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seema sharma dhakal

Romance

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seema sharma dhakal

Romance

वो एक ख्वाब

वो एक ख्वाब

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   श्रुति हाथ में कॉफी का मग लिए उपन्यास पढ़ने में मग्न थी। देखने में खूबसूरत, शरीर से छरहरी, नटखट और मस्तमौला श्रुति को बचपन से ही खुद को मेंटेन करने का बहुत शौक था।


 अक्सर उपन्यास की नायिका में वह स्वयं को देखने और उसके जैसा दिखने का प्रयास करती। गौरा रंग और खूबसूरत नैन नक्श वाली श्रुति एकदम मॉडल की तरह दिखाई देती। हर रंग उस पर खूब जंचता।


  अभी कुछ दिन पहले ही उसका तबादला इस पहाड़ी कस्बे में हुआ था। जब भी उसे ऑफिस या घर के कामों से फुर्सत मिलती, तो कॉफी पीते हुए वह खिड़की से बर्फीली घाटी को देखने से स्वयं को रोक ना पाती। 

और फिर अगर कभी कोई अच्छी पुस्तक या उपन्यास पढ़ने को मिलता तो सोने पर सुहागा हो जाता।


जब से वह इस पर्वतीय क्षेत्र में आई थी, यही तो उसके दो पसंदीदा शगल थे। विशेष कर जाड़े के दिनों में जब कई दिनों तक बर्फबारी के कारण सूर्य देव के दर्शन नहीं हो पाते और घर से बाहर निकलना लगभग असंभव सा हो जाता। ऐसे में वह अंगीठी के पास पड़ी कुर्सी पर घंटों बैठकर आग से खुद को गर्म रखने का प्रयास करती और कोई अच्छी सी पुस्तक पढ़ती।


   आज भी सुबह से बर्फ गिर रही थी। ज़रा कल्पना कीजिए कि एक सुबह आप जागते हैं और बाहर टहलते हैं, अचानक से आपको लगता है कि बर्फ़ के छोटे छोटे फाहे गिर रहे हैं और आपके चेहरे को हल्के से स्पर्श कर फिसलते हुए फैल रहे हों। 

कैनवास पर एक कलाकार की पेंटिंग की तरह, आपके चारों ओर एक अद्भुत वास्तविक चित्र बन जाए, जिसकी आपने कभी सपने में कल्पना भी न की हो। प्रकृति के इस करिश्माई दृश्य को देख वो मंत्रमुग्ध हो जाती।


 इस छोटे से कस्बे से बर्फीले पहाड़ों का मनमोहक दृश्य श्रुति को अक्सर हैरान कर देता। 


  सभी वस्तुओं पर पड़ी हुई बर्फ मोती की तरह दिखाई देती। पहाड़ हो या घरों की छतें, ऊंचे देवदार के पेड़ों की लंबी-लंबी शाखाएँ या गली में खड़ी गाड़ियां या बिजली के तार, सब कुछ सफ़ेद चादर से ढका हुआ। ऐसा मनमोहक दृश्य, अक्सर उसके मन मानस को एक अलग तरह की अनुभूति से भर देता। 


 जनवरी की उस ख़ूबसूरत और सर्द शाम को भी कुछ ऐसा ही वाकया था। 

आज शाम ऑफिस से लौटी तो देखा कामवाली बाई नहीं आयी थी शायद मौसम की नजाकत को देख बाई ने संध्या समय छुट्टी कर दी थी। ब्रेड सैंडविच के साथ कॉफी बना चिमनी के पास पड़ी कुर्सी पर जा बैठी। 


पहाड़ों की सबसे अच्छी बात जो उसे अधिक पसंद थी, वह थी बर्फबारी के दौरान चिमनी के पास बैठ कॉफी पीना और पसंदीदा उपन्यास पढ़ना। बीच-बीच में वह चिमनी के पास खिड़की के पारदर्शी कांच से बाहर गिरती बर्फ देख रही थी।


गली में बिजली के खंभे की रोशनी में बर्फबारी का दृश्य उस पर एक चुंबकीय प्रभाव डाल रहा था। अगर दिन का समय होता, तो वह स्वंम को घर से बाहर आने से न रोक पाती। चेहरे पर उतरते बर्फ के कोमल स्पर्श को महसूस करना और बर्फ से खेलना उसकी कमजोरी थी।


............


