Mamta Singh Devaa

Inspirational

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Mamta Singh Devaa

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वो सात साथ थीं और हैं

वो सात साथ थीं और हैं

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विश्वविद्यालय के दृश्य कला संकाय में सात सहेलियों का ग्रुप अपने आप में मस्त रहता था विभाग अलग - अलग काम अलग - अलग लेकिन दिल एक सोच एक विचार एक , जब वो निकलती तो जैसे बहार आ जाती यहाँ तक की संकाय के प्रोफेसर भी उनका इंतज़ार करते की आज क्या पहन कर आयेगीं उनके दुपट्टे उनकी बिंदियाँ उनके गहने सब कमाल , वो जो करती एक साथ करतीं यहाँ तक की झूठ भी अलग - अलग जगहो पर होते हुये भी एक जैसा बोलतीं थी मज़ाल जो कोई पकड़ ले ? । 


दो मूर्ती कला विभाग की तीन पाँटरी एण्ड सिरामिक की एक पेंटिंग और एक कमर्शियल आर्ट की , सुबह नौ से पाँच बच्चों की तरह यूनिवर्सिटी में पढ़ती थीं आते आते छे बज जाते मेस में जा कर नाश्ता करती कमरे में आती एकदम तरोताज़ा उनको देख कर लगता ही नही की इतनी मेहनत करके आ रही हैं थोड़ी देर में ही होस्टल के गेट पर नज़र आतीं किसी को कमेंट करती हुयी ठहाँका लगा कर हँसती हुयी...उनको कभी भी शांत तो देखा ही नही । 

रात दस बजे कमरे में पहुँचतीं खाने की तैयारी शुरु होती ( मेस का खाना खाने लायक ना होता था ) मेस में पैसे भी लग रहे थे वो बड़ा कचोटता था इसलिए वो मेस बंद होने के पहले मेस में पहुँच जातीं और शुरू होता रोज एक नया ड्रामा " अरे दाल खतम हो गई ये क्या रोटियां भी नही है कोई नही ( मेस का एक नौकर सेट था ) अंबिका जरा दोनो जग में वाटर कूलर से पानी ही भर के दे दो और अंबिका पानी की जगह सब्जियां भर के दे देता फिर शुरू होता खाना बनना हिटर पर धीरे धीरे... भूख से मरी जाती वो और खाना खाने के बाद खा कर मर जातीं ? । वो सारा काम रात में करतीं कपड़े धोना , रूम साफ करना , कालेज का काम करना ...हास्टल की बाकी लड़कियों को वो समझ ही नही आतीं की कहाँ से इनके पास ये एनर्जी आती है ? 

यूनिवर्सिटी में किसी की मज़ाल जो इनसे पंगा लेने की हिम्मत कर सके आधों की बोलती तो इनके रंग - बिरंगे कॉटन के दुपट्टे और जीन्स ( 1990 - 91 ) बंद कर देते और आधों पर ये खुद भारी थीं , पढ़ाई में भी आगे किसी को गोल्ड मेडल मिल रहा है तो कोई नैशनल स्कालरशिप ले रहा है ....दिन तेजी से निकल रहे थे पकड़ना मुश्किल हो रहा था किसी ने बैचलरस की डिग्री ली किसी ने मास्टरस की कुछ ने दुसरे शहर जा कर नौकरी कर ली और कुछ ने शादी लेकिन दोस्ती कायम रही आज भी है इनकी दोस्ती की मिसालें दी जाती हैं लोग आज भी रश्क करते हैं इनसे सामने से कहने की हिम्मत ना तब थी ना अब है....

आओ एक बार फिर से.....

वही पुराने होकर

फिर से अपने इस बनारस में ,

तुम्हारे बिना सूना है हाॅस्टल का वो कमरा

और ना भूलने वाला फैकल्टी का वो झगड़ा ,

रिक्शेवाले आज भी बैठे हैं हमारे इंतज़ार में 

लंका से लंका तक की सवारी के करार में ,

सूनी हैं BHU की वो सड़कें .....

अब कोई नही लहराता काटन का वो दुपट्टा 

ना ही लगती हैं माथे पर वो गज़ब की बिंदियाँ

शायद ही खाता होगा कोई दोस्तों का टिफिन मार के झपट्टा ,

बिंदास जींस में वो स्कूटी का लहराना

लड़कियां होकर भी लड़कों को डराना 

हर परिस्थिति मे हमारा साथ निभाना ,

स्केचिंग के बहाने अस्सी की वो मस्तियाँ

आर्ट के समान के लिये घुमना गली - गली और बस्तियाँ ,

वो लड़कों की खुशामद करके मंगवाना समोसे 

उनको ये एहसास कराना कि अब तो हम है तुम्हारे ही भरोसे ,

वार्डन से छुप कर रूम में पकाना वो लज़ीज़ खाना 

खाने से पहले भूख से और बाद में ज्यादा खा कर मर जाना ,

याद हैं ........????

सबका पोनी पर स्कार्फ बांधना ?

सबका अलग - अलग जगहों पर एक जैसा झूठ बोलना ?

कैसे एक्सीडेंट का नाटक करके दोस्तों को रूलाना ?

सिक्रेट गाॅसिप सुनने के लिये दोस्तों को कोल्ड ड्रिंक पिलाना ?

आज ना खाने में वो स्वाद है

ना बातों में वो राज़ है

ना ही हमारे आस - पास हमारे जैसा कोई बन्दा है

उस वक्त लगता था कि बिछड़ेगें तो मर जायेगें 

पर आज बिछड़ कर भी ज़िन्दा हैं ,

आखों के सामने सब तस्वीरें स्थिर हैं 

पता नही क्यों ये आगे बढती ही नही

इतने सालों बाद भी हमारी दोस्ती किसी से 

हाय ! हैलो !...के आगे बढ़ती ही नही !


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