नंदिनी
नंदिनी
आईने के सामने खड़े हो, खुद को निहार रही नंदिनी आज काफ़ी खुश थी। विश्वविद्यालय में आज वेलकम पार्टी का आयोजन था। कुछ दिन पहले ही दाखिला लिया था। शारीर से स्लिम और एवरेज हाइट की नंदिनी आज आसमानी रंग की साड़ी और हल्के मेकअप मेें खूब जंच रही थी। गुनगुनाते हुए एक हाथ में स्कूटर की चाबी व दूसरे में पर्स लिए कमरे से बाहर निकल ही रही थी कि मम्मी ने टोक दीया। "कितनी बार समझाया है कि साडी पहन कर स्कूटर मत चलाया कर, पल्लू पहिये में फंस गया तो ?"तभी पीछे से पापा की आवाज आयी'" बाहर जाते हुए मत टोका करो, उसे भी मालूम है साड़ी पहन स्कूटर केसे चलाया जाता है।"साधारण शक्ल सूरत की नंदिनी देखने में उतनी खूबसूरत तो ना थी, परन्तु उसके व्यक्तित्व में एक जादुई आकर्षण था। साँवले चेहरे पर गहरी काली आँखें और चुंबकीय मुस्कान, देखने वालों को पल भर के लिए मंत्रमुग्ध कर देती।इकलौती होने के कारण, नंदिनी पापा की बहुत लाडली थी।
एक वही तो थे जो उसकी हर अच्छी बुरी फर्माइश पूरी करते। "इतना लाड-प्यार दोगे तो अगले घर जा कर क्या करेगी, कुछ घर का काम भी सीखने का मौका दिया करो" दादी अक्सर कहती रहती। पापा झट से बीच में बोल उठते, "घर का काम क्यूँ, मेरी बेटी तो ऊंचे ओहदे वाली नौकरी करेगी, काम काज के लिए तो नौकर चाकर होंगे।" विश्वविद्यालय में मास्टर्स इन कॉमर्स कर रही नंदिनी, अपने आस-पास के लोगो में काफी चर्चित थी। दिल की साफ दूसरों की मदद करने में हमेशा आगे रहती।
स्वभाव से इतनी मिलनसार और हंसमुख कि उसकी संगति में कभी बोरियत महसूस नहीं होती।मास्टर्स करने के बाद MBA करने का इरादा था उसका। शुरू से ही कॉर्पोरेट जगत में अपनी पहचान बनाने का सपना देख रखा था। पिछले कुछ दिनों से एक दो रिश्ते भी आ चुके थे परंतु पापा ने सोच रखा था जब तक अपने पैरों पर खड़ी नहीं होगी शादी के लिए कभी हाँ नहीं कहेंगे।पापा हमेशा उसे आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते, नंदिनी खुद भी यही चाहती थी। उस दिन विश्वविद्यालय से लौटते समय सखियों के साथ बाजार का कार्यक्रम बनाया। पापा को फोन पर देर से आने को कह दीया था।शाम के 6:00 बज चुके, मम्मी नंदिनी के लिए चिंतित थी सर्दियों के दिन थे, कुछ ही देर में अंधेरा हो जाएगा, ये सोच नंदिनी की मम्मी चिंतित हो उठी। त्योहारों के दिनों में बाजार में भीड़ भी बहुत रहती है। मम्मी ने एक दो बार पापा से पूछने की कोशिश करनी चाही, परंतु मन ही मन सोचा, कुछ देर और देखती हूँ क्यूँ उनको भी परेशानी में डालूँ।
अभी सोच ही रही थी कि तभी, दूसरे कमरे से नंदिनी के पापा की आवाज सुनाई दी, यूँ लगा मानो किसी से फोन पर बात कर रहे हों। बात करते करते अचानक वो खामोश से हो गए और पास पड़ी कुर्सी पर निढाल से बैठ गए। फोन अब भी उनके हाथ में था। तब तक मम्मी भी उनके करीब पहुंच चुकी थी। उनके चेहरे के आते जाते भावों को देख, जाने क्यूँ नंदिनी की मम्मी को किसी अनहोनी घटना की आशंका सी होने लगी। "क्या हुआ ""आप बोलते क्यूँ नहीं "टकटकी लगाए वो कुछ पल यूंही शून्य में घूरते रहे। कंपकंपाते होंठो से धीमें स्वर में बोले।"हमें अभी निकलना है, हॉस्पिटल के लिए। बाजार में बम ब्लास्ट हुआ है, काफी लोग ज़ख्मी हुए हैं,उनमे नंदिनी भी है।"मम्मी की तो जेसे जान ही निकल गई। "हाय मेरी बच्ची" कहते हुए वहीं बैठ गयी। दादी का तो रो रो के बुरा हाल हो गया।पापा ने जल्दी से गाड़ी निकाली और मम्मी को लेकर हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े। ...................