उपन्यास बेहद दिलचस्प था। नायक नायिका के बीच शुरू की झड़प और आपसी नौंक झोंक को वो खूब एन्जॉय कर रही थी. ध्रुव कितना हैंडसम और गुड लुकिंग है।उसकी पर्सनैलिटी ,उसका व्यक्तित्व, बात करने का अंदाज़ और बात करते समय उसके हावभाव। सब कुछ कितना परफेक्ट था। हर बात में कुछ बात थी।श्रुति के मन को भा सा गया था। नायिका सना भी तो खूबसूरती में कम ना थी।श्रुति क्लाइमैक्स सीन पढ़ने को बैचैन थी।चंद पन्ने ही पढ़ने बाकी थे। 


जाने क्या अंत होगा .... ?


आज ध्रुव सना को प्रपोज करने वाला था ....ओपन रेस्टोरेंट के लॉन में सना टेबल के पास कुर्सी पे बैठी बेहद खूबसूरत दिख रही थी।और ध्रुव, हाथों में गुलाब का फूल लिए, ज़मीन पे घुटनो के बल बैठा, कितना प्यारा लग रहा था।


"चल सना, अब मान भी जा ना। इंजीनियर है, और जॉब भी इतनी अच्छी,  और क्या चाहिए? मैं होती ना, तो झट से मान जाती !"


श्रुति उपन्यास में डूबी हुई थी। अचानक दरवाज़े की घंटी की आवाज़ ने उसे चौंका दिया ....  दरवाजा खुलते ही ठंडी हवा के झोंके ने शरीर में झुरझुरी सी पैदा कर दी।     लंबा ओवरकोट पहने, सिर पर हेट लगाए एक युवक सामने खड़ा था। पीछे से आ रही बिजली के खंबे की रोशनी के कारण चेहरा साफ़ नहीं दिख रहा था। बर्फ ने उसकी टोपी और कोट के कुछ हिस्सों को लगभग ढक सा दिया था।


"जी कहिये, किससे मिलना है।"


"जी, मैं ध्रुव, आपसे ही मिलना है। "


"कौन ध्रुव? मैं किसी ध्रुव को नहीं जानती।"


"अरे, आप अंदर आने तो दें, इतनी सर्दी में बाहर खड़ा करके मेरी कुल्फी जमाने का इरादा है क्या?"


 अचानक श्रुति को बाहर से आ रही ठंडी हवा की तीव्रता महसूस हुई। झट से दरवाजा बंद कर साइड से उसने रास्ता दिया।कमरे की रोशनी में उस युवक का चेहरा स्पष्ट दिखने लगा था। 

पलभर के लिए श्रुति उसके व्यक्तित्व में खो सी गई।


 उसके सामने एक बेहद खूबसूरत युवक, बिल्कुल उसके उपन्यास के नायक जैसा, हाथ में लाल गुलाब का फूल लिए खड़ा था। 

 

"हे, हैलो, कहाँ खो गई आप ?"


"नहीं नहीं, कहीं नहीं, परंतु माफ़ कीजिए मैंने आपको पहचाना नहीं।"


"अजीब हैं आप भी,खुद ही याद किया, और खुद ही भूल गई।"


"मैंने .... और ..... आपको याद किया, नहीं तो।"छत की और देखते हुए, सोचने की मुद्रा में श्रुति बोली। 


"अभी कुछ देर पहले ही तो आप कह रही थी .... मै होती तो झट से मान जाती।श्रुति अचानक चौंक गई। मन ही मन बुदबुदाई .... !


"इसे कैसे पता चला? यह तो मैने उपन्यास के नायक के लिए बोला था ....

कहीं ये ख्वाब तो नहीं .... और अपना नाम भी ध्रुव बता रहा है .... भला उपन्यास का किरदार ....यूँ हकीकत में सामने भी आ सकता है क्या .... ?"


