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Indar Ramchandani

Comedy Romance

4  

Indar Ramchandani

Comedy Romance

बस एक कप कॉफी...

बस एक कप कॉफी...

2 mins
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शादीशुदा ज़िन्दगी कश्मीर जैसी होती है,

दूर से खूबसूरत दिखती है, मगर अंदर आतंक ही आतंक!

ये वार्तालाप शादी के उन्हीं खतरों की चेतावनी देता है!

++++++++++

राघव: "अरे मधु, सुनती हो ?"

मधु: "नहीं, मैं तो जन्म कि बहरी हूँ। बोलो ?"

राघव: "मैंने ऐसा कब कहा ?"

मधु: "तो अब कह लो, पूरी कर लो अपनी सारी हसरत। वैसे भी सारा दिन तो कुछ न कुछ अपने में बड़बड़ाते रहते हो।"

राघव: "मैं सिर्फ कह रहा था कि एक कप कॉफ़ी मिलेगी ?"

मधु: "एक कप क्यों ? लोटा भर के मिलेगी और ये सुना किसको रहे हो ? मैं क्या वैसे कॉफी बना के नहीं देती ?"

राघव: "अरे यार कभी तो सीधे मुह बात…"

मधु: "हाँ! मेरा तो मुँह ही टेढ़ा है, मुझे तो आता ही नहीं सीधे मुँह बात करना। यही कहना चाहते हो ना  ?"

राघव: "हे भगवान!!"

मधु: "हाँ … भगवान से ही मांग लो अपने लिए एक कप कॉफ़ी। मै चली नहाने, और सुनो मुझे शैम्पू भी करना है देर लगेगी। श्लोक को उठा देना, मेरे अकेले का नहीं है।"

राघव: "ये सब क्या बोलती हो ?"

मधु: "क्यों झूठ बोल दिया क्या ? मैं क्या दहेज़ में ले कर आयी थी श्लोक को ?"

राघव: "अरे मैं कहाँ कुछ बोल रहा हूँ ?"

मधु: "अरे मेरे भोले बाबा, तुम कहाँ बोलते हो  ? मैं तो चुप थी किचन में। बोलना किसने शुरू किया ? बताओ … ?"

राघव: "मैंने तो बस एक कप कॉफी मांगी थी।"

मधु: "कॉफी मांगी थी या मुझे बहरी कहा था ? "अरे सुनती हो  ?"का क्या मतलब था बताओगे ?"

राघव: "अच्छा, 'सुनिये मधु जी!' बस!"

मधु: "बस अब जी मत लगाओ। जी जलता है मेरा।"

राघव: "अरे, क्यूं बात का बतंगड बना रही हो। कभी तो कुछ मीठा बोल लिया करो।"

मधु: "अच्छा… ?. मीठा नहीं बोली मैं कभी ? ये श्लोक क्या ऐसे ही पैदा हो गया ? और शादी से पहले तो बड़ा बोलते थे कि मेरी आवाज तो क्या डिंचेक है।"

राघव: "हां, डिंचेक पूजा जैसी।"

मधु: "क्या कहा। ?"

राघव: "कुछ नहीं, कुछ नहीं।"

मधु: "देख लिया है बहुत मीठा बोल कर। बस अब और मीठा बोलने कि हिम्मत नहीं है मेरी।"

राघव: "इतनी देर में तो कॉफी ही बना लेती, अपने पति के लिए।"

मधु: "अच्छा ….. सूचना के लिए धन्यवाद। मुझे तो पता ही नहीं था कि तुम मेरे पति हो। शाबाशी मिलनी चाइये मुझे कि तुम्हारे साथ पांच साल बिताये हैं।"

राघव: "उस हिसाब से तो मुझे परमवीर चक्र मिलना चाहिए।"

मधु: "अरे, इतनी ही प्रॉब्लम थी तो बोले क्यों नहीं, मैं खुद चली जाती तुम्हारी लाइफ से! पड़े रहो सारा दिन अपने आवारा दोस्तों के साथ!"

राघव: "अरे, इसमें दोस्त कहाँ बीच में आ गए ?"

मधु: "क्यों नहीं आएंगे ? तुम्हारी संगत ही ख़राब है!"

राघव: "मेरे साथ तो तुम हो…"

मधु: "बस अब और नहीं! मैं जा रही हूँ अपने घर…"

राघव: "घर ?"

मधु: "हाँ, यही तो चाहते हो तुम! ताकि फिर जो मर्ज़ी कर सको।"

राघव: "अरे तुमने खुदने बोलै अभी, मैंने थोड़ी बोला घर जाने को..."

मधु: "बस! आज सब क्लियर होगा!"

राघव: "क्या क्लियर होगा, बोलो तो ?"

मधु: "जब तुम खुद क्लियर नहीं, तुम्हें कुछ पता नहीं तो मैं क्या बोलूं…"

राघव: "अरे, कहाँ शादी करके फस गया यार ! कम से कम मुझे मेरी गलती तो बताओ!"

मधु: "वक़्त आने पे पता चलेगा तुम्हें अपने आप, जब मैं चली जाउंगी…"

राघव: "अच्छा...... तो अब मैं वेट करूँ सही वक़्त का ?"

मधु: "तुम सीरियस कब होंगे ?" 

राघव: "अब क्या हॉस्पिटल में एडमिट हो जाऊ सीरियस होने के लिए... ?"

मधु: "हाँ, मेन्टल हॉस्पिटल! और कॉफ़ी भी वहीँ की पे लेना!"

राघव: "अरे, बाड़ मैं गयी कॉफ़ी। बस अपनी बक बक बंद करो। मैं जा रहा हूँ ऑफिस!"

मधु: "अरे वाह!! तुम्हे तो गुस्सा भी आता है ? बहुत अच्छे! कॉफ़ी पी के जाओ। किचन में बनी पड़ी है।"

राघव: "गज़ब हो तुम भी। तो इतनी देर से बिना बात के लड़ाई क्यों कर रही थी ?"

मधु: "तो क्या करूँ ? तुम लड़ने का मौका कहाँ देते हो  ? लड़ने का मन करे तो क्या पड़ोस में लड़ने जाऊँ ?"

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ये होते हैं शादी के साइड इफेक्ट्स।


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