आंख खुली तो नंदिनी ने खुद को हॉस्पिटल के बिस्तर पर पाया। आसपास नजर दौड़ाई तो देखा मम्मी बिस्तर की बाई और एक कुर्सी पर बैठी ऊंघ रही थी, उन्हें देख यूं लग रहा था मानो महीनों से कुछ खाया पीया ना हो। पीला पड़ चुका चेहरा, धंसी आंखें और कपड़े तो मानो हफ्तों से ना धुले हों। दरवाज़े पर पापा किसी नर्स से बात करते हुए दिखाई दिए। पलभर के लिए नंदिनी को कुछ समझ में नहीं आया, अखिर उसके साथ क्या हुआ है। "मम्मी, मुझे क्या हुआ है। यह कौन सी जगह है। "कई दिनों के बाद बेटी के मुंह से "मम्मी" शब्द सुनते ही पापा और मम्मी तेजी से उसके करीब आ गए। मम्मी की आँखें गीली और चेहरा उदास था। वह आँसुओं को छिपाने की असफल कोशिश कर रही थी, नंदिनी ने उन्हें अपना चेहरा घुमाते और आंसू पोंछते देख लिया था।"कुछ नहीं बेटा, तुम कुछ दिनों से अस्वस्थ थी, इसलिए अस्पताल ले आए। अब कैसा महसूस कर रही हो? दर्द तो नहीें है कहीं?
पापा ने प्यार से सर पर हाथ फेरते हुए पुछा। नंदनी उठना चाहती थी, अचानक उसे लगा कि वह अपना दाहिना पैर नहीं हिला पा रही। उसने अपनी गर्दन को हल्के से उठाया, तो वह कांप उठी। दाहिने पैर के स्थान पर घुटने के नीचे एक खाली कंबल पड़ा था।"मम्मी"ज़ोर की चीख़ मार कर फिर से बेहोश हो गई। बम ब्लास्ट की घटना को करीब दो साल हो चुके थे। इन दो सालों ने नंदिनी को बदल कर रख दीया था। बात बात पर हंसने हंसाने वाली नंदिनी तो जेसे हंसना ही भूल चुकी थी। जिस घर में हर पल उसके कहकहे गुंजा करते अब वहां कभी कभार उसकी छड़ी की टकटक की आवाज गूंजती सुनाई देती। नंदिनी का अब कहीं मन ना लगता, सारा दिन बिस्तर पर लेटी छत्त की और टकटकी लगाए देखती रहती। कभी कभार, खिड़की से बाहर की दुनिया देखती और पिछले खूबसूरत दिनों को याद कर आंसू बहाती। हाई हील्स के जूतों चप्पलों को देख खिड़की से बाहर फेंकने का मन होता।
आँगन में खड़ा स्कूटर मुहँ चिढ़ाता सा मेहसूस होता।एक दिन पापा ने वहां से हटा कर पिछवाड़े में रखवा दीया। पापा कई बातें बिन कहे ही समझ जाते थे। पढ़ाई तो कब की छूट चुकी थी। विश्वविद्यालय जाना तो दूर की बात थी, वो तो घर से बाहर भी निकलना पसंद ना करती। जिंदगी अब बस हॉस्पिटल और घर के बीच चक्कर लगाने में ही गुज़र रही थी। मम्मी पापा समझा समझा कर थक चुके थे, परंतु नंदिनी खुद को उस ग़म से बाहर ना निकाल पाती। पापा कई बार जयपुर जा नया पैर लगवाने की और correspondence से आगे की पढ़ाई जारी रखने की बात करते। परंतु नंदिनी ने तो जेसे जीना ही छोड़ दीया था। धीर-धीरे मम्मी पापा ने हालातों से समझोता कर सब कुछ वक़्त पर छोड़ दीया।इस बीच दादी माँ इस दुनिया को अलविदा कह दूसरी दुनिया को प्रस्थान कर चुकी थीं। अखिर तक उन्हें इस बात का मलाल रहा कि, इकलौती पोती की शादी भी ना देख सकीं।
