वो घर के आवाज
वो घर के आवाज
आज भी जब याद आता है तो रोंगटे खडे हो जाते हैं। एक पुरानी हवेली जाहां हम दोस्त बारिश के वक्त सहारा लिए थे। मैं और मेरे साथ चार दोस्त थे। मुझे पुराने जमाने की बात और चीजें को महसूस करने में बड़ा अच्छा लगता है। तो मैं घर के अंदर गई। अंधेरा था और बाहर की बिजली के वजे से थोड़ी थोड़ी उजाले होने का इशारा मिलता था। पुराने पेंटिंग , टेबल,पंखे,और बहुत कुछ धूल और मकड़ी के जाले में कैद थे।
और उसी वक्त अचानक एक बोली मेरे कानों में बज कर फौरन निकाल गई। एक छोटी बच्ची की आवाज की निकाल जाओ , हम को छोड़ दो, उसी आवाज के साथ और बहुत सारी महिल ओं के आवाज भी आने लगी। बोल ने लगे हम महिलाओं को छोड़ दो , हमें भी जीना है, हमें भी सांस लेनी है ... इसी तरह बहुत सारे आवाज आयी। फिर मैं भाग के बाहर चली गई और जब सब को उसी बारे मैं बताया तो सब हस ने लगे।
यकीन ही
नहीं किया। सायाद यकीन करना मुश्किल था। बारिश कम होने के बाद हम बाहर आए और पास के गांव के और गए। मैं चलते चलते पीछे उस हवेली को देख रही थी। और उस हवेली के टूटे कांच के खिड़की से एक छोटी बच्ची को भी देख की पर किसी को बता नहीं पाई क्योंकि कोई यकीन नहीं कर रहे थे। फिर गाओं जाके पता चला मुझे की उसी हवेली मैं कितने सारे महिला ओंं को बांध के रख लेते थे जो लोग प्यार करते थे।
जब कोई लड़की किसी पुरुष से प्यार करती तब पुरुष को कुछ ना करके महिला को बंदी की तरह महीने महीने रख हे थें। फिर एक दिन आग लग ने की वजह से अंदर के कुछ महिला जल गए और उसी दिन से उनकी आत्मा वाहां भटक रही है।और दुख की बात यह है कि उन्ही में से छोटे बच्चे भी थे जो अंदर रह गए थे। यह सुन कर मेरे मन को आचंबीत कर्डिया। कैसे समाज से आए हम जाहां अंधविश्वास के चक्कर में जान की बली ली जाती है।