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AKSHATA SAGGAM

Abstract Romance Inspirational

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AKSHATA SAGGAM

Abstract Romance Inspirational

ये उन दिनों की बात है

ये उन दिनों की बात है

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ये कहानी है उन दिनो की जब १९९० में अनाड़ी मूवी रिलीज हुई थी। ये कहानी है उन दोनों की जिनका रिश्ता बोहोत पवित्र है। बिछड़के भी उनके जीवन में फिरसे मिलना लिखा था। वैसे तो इनकी अरेंज मैरिज है पर मुझे तो ये love story ही लगती है।

क्योंकि आसानी से जो होती है वो तो अरेंज मैरिज होती है और बोहोत मुश्किलों से जो होती है वो तो लव मैरिज होती है। वैसे ही इनका रिश्ता है जो बोहोत मुश्किलों से जुड़ा है। बोहोत मुश्किलें आई है इनके मिलन में पर इनका मिलन तो होना ही था। क्योंकि ऊपरवाला जोड़ियां येसेही नहीं बनाता।

चलो मिलते है अब हमारी कहानी के हीरो से, संजय से। हा इसका नाम है संजय। संजय बोहोत ही सिंपल सा लड़का है। वो बोहोत कम बात करता है। जरासा शर्मिला है। ये जॉइंट फैमिली में रहता है। इसका पूरा नाम है संजय रामदास वासी। ये एक तेलुगु परिवार का लड़का है। जिसका परिवार बोहोत बड़ा है। वो अपने पूरे परिवार के साथ एक बड़े से बाड़े में रहता है। जिसे सब लोग वासी का बाड़ा नाम से जानते है। उन दिनों में ये वासी का बाड़ा बोहोत ही लोकप्रिय था। बोहोत सारे लोग एकसाथ एक छत के नीचे रहते थे। इतना बड़ा और पूरा परिवार एकसाथ रहता था इसलिए ये बाड़ा बोहोत चर्चे में होता था। इनके बाड़े में चालीस लोग एकसाथ रहते थे। संजय के पिताजी नहीं थे। जब संजय छोटा था तभी उसके पिताजी गुजर गए थे। उस बाड़े में संजय के पांच चाचा उनका परिवार और संजय के पांच सगे भाई और चार बहने रहती थी। संजय के बहनों के शादी हो चुकी थी। पर वो भी बाड़े में ही रहते थे। 

संजय उनके परिवार में सबसे छोटा लड़का था। इसलिए वो बोहोत लाड़ प्यार से पला बड़ा था। वासी का बाड़ा इसलिए भी बोहोत जाना जाता था। क्योंकि बोहोत सारी पीढ़ियों से इनका एक ही काम चलता था। इनकी एक पान की दुकान थी। और ये उनके पूर्वजों से थी। सब वासी परिवार के मर्द यहीं काम करते थे। ये उनकी तीसरी पीढ़ी थीं। उनके दादाजी ने इस काम की शुरुवात की थी। और तबसे आजतक वासी परिवार ने ये प्रथा चलाई थी। बोहोत बड़ा और मिलजुलकर रहनेवाला ये परिवार था। संजय पढ़ना चाहता था पर उनके घर के हालात कुछ ठीक नहीं थे। परिवार तो बोहोत बड़ा था पर उसके कारण पैसों की बोहोत कमी थी। संजय को पढ़ाई छोड़कर काम करना पड़ा। वो दसवीं तक ही पढ़ पाया। वो काम करके पढ़ता था वो जब पांचवी कक्षा में था तबसे ही वो अपनी पान की दुकान पर जाया करता था। पर हालात ही कुछ एसे थे की वो दसवीं तक ही पढ़ पाया। संजय को मूवीज देखना बोहोत पसंद था। वो बोहोत सारी मूवीज देखता था। उन दिनों फिल्म के टिकिट के पैसे भी बोहोत कम होते थे जैसे की २ रुपए और ३ रुपए येसे। संजय रोज अपनी दुकान पर जाता था। बड़ी लगन से वो अपना काम करता था। वासी की पान की दुकान उन दिनों बोहोत ही मशहूर थी। थोड़े दिनों बाद संजय के घर में उसकी शादी की बात चल रही थी। संजय को एक रिश्ता आया था। जो मीना का था। मीना के जिजाजी ये रिश्ता लेकर आए थे। क्योंकि उनका वासी की पान की दुकान पर बोहोत आना जाना रहता था।

