यात्रा वृत्तांत दयारा बुग्याल
यात्रा वृत्तांत दयारा बुग्याल
#दयारा बुग्याल, समुद्र तल से 3408 मीटर यानी 11,181 फीट की ऊंचाई पर एक स्वर्ग जो अछूता व पवित्र है।
कहते हैं जहाँ चाह वहाँ राह, यह साल कुछ पूर्ण सा नहीं था और मैं ये सोच रहा था कि जीवन मे क्या परिवर्तन होगा कि तभी मित्र सुमित जोशी जी का आगमन हुआ और जैसा की प्रत्याशित था हुआ हम दयारा के लिए चल पड़े।
देहरादून से अपना सामान बाँध कर स्वयं ड्राइव करते हुए हम #मसूरी-धनौल्टी मार्ग पर सुवाखोली से बाएँ तरफ चल पड़े, ये मार्ग संकरा है किन्तु #हृषीकेश मार्ग की अपेक्षा आजकल बेहतर है। यहां से मोरेना टॉप पर हमने पहला पड़ाव किया और भोजन इत्यादि के बाद #चिन्यालिसौड़ मार्ग से #उत्तरकाशी मुख्य मार्ग से मिल गए। आगे जा कर खेड़ी waterfall का दृश्य नयनाभिराम के लिए उपयुक्त स्थान था।
पहली बार जीवन मे पूरा गोल इन्द्रधनुष देखा। जी हाँ संपूर्ण गोल।
यहां से 26 km पर हमें #रैथल गांव पहुंचना था किंतु पहुंचे 39km आगे #बार्सू गांव, गलती थी सो खिन्न मन से वापस चले, पूरा रास्ता उतना नहीं अखरा, जितना ये आखिरी 23km।
#भटवाड़ी मोड़ से 10 कि.मी ऊपर की ओर जाकर अंततः हम 5:30PM जब रैथल पहुंचे तो अंधेरा मुँह उठा ही रहा था और रैथल से 400mtrs ऊपर #THEGOATVILLAGE हमारे स्वागत में तैयार था। कुछ देर अपने सफर के बारे में बात करने और भोजन उपरांत जब काले आसमान में अनेकों सितारों को अपने गर्म jackets के अंदर से देखा तो लगा कि प्रकृति का यह पहलू शहर से नहीं दिखता । सप्तऋषि आसमान में विचरण कर पृथ्वी का जायजा ले रहे थे।
तापमान तेजी से नीचे आया और हमारा खुमार भी, बिस्तर में घुस कर सो गए।
ना जाने ये कोई मिलीभगत है या कुछ और परंतु प्रति व्यक्ति हमसे 600 रुपये की मांग की गई सिर्फ दयारा की ओर जाने के लिए जिसमें कुछ भी शामिल नहीं था सिवाय इसके कि हमारे जाने की जिम्मेदारी किसी झूठ मूठ की एजेंसी ने ली थी, हमें बदले में 20 रुपये की सरकारी रसीद पकड़ाई गई। पता नहीं इस प्रकार की हरकत से हम पर्यटन को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं। दयारा एक धार्मिक पर्यटन नहीं है और यहां पर पर्यटक किसी विशेष परिस्थितियों में ही आते हैं। हमें उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए।
सुबह एक बेहतर नाश्ते जिसमें चौलाई (रामदाना) का हलवा और मंडुवा का चिला शामिल था करके तथा खूब सारा पानी ढ़ो कर हम अपनी मंजिल के लिए चल पड़े।
GOAT VILLAGE 2200 मीटर पर और हमें 3480 मीटर पर 8 किलोमीटर की खच्चर पगडंडी से पहुंचना था, शुरुआत में प्रथम 1.5 किलोमीटर मुश्किल था किंतु प्रतिदिन के अभ्यास से सम्भव हो गया तत्पश्चात यह कठिन होने लगा और कई जगह पर कोण 12° से 18° तक हुआ। कुछ जगह पर 5 मिनट का विश्राम के बाद 3 से 5 मिनट चलना ही सम्भव हो रहा था।
रास्तें में कुछ नीचे वाले #बुग्याल भी मिलने शुरू हो गए थे और कुछ जगह पर वन विभाग के बोर्ड भी मिले जिनसे कुछ पल के लिए मानवीय उपस्थिति का एहसास होता था अन्यथा रास्ता नितांत मनुष्य शून्य था।
