वृक्ष
वृक्ष
बचपन में कभी पढ़ा था इंसान को विशालकाय फलदार वृक्ष बनना चाहिए।
तब से वही बनने का जुनून सवार हो गया। अभी पूरी तरह वृक्ष भी नहीं बना था पर लोगों को छाया देने की चाहत पनप चुकी थी। एक दिन बहुत बड़ा तूफान आया। सब बेघर हो गये। मेरा पूरे परिवार छिपने के लिए शरण ढ़ूंढ़ने लगा।
वह पढ़ी लाइन अब भी मुझे कंठस्थ था। खड़ा हो गया उन्हें बचाने। तूफान के समय छिपे विषैले जीव जन्तु बाहर लाने लगते हैं। अब परिवार जनों को उन विषैले जीव जन्तुओं से खुद का बचाव करना था। सबने मिल कर मेरी कुछ टहनियाँ तोड़ी। मैं खुश था सबके काम आ रहा हूँ। धीरे-धीरे मुझमें फल भी आने लगे। अब जब भी सबको भूख लगती सब मुझसे तोड़ लेते और भूख मिटा लेते।
मैं कभी इस बात का प्रतिरोध नहीं करता। अब उनकी लालच बढ़ने लगी। भूख मिटाने के बाद पैसे कमाने की इच्छा जागी। इसके लिए उन्हें ज्यादा फल की आवश्यकता थी। एक-एक कर सब मुझ पर पत्थर फेंकने लगें ताकि ज्यादा से ज्यादा फल हासिल कर सकें। तकलीफ़ होने लगी थी मुझे। अब उनके इस हरकत का प्रतिरोध करने लगा। पत्थर और तेज होने लगें। आस पास से गुजरने वाले लोग अगर उन्हें इस हरकत के लिए टोकते भी तो सब एक सुर में बोलतें "जिस जमीन पर यह पेड़ है वह सभी का है.. इसे खड़े रहने की जगह मिली है, इसलिए इसका कर्तव्य है कि यह ये सब करे।"
अब धीरे-धीरे मेरे सारे फल झड़ चुके थे। पत्तियाँ भी नहीं रह गयीं थीं। टहनियाँ सूख कर टूटने लगी थीं। सबने उसको भी तोड़ कर जलावन बना डाला।
अब मैं नहीं रहा। सुनने में आता है वो कहते हैं मैंने जीवन में कुछ नहीं किया। ना ही उनके लिए और ना कभी खुद के लिए।