  चलो अब मिलते है हमारी कहानी की होरोइन से। इसका नाम है मीना। ये भी एक तेलुगु परिवार से है। तेलुगु जाति मतलब पहले सारी तेलुगु की औरते और लड़कियां एक ही काम करती थी बिडिया बनाना। मीना भी बिड़िया बनाती थी। वो बिडियो के कारखाने में जाती थी। दिनभर वहा बिड़िया बनाती थी। मीना भी एक बाड़े में रहती थी। बीरम बाड़ा। ये उनके पूर्वजों का बाड़ा था। मीना का पूरा नाम था मीना पांडुरंग बीरम। मीना एक गरीब परिवार से थी। उसकी चार बहने और दो भाई थे। सारे के सारे कुछ न कुछ काम करते थे घर चलाने के लिए। मीना के दो बड़ी बहनों की शादी हुई थी। मीना के भी पिताजी नहीं थे। मीना अपनी मां और दो भाई और एक बहन के साथ रहती थी। मीना को भी मूवीज देखना बोहोत पसंद था। हफ्ते में वो भी दो तीन मूवीज देखती थी।

और जैसा मैने पहले कहा इन दोनों का रिश्ता बोहोत पवित्र है। ये दोनों पहले भी बोहोत बार मिल चुके थे। जैसे की सिनेमा हॉल में। जब ये एकदुसरे को जानते तक नहीं थे। और एक दिन वो दोनों एक शादी में भी मिले थे। वो थी संजय के बड़े भाई की शादी। वो मिले तो बोहोत बार थे पर एकदूसरे को जानते नहीं थे। संजय उसके चाचाजी के साथ बीरम के बाड़े में जाता था। तब उसे कुछ ऐसा महसूस होता था की कुछ तो है मेरा यहा पे। मुझे यहा फिरसे आना पड़ेगा।

     कुछ तो है मेरा इस जहा में

     मेरा मन ही नहीं जाता कही और पे

     लगता है कुछ होनेवाला है यहां पे

     मिलेगा कोई मेरा अपनासा 

     जो शायद होगा सिर्फ यहां पे

मीना के घर में भी उसके शादी की बात चल रही थी।

मीना के जिजाजी ने मीना के मां से संजय के रिश्ते के बारे में बात की। उन्होंने बताया की लड़का बोहोत अच्छा है। उनकी पान की दुकान है। परिवार बोहोत अच्छा है। उनका अपना बाड़ा है। सब मिलजुलकर रहते है। मीना के मां को रिश्ता अच्छा लगा उन्होंने हा कहदी। संजय के घरवालों को भी रिश्ता और लड़की का परिवार अच्छा लगा। मीना के जिजाजी और संजय के चाचाजी ने मिलकर लड़की देखने का कार्यक्रम तय किया। 

   मीना के जिजाजी के घर पे ये कार्यक्रम हुआ था। दोनों को रिश्ता पसंद था। दोनों ने रिश्ते के लिए हा कहदी। मार्च महीने में दोनों का रिश्ता पक्का हुआ था। फिर दो चार दिनों के बाद मीना और संजय का तिलक हुआ। मीना के घर के पास एक मंदिर था। वही पे दोनों का तिलक हुआ। दोनों परिवार बोहोत खुश थे। तिलक होनें के दो तीन दिन बाद मीना और संजय साथ में एक फिल्म देखने गए। दोनों ने एकसाथ ये पहली मूवी देखी थी। वो मूवी थी बेटा। दोनों की पहचान बढ़ने लगीं दोनों एकदूसरे को चाहने लगे। मुलाकते बढ़ती गई। और फिर चार पांच दिन बाद मीना पहली बार अपने ससुराल गई थी। मीना के ससुराल से नियोता आया था। उसे खाने पे बुलाया था। वो पहली बार वासी के बाड़े में गई थी। मीना के बाड़े में जा के आने के दो तीन दिन बाद संजय की बड़ी चाची का देहांत हुआ। हार्ट अटैक से उनकी मौत हुई थी। पर वो समय थोड़ा पुराना था। सबने उनकी मौत का इल्ज़ाम मीना के ऊपर लगाया। सब कह रहे थे की मीना अपशकुनी है।

