वो पांचवी सालगिरह(भाग १ )
वो पांचवी सालगिरह(भाग १ )
शनिवार की सुबह के सात बजे थे, जब मेरी आँख खुली। आम तौर पे दुनिया भर के दफ़्तरों में वीकेंड पे छुट्टी होती है, लेकिन मेरी कंपनी इस दुनिया की श्रेणी में कहाँ आती थी? यहाँ पर तो १५ अगस्त और २६ जनवरी को भी छुट्टी इस तरह से घोषित होती है, जैसे की देश पे एहसान कर रहे हों। बड़े भारी मन से बिस्तर से उठा और मधु और श्लोक की तरफ देखा जो ख़र्राटों की प्रतियोगिता में कुंभकरण को भी टक्कर दे रहे थे।
मधु के चेहरे की एक ख़ास बात थी कि उसे सोते हुए देखके यह बता सकतें हैं कि वो नींद में कौनसा सपना देख रही है। जिस तरह से दाँत भींचके मधु सो रही थी, मैने अनुमान लगाया कि ज़रूर सपने में किसी ग़रीब चोर की डंडे से पिटाई कर रही होगी। या शायद मेरी?
यही सोचते हुए जब मैने चेहरे पे हाथ फेरा तो याद आया कि मैने पिछले एक हफ्ते से शेविंग नहीं की है और रात ही मधु ने अलटिमेटम दिया था की याँ तो मैं कल हजामत बनाऊं या धर्म-परिवर्तन करके सरदार बन जाऊं।
“राघव बेटा।।”, मेरी अंतरात्मा से आवाज़ आई, “मधु के उठने से पहले शेविंग कर ले वरना जो सपना वो अभी देख रही है, वो उसके उठने के बाद तेरे लिए भयानक हक़ीकत बन जाएगा!”
खुद को पिटता हुआ सोचते हुए मैं कमरे से बाहर निकला और हॉल के स्टेरीयो सिस्टम से FM रेडियो ऑन किया।
“दे दे प्यार दे, हमें प्यार दे…” शराबी फिल्म का गाना बजना शुरू हुआ जिसे गुनगुनाते हुए मैं बाथरूम में दाखिल हुआ और हाथ में रेज़र लेके दुनिया के सबसे बोरियत वाले काम को अंजाम देना शुरू किया। अचानक मुझे भूकंप के हल्के झटके महसूस होने लगे। कुछ पल बाद झटकों के आवाज़ और तेज़ हुई तो पता चला कि कोई बाथरूम का दरवाजा बाहर से पीट रहा है।
मैने जैसे ही बातरूम का दरवाजा खोला तो सामने मधु के रूप में साक्षात चन्डी माँ के दर्शन हुए।
“आपको थोड़ी भी अकल है कि नहीं?” मधु ने गुस्से में सिर हिलाते हुए कहा।
“हुआ क्या मधु जी? देखो मैं तो शेविंग भी कर रहा हूँ।” मैने सकपकाते हुए पूछा। जब भी मधु गुस्से में होती थी, तो मैं बड़े ही सम्मान के साथ उसके नाम के साथ ‘जी’लगाके समोधित करता हूँ।
“ये जो १५-१५ दिन के बाद शेविंग करते हो, तो तुम्हारी दाढ़ी के बाल सिंक में अटक जाते हैं, और नाली जाम हो जाती है। पिछले हफ्ते ही प्लमबर को बुलाया था और आज फिर वहीं शेविंग कर रहे हो!”
मैने हैरत से एक नज़र अपने Gillette Fusion के 5-ब्लेड रेज़र पे डाली और फिर मधु को देखा, “Are you insane? मैं सर के बाल थोड़ी काट रहा हूँ जो सिंक में अटक जाएँगे! कुछ तो लॉजिकल बात करो। Gillette कंपनी वालों ने कहीं तुम्हारी बातें सुन ली तो तुमपे केस कर देंगे।” मैने कहते हुए शेविंग क्रीम की ट्यूब को होल्डर में वापस डालने की कोशिश की, लेकिन नाकामयाब हुआ।
“शेविंग क्रीम तो ढंग से रखने आती नहीं…” मधु ने ट्यूब को मेरे हाथ से छीना और उसे उल्टा करके होल्डर में रखती हुई बोली, “…और खुद को तीस-मार-ख़ान समझते हो।”
“अरे वो तो तुम्हें गुस्से में देखके मेरे हाथ काँपने लगते हैं।” मैने बात बनाते हुए कहा, “और कोई शिकायत है?”