इधर कुछ दिनों से पापा की तबीयत भी ठीक नहीं चल रही थी, काफी चेकअप करने पर पता चला दोनों गुर्दे खराब हो चुके हैं। मम्मी तो जेसे सकते में आ गई, अभी एक बीमारी से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाये थे कि ये क्या हो गया। मुसीबतों का तो जेसे कोई पहाड़ ही टूट पड़ा था उनपर। पापा की बीमारी पर पैसा पानी की तरह बहाया परंतु अखिर में कुछ हाथ ना लगा। और एक दिन पापा भी दोनों को छोड़ चले गए।जाने से कुछ दिन पहले, पापा ने मम्मी और उसको पास बिठाया और भर्रायी आवाज में बोले।"बेटा आज जो मैं तुमसे कहने वाला हूं, दिल मजबूत रखना, सोचा था सही वक़्त आने पर बता दूंगा, परंतु अब लगता है मेरे जाने का समय आ चुका है।"छत की और देखते हुए एक ठंडी आह भरी और बोले, "ईश्वर कभी किसी बाप को यह वक़्त ना दिखाए।" फिर मम्मी की ओर देखते हुए, "हादसे के बाद डॉक्टर ने एक और बात कही थी।"कुछ पल खामोश रह कर बोले,"निकट भविष्य में शायद नंदिनी की सन्तान होने में अड़चन आए।"पापा की बात सुनते ही मम्मी के मुंह का रंग सफ़ेद हो गया, जेसे उन में जान ही ना बची हो। वहीं सिर पकड़ कर बैठ गयी। "हे ईश्वर अब यही बाकी था देखना, मेरी बच्ची पर इतना जुल्म क्यूँ।"नंदिनी चेहरे को दूसरी और घुमाकर कर, आते जाते भावों को छिपाने की कोशिश में जुट गई। मुंह से एक शब्द भी ना निकला।
सफ़ेद चादर से ढकी पापा की देह अचल पडी थी।कमरे में अगरबत्ती के धुएं के बीच उनके चेहरे पर शांति कम और पीड़ा अधिक, दिखाई दे रही थी। भीगी आंखों से एक हाथ से छड़ी और दूसरे से पापा की चिता को अग्नि के हवाले कर पास खड़ी माँ से लिपट कर रो पड़ी। पापा के जाते ही अचानक नंदिनी को यू लगा जेसे उसके सर पर अब हाथ रखने वाला कोई नहीं। केसे अब जिंदगी चलेगी। उसने दुःख और निराशा को इतने करीब से पहले कभी महसूस नहीं किया था, शायद तब भी नहीं जब उसने अपना एक पैर खोया था। "तब पापा जो थे, हर पल साथ।"उसे आज भी याद था, केसे पापा ने हादसे के बाद से अपना बिस्तर उसके कमरे में ही लगा लिया था। शुरू में उसे याद ही ना रेहता की उसका एक पैर नहीं हे, सुबह बिस्तर से उठते समय कई बार गिर जाती। पापा दौड़ के आते और प्यार से पुचकारते हुए पास पड़ी छड़ी हाथ में थमाते। कई दिनों तक उसे अपना कटा हुआ पैर याद आता, अक्सर वो उस पैर में सनसनाहट सी मेहसूस करती, हाथ बड़ा के छूने की कोशिश मेें कुछ ना पा कर उसका रोना छूट जाता। तब पापा ही तो थे, जो सांत्वना दे प्यार से थपकी देते हुए सुलाते।"पापा क्यूँ चले गए आप मुझे यू छोड़कर।" पापा अपने पीछे काफी पैसा और जमीन-जायदाद छोडकर गए थे, किसी भी चीज की कमी ना थी, कमी थी तो केवल उनकी। मम्मी तो जेसे बोलना ही भूल चुकी थी।