उसके बाड़े में आ जाने के बाद ही ऐसा सब कुछ हुआ।  

सब लोगो ने मीना और संजय के शादी से इंकार किया। वो समय थोड़ा पुराना था। उस समय सब अंधश्रद्धा पर बोहोत जादा विश्वास करते थे। इसलिए सब का यही कहना था की ये शादी अब नहीं हो सकती। मीना अपशकुनी लड़की हैं। उस समय संजय की मां और उसकी छोटी चाची ने पंडित जी के पास जाकर उन्हें ये अबे बताया। तब पंडित जी ने कहा की ऐसा कुछ नही होता। जानेवाला जाता ही है। मीना के वजह से कुछ भी नहीं हुआ। जब ये बात संजय के मां ने और चाची ने घर में बताई। तब जाकर फिरसे सारा परिवार शादी के लिए राज़ी हुआ। दस दिनों के बाद शादी की तारीख निकाली। १० नवंबर १९९१ को शादी की तारीख तय हुई। मीना और संजय रोज एकदुसरे से मिलते थे। दोनों को मूवीज देखना बोहोत अच्छा लगता था। इसलिए हर हफ्ते वो दो या तीन मूवी तो पक्का देखते ही थे। थोड़े दिन येसेही बीत गए और फिर थोड़े दिन बाद संजय के चाचाजी गुजर गए। अब सब परिवार के मन में फिरसे वही बात आ गई थी। के ये सबकुछ सिर्फ और सिर्फ मीना के वजह से ही हों रहा हैं। सबने इस बार तय कर लिया के अब वे संजय और मीना की शादी नहीं होने देंगे। संजय बोहोत परेशान था। उसे मीना बोहोत पसंद थी। दोनों को ये शादी करनी थी। पर संजय की बात उसके घर में कोई भी नहीं सुन रहा था। मीना के घरवाले भी बोहोत परेशान थे। संजय ने अपने घरवालों को बोहोत मनाने की कोशिश की पर कोई भी मानने की लिए तैयार नहीं था। आखिर संजय के घरवालों ने शादी तोड़ीदी। वजह यही थी की मीना एक अपशकुनी लड़की हैं। उसके ही वजह से हमारे घर में दो लोगों की मौत हुई। वासी परिवार ने मीना और संजय की शादी तोड़दी। संजय बोहोत ही उदास हो गया था। उसका किसी भी काम में मन नहीं लगता था। और उधर मीना भी बोहोत उदास थी। 

   वो भी कोई काम ठिकसे नहीं कर पा रही थी। उसे लग रहा था की संजय सब ठीक कर लेगा। पर संजय अपने परिवार के खिलाफ नहीं जा सका। इसका मीना को बोहोत बुरा लगा। वो टूट चुकी थी। संजय भी अंदर से पूरा टूट चुका था। दोनों ना तो किसीसे बात करते ना कुछ कहते बस चुप रहते। पांच छह दिन येसेही बीत गए। मीना की मां मीना को एसे उदास देखकर वो भी बोहोत दुखी हो गई। उसने मीना से कहा। तू थोड़ी देर जरा बाहर जाके आ तेरा मन बहल जाएगा। वो बाहर जाने से भी इंकार कर रही थी।पर उसकी मां ने उससे कहा के तू मंदिर जा के आजा। सब ठीक हो जाएगा। थोड़ी देर बाद मीना और उसकी छोटी बहन मंदिर गए थे। और वहां पे मीना को संजय के मंजले भाई मिले। उन्होंने मीना के साथ बात करने की कोशिश की। वो इन सबके खिलाफ थे। वो चाहते थे की मीना और संजय की शादी हो। उन्होंने मीना से माफी मांगी। पर मीना बोहोत घुस्से में थी। उसने संजय के भाई को घुस्से में बोहोत कुछ बोला। उसने कहा की आपका परिवार चाहे कुछ भी कहे। पर संजय को उसके खिलाफ होना चाहिए था। वो चाहे तो कुछ भी कर सकता था। पर उसने नहीं किया। इतना कहकर वो चली गई। संजय के भाई ने घर जाकर सबसे पहले ये सारी बाते संजय को बताई। और उन्होंने ये भी कहा के तू मीना से शादी कर ले। में तेरे साथ हु। संजय के सारे दोस्त भी उससे यही कह रहे थे। प्रशांत और सुनील संजय के बोहोत करीबी दोस्त थे। उन्होंने संजय को बोहोत समझाया के कुछ नहीं होगा। तू मीना भाभी से शादी कर ले। इतनी अच्छी लड़की तुझे फिर कभी नहीं मिलेगी। परिवार वाले तुझे फिरसे अपनाएंगे। संजय ने बोहोत सोचा और फिर उसने ये फैसला किया। की वो परिवार के खिलाफ जाकर मीना से शादी करेगा। 

