Prem chandra Tiwari

Tragedy

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Prem chandra Tiwari

Tragedy

ये क्या हो गया

ये क्या हो गया

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         सूर्या आज काफ़ी देर मोबाइल के अनेक स्रोतों पर कुछ न कुछ लिखता- पढ़ता रह गया था। कभी कुछ पन्नों पर लिख लेता फिर उठकर इधर- उधर टहलता। मन नहीं लग रहा था। उसने सोचा क्यों न कुछ देर बाहर हवा का ही आनन्द ले लिया जाय। बाहर कुर्सी निकालकर नीम की सुंदर छाया में बैठ गया और कभी समाज पर, कभी साहित्य पर, कभी अपनी समस्याओं पर तो कभी देश में चल रही राजनीति पर सोचता रहा। आज मन उद्विग्न था तो लगा कोई सन्देश अवश्य मिलने वाला है परन्तु क्षमताहीन होने से उसकी समझ में नहीं आ रहा था। काफी देर तक बादलों से घिरे वातावरण में शीतल हवा का आनंद आया। अचानक कुछ बात याद आयी और वह मोबाइल लेने हेतु कमरे के अंदर आ गया। तेज़ हवा के चलते खिड़कियों के दरवाजे आपस में लड़ -भिड़ कर बड़ी आवाज़ किये जा रहे थे। उन्हें बंद करते हुए वह तीसरी खिड़की पर पहुँचा ही था कि खिड़की में बाहर से लगी लोहे की जाली में एक तितली फड़फड़ा रही थी। बहुत देर से परेशान होने के कारण वह शिथिल होती जा रही थी। बार - बार बाहर जाने की असफल कोशिश ने उसे थका दिया था।

तितली की हालत अब खराब होने लगी थी। उसने अब हिम्मत हारकर खिड़की के एक कोना पकड़ लिया था। उसके पंखे शिथिल हो चले थे। सूर्या ने अपने हाथ उसकी तरफ बढ़ाया। डर से काँपती तितली की शरीर में मानो फिर से शक्ति का संचरण हो गया हो। वह फिर से भागकर इधर- उधर निकलने की कोशिश करने लगी। थोड़े से प्रयास में सूर्या ने उसे पकड़ लिया। उसे अपने पकड़े जाने पर बहुत भय लग गया होगा तभी उसने सिकुड़ कर भगवान से प्रार्थना की होगी कि वह इस नए संकट से कैसे बचे। सूर्या ने भी उसे बचाने की ही कोशिश में उसे पकड़ा था जिसमें उसी की प्रार्थना रही होगी। उसका इस तरह का कष्ट सूर्या को अपने कष्ट जैसा लगने लगा था। वह सोचने लगा ," इसे आज़ाद देखकर खुशी होती जैसे हमने तितलियों को फूलों पर मँडराते, हँसते, खेलते, ऊपर - नीचे उड़ते हुए देखा था। उन्हें पकड़ने की कोशिश में न जाने कितनी बार गड्ढों में गिरा, काँटों में फँसा लेकिन उनके रंग- विरंगे पंखों का तिलिस्म मन से नहीं निकला।"

 वह सोचता रहा," जो आनंद इसे इस शीतल हवा में उड़कर मिलेगा वह कैद रहकर कैसे मिल पायेगा? इसने भी शायद सोच हो बाहर उड़कर बहुत नज़ारा देख लिया ज़रा घर के अंदर किसी कमरे में चलकर देख लें कि लोग किस तरह उसमें रहते हैं? क्या उनका मन नहीं करता होगा हमारी तरह उड़ने का, फड़फड़ाने का, कूदने का? आखिर आदमी घर बनाकर स्वयं को क़ैद करके कैसे रह लेता है? " शायद इसी उत्सुकता में उसे बाहर जाने का रास्ता खिड़की दिखी। उसने सोचा आये दरवाज़े से पर अब हम तिरछे ही निकल पड़ेंगे और किसी को कानों कान ख़बर भी नहीं होगी। उसे क्या पता था कि इसमें मच्छरों, मक्खियों के आतंक से बचने के लिए मनुष्य ने जालियाँ लगा दी हैं। अब इतना कष्ट पाकर अवश्य ही मनुष्य का जीवन उसकी नज़र में सबसे घटिया लगा होगा। आज़ उसने जाना होगा कि आदमी कमरे में बंद रहकर ही तुच्छ मानसिकता का हो जाता है। उसे नहीं पता कि वह जो सोच रही है उससे भी गंदी मानसिकता का होता है आदमी। लेकिन उसे यह भी सोचना था कि आदमी तो सूर्या भी था जिसने उसे बचाने की अपनी भरपूर कोशिश में ही पकड़ लिया था।

अब सूर्या के क़दम कमरे से बाहर निकलने को थे। दरवाज़े को खोल मन ने कहा- इसे किसी फूल के पास रख जाय। घर के सामने लॉन में सजी फूलों की क्यारियों में ले जाकर रख दिया। थक चुकी तितली ने उड़ने की कोशिश की और कई बार औंधे मुँह गिर पड़ी। वह कुछ दूर उड़कर पहुँच गयी।सूर्या की आँखें उसे दूर उड़कर जाते हुए देखने की इच्छा से दूसरी तरफ नहीं देख पा रही थीं। दूर एक फूल पर बैठ कर वह शायद अपने कष्ट के बारे में सोचने लगी थी। अपने पंखों को सहलाने लगी थी। बार - बार मेरी तरफ देखकर धन्यवाद दिया होगा उसने। सूर्या यही सोचकर बहुत ही प्रसन्न था। अब उसे सुरक्षित देखकर जैसे ही कमरे में आने के लिए मुड़ा ही था कि एक चिड़िया ने उसपर झपट्टा मारकर अपनी चोंच में दबा लिया।

उसने चिल्लाया भी होगा जिसे महसूस कर सूर्या ने क्रोध में उसकी तरफ एक पत्थर भी उछाला ताकि चिड़िया उसे छोड़ दे परन्तु पत्थर के डर से वह चोंच में दबाये और तेजी से ले उड़ा और नज़रों से ओझल हो गया।

अब सूर्या के पैर में जैसे कोई भारी पत्थर बाँध दिया गया हो। क़दम नहीं चल पा रहे थे। सूर्या अपराधबोध से ग्रस्त हो गया। वह सोचने लगा," काश मैंने उसे देखा ही न होता। वह अंदर कमरे में गयी ही न होती। उसे आख़िर क्या ज़रूरत थी कमरे में जाने की? बाहर जैसे और सैकड़ों तितलियां उड़कर मज़े ले रही हैं उसी तरह वह भी उड़ती। लेकिन आज़ कमरे में कुछ देखने की उसकी लालसा ने मुझे भी अपराधी बना दिया। वह वैसे भी खिड़की में मरने को थी परन्तु उसमें मैं उतना दोषी न होता जितना अब हो गया।" 

यह घटना आज भी सूर्या के मन को हिलाकर रख देती है। सूर्या सोचता रहता है आखिर ये क्या हो गया? 

 



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