कई बार उन्हें पापा की फोटो के आगे आंसू बहाते देखा था, परंतु नंदिनी के सामने कभी अपना दुःख ज़ाहिर ना करती।उस रोज मम्मी को पापा की फोटो के आगे आंसू बहाते देखा तो नंदिनी ने मन में ठान लिया, "बस अब और नहीं।"सुबह सुबह नंदिनी को तैयार होते देख मम्मी ने पूछा, "आज भी हॉस्पिटल जाना है क्या। ""हॉस्पिटल तो जाना है परंतु जयपुर वाले, अभी तो यूनिवर्सिटी जा रही हूं correspondence कोर्स का फॉर्म भरने।" ................चार साल बाद .................सूरज ढलने का समय हो गया था। दूर क्षितिज पर ढलती सूरज की किरणें एक अनोखा दृश्य पेश कर रहीं थीं । झील के पानी में किरणों के प्रतिबिंब अनूठी छठा बिखेर रहे थे। हर शाम झील के किनारे बेंच पर बैठ ये दृश्य देखना अनिरुद्ध का पसंदीदा काम था। यदि रोज़ की तरह यह एक सामान्य दिन होता तो वह निश्चित रूप से इस दृश्य का आनंद लेता। लेकिन आज का दिन किसी अन्य सामान्य दिन की तरह नहीं बल्कि निर्णय का दिन था, हाँ या ना। बेंच पर बैठा अनिरुद्ध गहरे विचारों में खोया हुआ था।क्या हुआ अगर कोई भी उसके फैसले से सहमत नहीं है, कम से कम उसके जीजाजी तो उसके पक्ष में हैं।उसे कल शाम नंदिनी से हुई अपनी मुलाकात याद आ रही थी। कितने मासूम थे उसके चेहरे के भाव, चेहरा बहुत सुन्दर तो नहीं लेकिन उन गहरी काली आँखों में खास बात थी। कुछ तो खास था उनमें। जिस क्षण नंदिनी ने अपनी माँ के साथ रेस्तरां में प्रवेश किया, अनिरुद्ध को छोड़ हर कोई उसे देखकर चौंक गया, इसमें कोई शक नहीं था कि उसके व्यक्तित्व में कोई भी कमी न थी, वहां बेठे हर किसी को नंदिनी अपनी और आकर्षित कर रही थी, आँखों की चमक, चुंबकीय मुस्कान। परंतु चाल में वसंत गायब था, वह छड़ी के साथ चल रही थी।38 वर्षीय अनिरुद्ध एक सरकारी अधिकारी की नौकरी कर रहा था।
अच्छी खासी कमाई थी परंतु शुरू से ही शादी उसकी प्राथमिकताओं की सूची में नहीं थी। ऑफिस के बाद जो भी समय मिलता, ज्यादातर समाजिक कार्यो में निकलता। कहीं कोई दुर्घटना हो, या कोई बीमार, किसी को खून की जरूरत हो या शादी समारोह, हरदम हाथ बटाने को तैयार। जरूरतमंद चाहे रिश्तेदार हो या कोई अन्य, इस बात से अनिरुद्ध को कोई फर्क़ ना पड़ता। लेकिन माँ को इन सब बातों से कोई लेना-देना ना था, उनकी तो हमेशा एक ही रट थी। "शादी कर लो, शादी कर लो""तुम शादी क्यों नहीं कर रहे हैं, उम्र देखी है अपनी, इस उम्र में तो लोग दो तीन बच्चों के बाप बन चुके होते हें। जब मैं इस दुनिया में नहीं रहूंगी, तब पता चलेगा तुम्हें।उस समय तुम्हें एक साथी की आवश्यकता का एहसास होगा।"अखिर एक दिन रोज़ रोज़ की चिकचिक से तंग आकर अनिरुद्ध ने माँ से कह दिया। "ठीक है फिर, परंतु मेरी भी एक शर्त हे, अब इस उम्र में मैं किसी कुंवारी कन्या नहीं, बल्कि एक विधवा या तलाकशुदा, या किसी जरूरतमंद से ही शादी करना पसंद करूंगा। यदि आपको स्वीकार्य है, तो ठीक, अन्यथा मैं खुश हूं जेसा भी हूं।"इतना कह, अनिरुद्ध मन ही मन मुस्कराते हुए घर से बाहर निकल गया।