   उसी दिन शाम को संजय और उसके दोस्त मीना के घर पे गए। वहा पे मीना के जीजाजी भी थे। संजय ने उनके साथ बात की उसने कहा में अपने परिवार के खिलाफ जाकर मीना के साथ शादी करने के लिए तैयार हूं। पर शादी यहां पे नहीं हो सकती। हम तुलजापुर जाकर वहीं पे मीना की और मेरी शादी करेंगे। वो हमारी कुलदेवी है। मीना के घरवाले भी राजी हो गए। वो दूसरे दिन शाम को तुलजापुर जाने के लिए निकलनेवाले थे। संजय ने मीना के लिए दो साडिया ली। और खुदके लिए कुरता सिलाया। प्रशांत और सुनील ने मिलकर एक टेलर को पकड़ा और उसे रातभर जागकर संजय के लिए कुरता सिलवाने के लिए कहा। और एक दिन में संजय के लिए शादी के कपड़े सिलवाके लिए। दूसरे दिन शाम को सब तुलजापुर जाने के लिए निकलने वाले थे। संजय ने अपनी मां को बताया की वो सोलापुर उसके मामा के पास जा रहा है। अपने दोस्तों को लेकर। पर वो तो मां है ना अपने बेटे के मन की बात कैसे नहीं जानेगी। उसने संजय से कहा तू शादी करने जा रहा है ना। संजय ने हा कहा। उसकी मां ने कहा तू बेफिकर हो के जा। में यहाँ सब संभाल लूंगी। उसकी मां ने घर में बताया की संजय अपने मामा के पास सोलापुर जा रहा है। सबने ये बात मानली। और उधर मीना के घर पे किसीको शक ना हो इसलिए मीना की मां और उसके दो भाई और बहने तुलजापुर शादी में नहीं जा रहें थे। सिर्फ मीना उसके दो जीजाजी और उसके दो चाचाजी और उसके बड़े चाचा की छोटी बेटी इतने ही लोग लड़कीवाले की तरफ से तुलजापुर जा रहे थे। और उधर संजय के साथ उसके दो दोस्त थे। शाम को वे सभी लोग तुलजापुर के लिए निकल गए। रात को वे सब लोग तुलजापुर पहुंच गए। वहापर मीना के चाचाजी के पहचानवाले पुजारी रहते थे। ये सब उनके घर पे ही रुके हुए थे। अगले दिन सुबह शादी थी। उन्होंने सारी तैयारियां करके रखी थी। रात को ही सारा इंतजाम करके रखा था।