4 किलोमीटर उपरांत हमें ख़ासी चढ़ाई के बाद कुछ पालतू गाय व भैंसों का झुंड मिला किंतु मनुष्य मात्र की कमी वहाँ भी खली, परंतु किसी मित्र जानवर का एहसास भी सुखद हो सकता है ये पहली बार महसूस हुआ। यहां पर वन विभाग के कुछ स्थायी टेन्ट और एक सुन्दर झील थी परंतु हमें अपने गंतव्य पर समय से पहुंचने की उत्सुकता थी अतः चल पड़े।
यहां से लगभग 1/2 किलोमीटर पर पहली बार तीन व्यक्ति और उनके खच्चर नीचे की ओर आते मिले तो अत्यधिक सुकून मिला और साहस भी, उससे पहले हम अपने सामान को हथियार के रूप में पकड़ चुके थे कि यदि किसी जंगली जानवर से सामना हो तो भिड़ंत की स्थिति तो रहे। अत्यधिक सूनापन आपके साथ कई खेल खेल सकता है।
आगे का रास्ता बहुत तीखा चढ़ायी वाला महसूस हुआ और रुक रुक कर चलना पड़ रहा था हमने 3 किलोमीटर प्रति घंटा की उम्मीद की थी पर यहां तो 2 से भी कम पर कदम चल रहे थे।
तभी पहली बार तीन ट्रेकर बस गंतव्य से थोड़ी ही दूरी पर वापस आते दिखे तो लगा कि ऊपर कुछ और मिलेंगे परंतु ऐसा नहीं था , हम नितांत अकेले ही थे, किन्तु हम पहुंच ही गए।
"दयारा बुग्याल" मानो पृथ्वी पर स्वर्ग उतर आया हो, अगर आप को Microsoft Windows की स्क्रीन याद है तो मुझे यकीन है कि उसकी प्रेरणा या तो यहीं से मिली है या वो यही जगह है। ऊपर नीला विस्तृत आकाश, छँटते घुमड़ते झक सफेद बादल, पांव तले हरी घास, दूर तक फैले बुग्याल उन पर जगह जगह उठे हुए छोटे पहाड, दूर देवदार, बाँज और बुरांश के वृक्ष, ये तो पक्का विश्वकर्मा ने किसी देव के लिए landscaping की थी जिसका आनंद अब हम ले रहे थे।बहुत ही खूबसूरत और लगभग 6 किलोमीटर की परिधि में फैला ये स्थान आपको या तो नैसर्गिक सौंदर्य से मोहित कर देगा या आपका अकेलापन आप पर हावी हो जाएगा। इतना खूबसूरत की आँखों में दृश्य और मन के ROM में storage capacity कम पड जाए।
लगभग 45 मिनट यहां पर बिताने के पश्चात हमें वापस जाने की जल्दी होने लगी क्योंकि अंधेरा होने से पहले हमें वापस GOAT VILLAGE वापस पहुँचना था।
वापसी में सिर्फ 1/2 किमी नीचे ही जहां पर खच्चरों को बांधने का स्थान है, रावत भाई की छोटी सी दुकान दिखी, उन्होंने बहुत ही बेहतरीन नाश्ता खिलाया जिसकी कीमत उचित थी, उनसे ज्ञात हुआ कि अगर हम वहां रात्री विश्राम करना चाहें तो वो 800 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से व्यवस्था कर देते है जिसमें एक नाश्ता और खाने का प्रबंध भी रहेगा। मेरी राय भी ये सबसे उम्दा तरीका है यदि आपको बुग्याल का पूरा आनंद लेना है।
अगली बार के लिए यही तय रहा। वापस तो आना ही है मित्रों संग।
तीन बजे हम वापसी के लिए रवाना हुए और बहुत तेजी से कदम बढ़ाते हुए हम 5:30 PM पर वापस पहुंचे, रास्ते में अपने बनाए निशान काम आए एक जगह हल्का सा मतिभ्रम हुआ किंतु जगह जगह पर idea और Jio के सिग्नल बात करने लायक मिल रहे थे इसलिए बात करके रास्ता ढूँढ लिया। 5:45PM पर आसमान अंधेरे की चादर ओढ़ चुका था और कुछ ही देर में हम भी चादर ओढ़ काले आसमान में समाहित हो गए।
आगे गंगोत्री धाम का वृतांत फिर कभी...