अनिरुद्ध अच्छे से जनता था, मां कभी इस बात से राजी ना होगी।अनिरुद्ध के घर से बाहर निकलते ही, माँ ने जल्दी से अनिरुद्ध की छोटी बहन साक्षी को फोन मिलाया और अगले ही दिन एक स्थानीय अखबार में मैट्रिमोनियल प्रकाशित करने को कह दीया। अनिरुद्ध ने सपने में भी ना सोचा था कि माँ को इस बात से कोई एतराज ना होगा। नंदिनी के चाचा ने अखबार में matrimonial देखा तो उन्हें लगा शायद यहां बात बन जाए।पिछले चार सालों से वो कई बार नंदिनी के रिश्ते की कोशिश कर चुके थे, परंतु कभी बात ना बनी। इस बीच, नंदिनी अपनी पढ़ाई पूरी कर बैंक में PO के पद पर कार्यरत हो चुकी थी। जयपुर वाली कृत्रिम पैर से चलने में अब कोई दिक्कत भी ना थी, अगर कोई गौर से ना देखे तो पता भी ना चलता। धीरे-धीरे वो पुरानी वाली नंदिनी लौट आयी थी, घर फिर से उसकी हंसी और ठहाकों से गूँज उठता। नंदिनी बहुत बार मम्मी को बोल चुकी थी कि उसे शादी नहीं करनी। शादी ही जीवन में सब कुछ नहीं होती। परंतु मम्मी को लगता अगर उन्हें कुछ हो गया तो नंदिनी का क्या होगा। ऐसा नहीं था कि उसे शादी से नफरत थी, एक सामन्य लड़की की तरह उसने भी कई सतरंगी सपने देखे थे। वो भी घर-परिवार, पति, बच्चे चाहती थी। परंतु पिछले कुछ समय जो भी रिश्ते आते, उन्हें नंदिनी अपनी सभी कमियों को पहले ही बता देती, तो कहीं भी बात ना बनती।
उस रोज सुबह सुबह चाचाजी अखबार की कतरन ले घर आए। आते ही मम्मी के सामने अखबार खोल कर रख दीया।"नंदनी बेटा, तुम भी देखो, मुझे तो रिश्ता जंच रहा हे।अपने ही शहर के लोग हें।" मम्मी इश्तिहार पढ़कर बोलीं।"इसमें में तो लिखा है विधवा या तलाकशुदा""यही तो मैं कह रहा हूं जिन्हें विधवा या तलाकशुदा से कोई आपत्ति नहीं है, देखना उन्हें अपनी नंदिनी जरूर पसंद आएगी। अच्छे लोग लग रहे हैं आप कहो तो बात करूँ?"चाचा जी ने उसी समय अनिरुद्ध को फोन मिलाया और नंदिनी के बारे में सब जानकारी दी। अनिरुद्ध ने चाचा जी की बात सुन, नंदिनी से मिलने का मन बना लिया था, बम विस्फोट की बात सुन उसे कुछ वर्षों पहले शहर में हुए इस हादसे की बात याद आयी।अगले ही दिन मिलने का समय और जगह निश्चित कर, छोटी बहन और जीजा जी को भी बता दीया।परंतु अनिरुद्ध ने नंदिनी के साथ हुए हादसे की बात किसी को ना बतायी। यूं भी अनिरुद्ध ने बिना देखे ही नंदिनी से विवाह की ठान ली थी। बहुत दिनों के बाद आज फिर से आईने के सामने खड़ी नंदिनी खुद को निहार रही थी, गुलाबी रंग के सूट में खूब जंच रही थी।