“कुछ नहीं!” मधु ने बाथरूम की हालत देखी और पलटके वापस किचन में चली गयी। बीवियों के पास थर्ड डिग्री टॉर्चर करने के बहुत तरीके होते हैं, जिसमें से एक तरीका ये है कि वो जिस बात पे नाराज़ है वो वजह कभी खुल के जाहिर नहीं करेंगी और बेचारे पति की आधी ज़िंदगी इसी ख़ौफ़ मैं गुज़र जाएगी की आख़िर उसकी ग़लती थी क्या?
मैं बिना इस बात की परवाह किए कि शेविंग क्रीम अभी भी मेरे चेहरे के आधे हिस्से में लगी हुई है, किचन में गया और मधु से बड़ी मासूमियत से पूछा, “बताओ भी, अब मैने क्या किया?”
“आप कभी कुछ करते कहाँ हो? सुबह सुबह इतनी ज़ोर से उटपटांग गाने बजाते हो, बाकी आप कुछ करते कहाँ हो? टाय्लेट इस्तेमाल करने के बाद कमोड को ठीक से साफ करना तो दूर, उसकी सीट तक नीचे करना भूल जाते हो, बाकी आप कुछ करते कहाँ हो? नहाने के बाद गीला तोलिया वहीं सोफा पे छोड़ देते हो, बाकी आप कुछ करते कहाँ हो? अपने प्रेस किए हुए कपड़े तक अपने अलमारी में नहीं रख पाते हो, बाकी आप कुछ करते कहाँ हो?”
अगले कुछ पल सन्नाटा, और फिर FM रेडियो पे “ज़ोर का झटका हाए जोरों से लगा” गाना बजने लगा, जो मेरी परिस्थिति पे बिल्कुल सही फिट बैठता था।
“एक तो ये बकवास गाने सुनके मेरा ज़्यादा सरदर्द होता है। आपके पास कोई और ढंग के गाने नहीं है क्या?” मधु ने अपना सर पकड़ते हुए कहा।
“ये गाने कोई मैने थोड़ी लिखे हैं, और वैसे भी यह गाने मेरी प्लेलिस्ट में से नहीं बल्कि FM रेडियो पे आ रहे हैं।" मैने गाना बदलते हुए कहा, "मैं तो चाहता हूँ कि सिर्फ़ तुम्हारे नाम के गाने सुनूँ, लेकिन तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हारा नाम ही इतना चुनकर रखा है, जिसपे आज तक कोई एक गाना नहीं बना। जूली, किरण, चाँदनी, कंचन, मुनी, शीला, रबरी, जलेबी, यहाँ तक की तुम्हारी बहन मोनिका पर भी गाना बना हुआ है, सिर्फ़ एक तुमको छोड़के।” मैने मधु को छेड़ा।
“आप मोनिका की बात तो रहने ही दो। और इतने ही मेरे नाम के गाने गाने थे, तो शादी के बाद क्यूँ नहीं मेरा नाम बदल दिया?”