बार बार आंखों को जोर से माला। फिर कुछ ना सूझा तो हाथ बड़ा कर उंगली से छूने की कोशिश की।   परंतु ये क्या .... ? वो तो वास्तव में सामने खड़ा था। उंगली के स्पर्श से उसके कोट से हल्की सी बर्फ नीचे गिर कर बिखर गई। 


"अब कब तक मुझे, इतनी सर्दी में दरवाजे पर खड़ा रखेंगी आप। "


 श्रुति कुछ देर यूंही खामोशी से देखती रही जो कुछ हो रहा था, वो उसकी समझ से परे था।


खोई खोई सामने से ज़रा सा हट कर उसने ध्रुव को रास्ता दिया, ध्रुव जल्दी से कमरे में इधर-उधर देखते हुए उस कोने की ओर बढ़ा जहाँ अंगीठी जल रही थी। मेज पर गुलाब रखते हुए अपने दस्ताने उतारे और हाथ फैलाकर आग सेकने लगा। 


"बहुत सर्दी है आज।"   कहते हुए पास पडी कुर्सी पर जा बैठा। 


"आप क्यों वहां खड़ी हैं .... मैं कोई भूत नहीं हूं ....और हाँ .... एक कप कॉफी मिल जाती तो ...।"


बिना मुहं से एक शब्द निकाले, परेशान सी श्रुति किचन की और बड़ी।हाथ में कॉफी का मग लेकर ध्रुव खिड़की के पास बहार पड़ती बर्फ देखने की कोशिश करने लगा।


पारदर्शी कांच को साँसों की गर्मी और कमरे के गर्म माहोल ने धुंधला कर दिया था। हाथ की उंगलियों से ध्रुव ने हल्के से शीशे को साफ़ किया और थोड़ा सा झुककर बाहर देखने लगा। भाप साफ़ होते ही बाहर का दृश्य स्पष्ट दिखने लगा था। दूर घाटी में हाईवे पे इक्का दुक्का गाड़ियों की टिमटिमाटी हेडलाइट, बर्फबारी में बेहद खूबसूरत दिख रही थी।


कुछ देर बाहर देखने के बाद अंगीठी के पास पड़ी कुर्सी पर जा बैठा ।सामने बिस्तर पर स्वाति का अधखुला उपन्यास पड़ा था।


"ओ ...... तो उपन्यास पढ़ लिया आपने ? मैने भी पढ़ा है ये।मुझे तो बहुत दिलचस्प लगा।आपको कैसा लगा?"

तभी श्रुति चौंक गई। मन ही मन बुदबुदाई ....


"तो ये बात है .... इसे मालूम है कि उपन्यास के नायक का नाम ध्रुव है ....मुझे बुद्दु बना रहा था .... हुंह ..."


"बस थोड़ा सा रहता है"


"छोड़ो पढ़ना, मैं बताता हूं,आखिर में हुआ क्यावो सना है ना .... वो ...."


इसी बीच श्रुति झट से बोल पड़ी,

"अरे आप क्यों सस्पेंस खोल रहे हैं।मैं खुद ही पढ़ लुंगी"


"ओके, ओके मैं कुछ नहीं कहूंगा"

यह कहकर उसने मुंह पर उंगली रखकर शरारत भरी मुद्रा बना ली। 


कुछ देर तक दोनों एक-दूसरे की पसंद-नापसंद पर चर्चा करने लगे। जाने क्यूँ श्रुति को भी अब उससे बात करने में आनंद आने लगा था। 


तभी ध्रुव जमीं पे घुटनो के बल बैठ गया, और गुलाब का फूल हथों में लेकर, बिल्कुल एक फिल्मी नायक की तरह ....


"क्या तुम मेरा प्रपोजल एक्सेप्ट करती हो?"


श्रुति को अपनी आंखों पर विश्वास ना आ रहा था।

इतना खूबसूरत और हैंडसम युवक उसे प्रपोज कर रहा है। 


"तुम, तुम तो सना को प्रपोज़ कर रहे थे"


"अरे वो तो बस एक नाटक था,  वास्तव में सना किसी और को चाहती थी,  रेस्टोरेंट में उसे प्रपोज़ करना, दोनों को मिलाने का एक प्लान था।"


पल भर के लिए श्रुति की सारी चंचलता न जाने कहां हवा हो गई। भरी सर्दी में उसके पसीने छूट गए। मुहं से एक शब्द तक ना निकला। ज़बान तो जैसे तालू से चिपकी हुई थी। गाल कश्मीरी सेब जेसे लाल और आंखें शर्म से झुक सी गई।वो फैसला ना कर पा रही थी,क्या कहे। 


"कोई बात नहीं, मुझे कोई जल्दी नहीं है। लगता है अभी तुम कम्फर्टेबल नहीं हो। शर्म महसूस कर रही हो शायद।"ध्रुव धीरे से ऊपर उठा, गुलाब को पास के टेबल पर रख उसके करीब आया। 

हल्के से उसका हाथ थाम, आंखों में आंखें डाल कर बोला ....