तैयार होकर बाहर निकली तो चाचा जी झट से बोले, "ये क्या, छड़ी क्यूँ ली, आज के दिन तो तुम्हें दोनों पैरों से चलकर जाना चाहिए।""नहीं चाचा जी, मैं चाहती हूँ वो लोग मुझे मेरे असली स्वरूप में देखें।"चाचा जी और मम्मी ने एक दो बार समझाया, परंतु नंदिनी के आगे उनकी एक ना चली। अनिरुध्द ने नंदिनी को पहली नजर में ही तुरंत हाँ कहने का फैसला कर लिया था, परंतु माँ और छोटी बहन के चेहरों पर मौजूद भावों ने उसे रोक दिया। घर वापस, दोनों के पास कहने के लिए अपने स्वयं के कारण थे।माँ ने कहा,"क्या होगा अगर वह भविष्य में गर्भ धारण ना कर सकी, कौन जानता है कि बम विस्फोट का असर गर्भ धारण करने की क्षमता पर भी हुआ हो। क्या तुम चाहते हो कि मैं पोते पोती का चेहरा बिना देखे मर जाऊं।"अनिरुध्द को नंदिनी की वास्तविकता मालूम थी, मां की बात सुन केवल इतना बोला।"मां आप को यह बात कभी नहीं कहनी चाहिये, साक्षी की शादी को आठ साल होने को हें, उसके ससुराल वालों ने तो कभी इस बात पर कोई शब्द ना कहा।और हाँ, शादी मैं जीवनसाथी के लिए कर रहा हूँ, बाप का ओहदा पाने के लिए नहीं।
अगर आपको नहीं मंजूर तो कोई बात नहीं, परंतु याद रखना अब मैं कोई और लड़की देखने नहीं जाऊंगा।"छोटी बहन साक्षी ने केवल कुछ शब्द कहे। "भैया, एक बार फिर से सोच लीजिए, यह जीवन भर की जिम्मेदारी है। वह छड़ी से भी ठीक से नहीं चल पा रही थी, निकट भविष्य में परिवार की देखभाल कैसे कर पाएगी।"केवल उसके जीजा जी ही उसके पक्ष में थे। उन्होंने केवल इतना कहा। "अगर आप वाकई उसे पसंद करते हैं, तो आगे बढ़ें।लेकिन कभी भी सहानुभूति या दया के साथ शादी मत करना।ये क्षणिक भाव हैं।और शादी, एक आजीवन प्रतिबद्धता।फैसला आप पर है।आपका जो भी फैसला हो, मैं आपके साथ हूं।"जीजाजी की बातों से अनिरुद्ध का बहुत हौसला बढ़ा।
बेंच पर बैठे अनिरुद्ध ने दूर क्षितिज की ओर देखा, सूरज ढल चुका था, चारों तरफ अँधेरा था। लेकिन इस अंधेरी रात में अनिरुद्ध ने खुद को सही रास्ता देखने में पूरी तरह से सक्षम पाया। दृढ़ संकल्प के साथ, बेंच पर से उठा और घर की और चल पड़ा।घर आते ही उसने नंदिनी के घर के नंबर पर कॉल किया।...................एक साल बाद ..................."कृपया, कम से कम एक बार मेरी बात पर गौर करें, यह कोई बड़ी बात नहीं है, ईश्वर की कृपा से देखना अगले वर्ष फिर से हमें यह खुशी देखने का मौका मिलेगा।"नंदिनी की बेतुकी बात सुनकर, अनिरुद्ध आगबबूला हो गया।"क्या तुम पागल हो, वास्तव में तुम यह सब करके क्या साबित करना चाहती हो, इसे अगली बार सोचेंगे, इस बार ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। कितनी मुश्क़ल से ईश्वर ने हमें यह दिन दिखाया हे।"