में ही सद्भाव बचा है..बड़े तो मरने मारने पर उतारू है..

तभी बड़ा भाई लंच पर खाना खाने आया.. साथ मे एक बड़ा सा थैला..

मम्मी को देते हुए बोला"मम्मी लो तुम्हारी ईदी आई है..ऑफिस में दे गए थे."

थैले में सेवँई,बादाम,काजू,चिरौंजी, चीनी जैसे सामान थे

मुझे अचानक कुछ याद आया मम्मी से पूछा"इस्लाम अंकल अभी तक आपको ईदी भेजते है..??कितने साल हो गए उन्हें काम छोड़े हुए..मुझे याद है जब मैं 11 साल की थी तबसे दे रहे है..है ना??आज 36 की हो गयी मैं"

मम्मी बोली "हाँ, बेनागा हर साल भेजता है..मैं भी ईद से पहले उसके बच्चो के कपड़े तैयार रखती हूं"

"पर वो तो साधारण वर्कर थे ना?आपको क्यो देने लगे ईदी.?"

"बड़ा छोटा सा कारण है..जब वो आया था उसकी स्थिति बहुत खराब थी..तेरे पापा ने काम पर रखा..कई बार खाना नही लाता था तो मैं दे देती थी..एक दिन बात करते करते पता चला तेरे मामा के गांव के पास का है तो वो भी बहन जी कहने लगा..तब से ईदी देने लगा.."

"हम्म..मतलब काम देने का एहसान उतारते होंगे"

"बेटा काम देना अहसान नही होता..उन्हें फ्री में कुछ नही दिया हमने..बस उसकी आर्थिक स्थिति सुधारने में मदद जरूर की तेरी पापा ने काम से अलग होकर भी..इतने साल बाद भी ईदी भेजने का उस पर कोई दबाव थोड़े ही है"

तभी गेट की कुंडी बजी"गफ्फार अंकल का बेटा ईद की मिठाई देने आया था..पापा ने आगे बढ़कर गले लगाया"

वो बोला "अंकल पापा की तबियत सही नही थी इस बार वो नही आ पाए"

"कोई बात नही बेटा ,उन्होंने फोन किया था"

मम्मी बोली"बेटा चाय बना दूँ ?"

"नही आंटी ,सुबह से मिठाई बाँट रहा हूं..भूख लगी है..खाना खाऊंगा"

मम्मी ने फटाफट लौकी चने की दाल,सलाद,आम की सब्जी और फुल्के थाली में लगाकर दिए

साथ साथ पापा बात करते रहे..

उनके जाने के बाद मैं सोचती रही..ये फ़ेसबुक और व्हाट्सअप पर जो हो रहा है ये कौन लोग है?किस दुनिया के है?

पापा बताते है उनके गांव में एक इलाका मुसलमानों का ही है..वहाँ एक परिवार पीढ़ियों से ना केवल गाय पालता है बल्कि तुलसी का पौधा आंगन में रखता है..

फिर क्यो नई पीढ़ी इतनी जहर बुझी है..क्यो बात बात में हिन्दू मुसलमान होता है..क्यो सालो से रह रहे परिवार के बेटे आतंकी गतिविधि में शामिल हो जाते है..

इस 'क्यो' का जवाब नही है मेरे पास...



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