"मैं फिर आऊंगा, जब पहाड़ों से बर्फ पिघल चुकी होगी और घाटी ठंडे पानी के झरनों की आवाज से गूंज रही होगी।मैं फिर आऊँगा, जब चारों ओर हरियाली होगी और रंग-बिरंगे फूल खिले होंगे।


क्या तब तक इंतजार करोगी मेरा .... ?बोलो करोगी ना .... ?"


आखिरी शब्द कहते हुए वो हल्का सा मुस्कुराया और  झटके से बाहर निकल कर अंधेरे में ना जाने कहां गुम हो गया।श्रुति को दूर तक उसके कदमों की आहट सुनायी देती रही।



.................


तीन दिनों की लगातार बर्फबारी के बाद एक खूबसूरत सुबह। आसमान एकदम साफ था, और सुबह का सूरज उसके कमरे की खिड़की के शीशे पर परिलक्षित हो रहा था। 

पक्षियों की मधुर चहचहाहट से उसकी नींद खुल गई, देखा तो सुबह के 8 बज चुके थे।


सारा शरीर अकड़ा हुआ था लगता था, रात सारी कुर्सी पर ही गुजर गई ।



"कितना खूबसूरत ख्वाब था ....काश यह सच होता .... "


ध्रुव का चेहरा अब भी आंखों के सामने था,वो एक बार फिर उस ख्वाब में डूब जाना चाहती थी।


 कुछ देर कुर्सी पर आंखें बंद किए चुपचाप बैठी रही। परंतु खिड़की से छन कर आ रही धूप ने देर तक बैठने न दिया, अलसायी सी श्रुति उठी और खिड़की के पास आई।

 

  खिड़की खुलते ही, ठंडी हवा के झोंके ने उसके ढीले और खुले बालों को हवा में उछाल दिया। सूर्य के निकलने पर, सफ़ेद बर्फ की चादर से ढकी धरती, दूर तक फैले नीले आकाश और अलग-अलग रंग के पेड़ पौधों ने पूरे वातावरण को नया रुप दिया था।


भोर की ठंडी हवा उसके चेहरे को बहुत सुकून दे रही थी।ताजी हवा को महसूस करने के लिए एक पल के लिए रुकने का मन कर रहा था, परंतु सुबह की चाय की लालसा श्रुति को रसोई की ओर खींच ले गई।रसोई घर की ओर मुड़ते ही उसकी नजर अचानक अंगीठी के पास साइड टेबल पर रखे एक गुलाब पर पड़ी जिसे देख वह चौंक सी गई। 



" अरे, ये तो वही फूल है .... जो कल रात ध्रुव उसे देने वाला था ......


 तो इसका मतलब वो ख्वाब नहीं था ....ध्रुव आया था ....और यहीं था .... 

यही कहीं ...."


  सामने अभी भी अधखुला उपन्यास पड़ा था। 


 "ओह, ज़रा देखू तो, उपन्यास में ध्रुव और सना की कहानी का अंत क्या हुआ .... ।"


 श्रुति ने उत्सुकतापूर्वक पास पड़ा उपन्यास उठाया ....किंतु अचानक से रुक गई ....


"क्यों वो ध्रुव और सना की कहानी का अंजाम जानना चाहती है, उसे तो ध्रुव और श्रुति की कहानी को अंजाम तक लाना है ....।"


"और एक दिन वो जरूर इस कहानी को अंजाम तक लाएगी ....।"


श्रुति ने वही गुलाब का फूल उपन्यास में संभाल आज भी श्रुति का पसंदीदा टाइम पास, खिड़की से बर्फ से लदी घाटी को घंटों निहारना है।


परंतु अब उसे इंतजार है, बर्फ पिघलने का ....कब बर्फ पिघले और पूरी घाटी का दृश्य कांच की तरह साफ हो ....कब ठंडे पानी के झरनों की आवाज़ से पूरी घाटी गूंजे ....कब पेड़ों पर रंग बिरंगे फूल खिलें ....वही तो समय है, ध्रुव के आने का .... 


 वो आएगा, जरूर आएगा .... एक बार फिर से ....


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