शादी के बाद नंदिनी और अनिरुद्ध बहुत खुश थे, नंदिनी एक अच्छी बहु और पत्नि साबित हुयी। आते ही उसने पूरा घर सम्भाल लिया था। अपने हंसमुख स्वभाव के कारण कुछ ही दिनों में सब का दिल जीत लिया। शादी के करीब एक साल बाद, जब नंदिनी ने अपने गर्भवती होने की ख़बर सुनायी तो किसी को भी विश्वास ना आ रहा था। साक्षी और मां ईश्वर को धन्यवाद देते ना थक रहीं थीं। खुद नंदिनी और अनिरुद्ध, ईश्वर के इस चमत्कार से आश्चर्यचकित थे। बरसों बाद घर में नन्हा मेहमान आने वाला है सुनकर नंदिनी की मम्मी के तो जेसे पंख लग गए। आने वाले मेहमान की तैयारी में जुट गई, कभी स्वेटर तो कभी बिस्तर, हर समय किसी ना किसी काम में जुटी रहतीं। जब से नंदिनी को अपने गर्भवती होने का पता चला था तब से ही उसकी एक ही रट थी। हम अपनी पहली संतान साक्षी को देंगे, जो कि अनिरुद्ध को बिल्कुल भी नहीं जंच रही थी। "आप समझने की कोशिश क्यों नहीं करते, मैंने साक्षी का चेहरा देखा है, हालाँकि वह बहुत खुश थी, परन्तु किसी ने भी उसके उस अदृश्य दर्द को नहीं देखा, जो मैंने देखा है।"" तुम सही हो नंदिनी, लेकिन यह भगवान की इच्छा है, हम कुछ नहीं कर सकते। और इसकी क्या गारंटी हे कि तुम एक बार फिर प्रेगनेंट होंगीं। हमें तो ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए जिन्होंने हमें यह दिन दिखाया।
और हाँ, मैं अब इस विषय पर दुबारा कुछ नहीं सुनना चाहूँगा।"इतना कह झटके से उठा और कमरे से बाहर निकल गया। ................... अभी कुछ महीने ही गुज़रे थे कि एक दिन नंदिनी की तबीयत ऑफिस में खराब हो गई। डॉक्टर से संपर्क किया तो पता चला बच्चा उल्ट गया हे, इसलिए पूर्ण विश्राम की सलाह दी गई।नंदिनी ने ऑफिस से कुछ महीनों की छुट्टी ले ली। मां और साक्षी दिन रात उसकी सेवा में लगी रहतीं। उन्हें देख साक्षी को कभी-कभी अपराध बोध सा होने लगता। सारा दिन, नंदिनी बिस्तर पर लेटे हुए अपने होने वाले बच्चे से बातें करती रहती, उसके लिए सामान एकत्रित करती, बाजार जाना सम्भव तो ना था, सो ऑनलाइन ही ऑर्डर करती। उसने तो नन्हें मेहमान के लिए एक विशेष प्रकार का पलंग और पालना भी पसंद कर रखा था। उस दिन के बाद नंदिनी ने फिर कभी साक्षी को बच्चा गोद देने की बात नहीं की। जेसे जेसे दिन करीब आते जा रहे थे, नंदिनी के दिल में उत्सुकता के साथ-साथ एक अंजना सा डर भी पैदा हो रहा था। आठवां महीना शुरू हो चुका था, नंदिनी का दिल चाहता जल्दी से यह दिन व्यतीत हों और उसका अपना अंश उसकी गोद में हो।