मैं संजीदा होके कहा, “देखो हमारा नाम हमारी पहचान का एक अंश होता है, और हमें किसी को भी खुदकी पहचान बदलने का हक़ नहीं देना चाहिए। मैं तो शादी के बाद सरनेम बदलने के भी पक्ष में नहीं हूँ।”
आख़िरकार मधु के चेहरे पे मुस्कुराहट आई और वो मुझे गले लगते हुए बोली, “लेकिन मुझे तो मेरे नाम के साथ आपकी सरनेम बहुत पसंद है, ‘मधु माखीजा’, ऐसा लगता है जैसे कोई किसी मिठाई की दुकान पे मक्खियों को भगा रहा हो।” ये कहके मधु अपनी उंगली से शेविंग क्रीम मेरी नाक पे लगाते हुए ज़ोर से हंसने लगी।
चाहे मधु दिन में हज़ार बार रूठती हो, लेकिन उसे एक बार हसते हुए देखके मुझे जो खुशी मिलती है, वो शायद शब्दों में बयान करना नामुनकिन है।
“चलो, आप जल्दी से तैयार हो जाओ, आपको ऑफिस के लिए लेट हो रहा होगा। और शाम को आज जल्दी आ जाना, आज नीलू चाची के दामाद की बर्थडे पार्टी में जाना है।”
“अरे यार मैं पिछले 5 साल मैं आज तक यह नहीं जान पाया कि तुम्हारे आख़िर कितने रिश्तेदार हैं? और वो इतने नवरे क्यूँ हैं की हर दूसरे दिन कोई ना कोई पार्टी देते रहते हैं? अभी परसों ही तो तुम्हारे मामा के पोते के मुंडन में गये थे!” मैने चिड़ते हुए कहा।
“अब भाटिया और शर्मा परिवार का इतना रुतबा है इस शहर में तो इसमें आपको क्यूँ जलन हो रही है?” मधु ने पूछा।
“मुझे जलन नहीं हो रही है, मेरी ज़िंदगी ख़तम हो रही है इन सब फालतू के झंझटों में। कभी किसी का जनमदिन होता है, तो कभी किसी का मरनदिन! और जब ये सब वजहें भी ना हों, तो तुम्हारे रिश्तेदार जंगलकांड का पाठ रख देते हैं।”
“जंगलकांड?” मधु कुछ सोचने के बाद बोली, “कम से कम नाम तो ढंग से लिया करो, उसे सुंदरकांड कहते हैं।”
“अरे सुंदरकांड हो या जंगलकांड, क्या फ़र्क पड़ता है। तुम्हारे रिश्तेदार सारे कांड में माहिर हैं। सामने पाठ चल रहा होगा और आपस में पीने-पिलाने की बातें कर रहे होंगे।”
“और आपका खानदान कम अजीब है?” मधु ने काउंटर-अटेक किया, “मुहे याद है आपके पेरेंट्स जब मुझे देखने आए थे, तो आपकी माँ कैसे मुझे घूर घूर के देख रही थी और फिर पूछती हैं कि क्या मेरी आखें असली हैं? हद है! उन्हें क्या लगा कि मेरी आँख पत्थर की है या मैने कलर कॉंटॅक्ट लेंस लगाए हुए हैं?”
“वो तो उन्हें यकीन नहीं हुआ कि किसी की आखें इतनी खूबसूरत भी हो सकती हैं।” मैने बात संभालते हुए जवाब दिया।
“अब रहने भी दो ये मस्का लगाना और जाके तैयार हो जाओ।” मधु मुझे किचन से धक्का
देते हुए बोली।
“हां लेकिन शाम को फन्क्शन में मैं नहीं चलूँगा।” मैने बाथरूम में जाते हुए कहा।
“ठीक है बाबा मत चलना, लेकिन कल का क्या प्रोग्राम है?” मधु ने ज़ोर से आवाज़ दी।
‘कल का प्रोग्राम? कल क्या है??’ मैने मुँह धोते हुए सोचा। फिर अचानक याद आया की कल हमारी शादी की पाँचवी सालगिरह है। मैने ना अब तक मधु के लिए कोई गिफ्ट लिया था, ना कोई प्लांनिंग की थी।
“राघव, अब तो तू गया काम से” मेरी अंतरात्मा ने घोषणा की। “मधु पक्का तुझे इस बार तलाक़ देने वाली है! अब क्या करेगा?’
नहाते हुए मेरे कानों में हॉल में बज रहे गाने की आवाज़ आ रही "सुन रहा है ना तू, रो रहा हूँ मैं…।”
कहानी जारी रहेगी…