   तुलजापुर से सोलापुर नजदीक है इसलिए मीना की चचेरी बहन और भाई वहा पे रहते थे, उन्हें भी शादी के लिए बुलाया गया। अगले दिन सुबह देवी के मंदिर में मीना और संजय की शादी संपन्न हुई। उसके बाद सबने देवी के दर्शन लिए। मीना और संजय के हातो देवी का महाअभिषेक करवाया। मीना और संजय दोनो बोहोत खुश थे।और फिर दोपहर को पुजारी जी के घर पे सबने भोजन किया। उस दिन सारा भोजन मीना के चचेरी बहन और मीना के चाचाजी ने बनाया था। खाने में पुरनापोली आमटी भुजिया सब्जी और चावल इतना सबकुच था। सबने खाना खाया। और शामको वे सब निकल ने की तैयारी करने लगे। मीना के चाचाजी और जीजाजी अहमदनगर के लिए निकल गए। और मीना संजय और मीना के चचेरे बहन भाई और संजय के दोस्त सोलापुर के लिए निकल गए। वहापे जाने के बाद वे सब लोग दो तीन दिन मीना के के चचेरी बहन के घर पर रहे। और फिर दो तीन दिन बाद संजय मीना और अपने दोस्तो को लेकर अपने मामा जी के घर पे गया। उसने सबको बाहर रुकने के लिएं कहा। और अंदर जाकर अपने मामा से कहा। के में शादी करके आया हु। आपकी इजाजत हो तो अंदर आऊंगा। नहीं तो यही से वापस चला जाऊंगा। उसके मामा ने कहा की मुझे कोई एतराज नहीं संजय। तुम घर में आ सकते हों संजय मीना प्रशांत और सुनील को लेकर घर में आया। दो चार दिन वे सब उनके घर पे रहे। सोलापुर में मशहूर सिद्धेश्वर मंदिर है वहा पे संजय और मीना घूमने गए। दोनों को मूवीज देखना बोहोत पसंद था। इसलिए वो सब लोग वहाके सिनेमा हॉल में गए। और एक तेलुगु मूवी देखी। जब वे सोलापुर में थे। तब वहा अहमदनगर में वासी परिवार को पता चल गया था की संजय परिवार के खिलाफ जाकर मीना से शादी कर चुका हैं। सब संजय पर बोहोत घुस्सा हुए। तब संजय के मां ने और भाई ने कहा की हमे सब पता था। संजय हमे सब बताकर गया था। तब सारे परिवार ने सोचा के संजय के मां को और भाई को ये रिश्ता मंजूर है तो अब हम कुछ भी नही कह सकते। दो चार दिन बाद मीना संजय प्रशांत और सुनील अहमदनगर जाने के लिए निकले। उनके यहा आने तक मीना के जीजाजी ने एक घर किराए पे लेके रखा था। और मीना के मां ने मीना के लिए शादी में जो जो चीजें दिए जाते है वो सब लेके रखे थे। जैसे की बर्तन गैस और बोहोत कुछ। यहा आने के बाद मीना और संजय उस घर में रहने लगे।फिर थोड़े दिन बाद संजय का सारा परिवार उनसे मिलने के लिए आया। और उन्होंने संजय को माफ कर दिया। और फिरसे अपने साथ वासी के बाड़े में रहने के लिए बुलाया। पर संजय ने आने से इंकार कर दिया। उसने कहा हम सब एक दूसरे के साथ पहले जैसे ही रहेंगे पर में बाड़े में नहीं रहना चाहता। संजय के चाचाजी ने कहा चलो ठीक है पर तुम्हे दुकान पर तो आना ही पड़ेगा।तुम्हारे बिना दुकान बोहोत सुना सुना लगता है। संजय ने हा कहा। और फिर शुरू हुआ मीना और संजय का हसी खुशी जीवन। दोनो बोहोत खुश थें। और दोनों बोहोत मेहनती थे। दोनों का एक सपना था की उनका खुद का अपना एक घर हो। उन्होंने बोहोत मेहनत की और दो साल के अंदर अपने खुद के पैसोसे अपना घर खरीदा। और तब तक उनकी एक प्यारी सी बेटी भी हुई थी। सब बोहोत खुश थे। और संजय की मां ने कहा के तेरी शादी तो हम धूमधाम से ना कर सके। पर मेरी पोती का नामकरण में तो बोहोत धूमधाम से करूंगी। और अपने वासी के बाड़े में ही करूंगी। सारा परिवार बोहोत खुश हुआ। इस तरह मीना और संजय का जीवन हसी खुशी से चल रहा था।

वो कहते है ना 

जब कुछ समझ ना आए जिंदगी में

तो भगवान पर छोड़ देना चाहिए

वो ही हमें सही रास्ता दिखाते है... 


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