अनिरुद्ध और नंदिनी ने तो आने वाले नन्हें मेहमान का नाम भी सोच रखा था, बेटा हो या बेटी। उस रोज़, अनिरुद्ध के ऑफिस निकलते ही, नंदिनी बाथरुम में एक पैर पर संतुलन ना बना पायी, छड़ी पकड़ने की कोशिश भी की, परंतु होनी को कौन टाल सकता था। मोबाइल की आवाज ने अनिरुद्ध को चौंका दीया।चिंतित भावों के साथ, उसने कार स्टार्ट की और अस्पताल की ओर दौड़ पड़ा। कॉल उसके जीजा जी का था।उनकी आवाज से लग रहा था, बात काफी गंभीर है।
अस्पताल जाते समय उसका दिल तेजी से धड़क रहा था। हे ईश्वर सब ठीक होना चाहिए।ऑपरेशन थियेटर के बाहर जीजा जी चहलकदमी कर रहे थे, उनके चेहरे पर बेचैनी और परेशानी स्पष्ट दिख रही थी। पास के ही बेंच पर मां और साक्षी को बेठे देखा। "केसी हे नंदिनी, डाक्टर क्या कहते हें?"किसी ने एक शब्द भी नहीं कहा, जीजा जी ने खामोश रहकर, ऑपरेशन थिएटर की ओर इशारा कीया। जहाँ उसका प्रेम, उसकी नंदिनी जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रही थी। मां को अपने आँसू रोकना असंभव सा लग रहा था। साक्षी मां को सांत्वना देने के प्रयास में लगी थी। उन सबके चेहरे देख अनिरुध्द को अपना दिल डूबता हुआ महसूस हुआ। दिल की धड़कने तेज़ हो गई।
सभी ईश्वर से चमत्कार होने की प्रार्थना कर रहे थे। डॉक्टर ने बता दीया था, कुछ जटिलताएँ हें, परंतु वो हर सम्भव प्रयास करेंगे दोनों को बचाने का। पल पल युगों समान था। सभी की नजरें ऑपरेशन थिएटर के दरवाज़े पर लगी लाल बत्ती पर थीं जो अभी-अभी बंद हुयी। कुछ समय पश्चात डॉक्टर बाहर आये तो अनिरुद्ध लगभग उनकी ओर कूद सा गया।डॉक्टर के गंभीर चेहरे की ओर देखते ही उसका दिल थम सा गया।"हे ईश्वर कोई अनहोनी मत होने देना। मैं नंदिनी के बिना जीवित नहीं रह सकता।"परंतु होनी को कौन टाल सका। उसके पास और अधिक खड़े रहने की शक्ति ना थी, वह लगभग फर्श पर गिर सा गया।अधखुली आँखों से केवल इतना देख पाया, डाक्टर के पीछे से आ रही नर्स हाथों में सफ़ेद कपड़े में लिपटी नन्ही नंदिनी, मां को थमा रही थी। ..................अंतिम संस्कार और अन्य धार्मिक समारोहों के दो दिन बाद, पहली बार उसने अपनी छोटी नंदनी को बाहों में उठाया, कोमलता से झुकते हुए गौर से देखते हुए उसके नन्हे हाथों को छूने की कोशिश की, नन्ही परी ने उसकी उंगली को पकड़ हल्के से दबाया। एक अनोखा एहसास था, पहले कभी ना महसूस किया। यह उसकी अपनी बेटी का पहला स्पर्श था। प्यार से उसने दोनों गालों को चूमा, कुछ पल देखने के बाद साक्षी की और बढ़ा दिया।"नंदिनी की अंतिम इच्छा"वह एक फरिश्ते की भांति उसके जीवन में आई, उसे छोटी नंदिनी के रूप में जीवन भर के लिए अमूल्य उपहार दिया और चली गई। शारीरिक अपूर्णता के बावजूद, नंदिनी ने इस दुनिया को छोड़ने से पहले अपने परिवार को पूर्णता से भर दिया था। कुछ दुर्लभ और शुद्ध आत्माएं ऐसी होती हैं।
