कुछ क्षण अतीत से
कुछ क्षण अतीत से
अबकी बार ग्रीष्म ऋतु में, मुझे अपनी जन्मभूमि, भद्रवाह, जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले की एक खूबसूरत घाटी, जाने का अवसर मिला।
लोग इसे "छोटा कश्मीर" भी कहते हैं, परंतु स्थानीय लोग इसे कश्मीर से जोड़ कर देखना नहीं चाहते। इसकी प्राकृतिक सुंदरता, घास के मैदानों, बर्फ से ढकी पर्वत चोटियों, नदियों और शांत वातावरण के कारण, वे इसे शहरों की हलचल से दूर एकांत में रखना पसंद करते हैं।
मैं भाग्यशाली हूं कि मेरा जन्म इस घाटी के एक छोटे से गांव में हुआ।
लगभग 25 वर्षों के बाद, मैं अपने जन्मस्थान की एक बार फिर से यात्रा करने के लिए उत्साहित और रोमांचित थी। जन्मभूमि की यात्रा करने की सबसे अच्छी बात यह होती है कि आपको चचेरे भाई-बहन, रिश्तेदारों और बचपन के साथियों से मिलने का मौका मिलता है, और आप बचपन के दिनों को एक बार फिर से ताजा कर सकते हैं।
जम्मू से भद्रवाह करीब 200 km है। रास्ते में मुझे महसूस हुआ कि पिछले कई सालों में बहुत कुछ बदल गया है। जहां पहले जम्मू से भद्रवाह पहुंचने में करीब 9/10 घंटे लगते थे, अब मुश्किल से 5 घंटे लगे। चार लेन की सड़कें और चनेनी-नाशरी सुरंग देख प्रसन्नता मिली।
यह बेहद राहत की बात थी कि अब पहाड़ों की सड़कें काफी आरामदायक हो गई थीं।
रात का सफ़र होने के कारण लगभग सभी पहाड़ों पर टिमटिमाती रोशनी को देखना सुखद था, जो दर्शाता था कि बिजली अब अधिकांश स्थानों पर पहुंच गई है।
पूरे रास्ते, मैं इंतजार कर रही थी कि सफ़र कब समाप्त हो और मैं अपने बचपन की यादों को ताजा करूं।
सर्पीन और खूबसूरत पहाड़ी रास्तों को पार करके हम घाटी में दाखिल हुए।
पहला झटका मुझे तब लगा, जब धान के हरे-भरे खेत, जिन्हें देखने के लिए मैं काफ़ी उत्साहित थी, कहीं नहीं थे, या यूं कहें कि बहुत कम थे। अब उनकी जगह पक्के मकान थे। सड़क के दोनों ओर कई दुकानें बनी हुई थीं, अब सड़क से घाटी का नजारा देखना सम्भव नहीं था।
मुझे अपनी नानी का घर ढूँढने में भी कुछ पल लगे, अब वहां वह बड़ा चिनार का पेड़ नहीं था, जो सालों तक वहाँ हुआ करता था। गुड़िया की शादी हो या लुका-छिपी का खेल, पिकनिक हो या लड़ाई, वह पेड़ सब का साक्षी था, अखिर सब का पसंदीदा स्थान जो था।
उसकी जगह पर एक सूखा, आधा मरा हुआ चिनार का पेड़ देखकर मेरी आंखों में आंसू आ गए। घर में प्रवेश करते समय ऐसा लगा जैसे मैं कोई अजनबी हूं, और किसी दूसरे के घर में प्रवेश कर रही हूं।
घर के हर कमरे में झांकने पर बचपन की यादें आंखों के सामने ताजा हो गईं। वो गोल कमरा, घर का सबसे खूबसूरत कमरा, घाटी की ओर जिसकी खिड़कियां खुलती थीं। वह परिवार के किसी खास व्यक्ति या मेहमान के लिए रिजर्व रखा जाता था। उस में सोने के लिए अक्सर हम बच्चों में झगड़ा हुआ करता।
इस बार मेरे लिए रिजर्व रखा गया था, अखिर मैं भी तो अब मेहमान थी इस घर की।
सर्दियो में कड़ाके की ठंड पड़ती तो बहुत बार कई दिनों तक घर के अंदर ही रहना पड़ता था। बर्फबारी के दौरान पानी जम जाने से ज्यादातर पानी की पाइपलाइनें बंद हो जाती थीं, अक्सर बिजली गुल रहती तब खुद को गर्म रखना एक बड़ी चुनौती होती थी.
ऐसे समय में परिवार के एक साथ बैठने के लिए घर के सबसे बड़े कमरे में चिमनी( fireplace), घर का एक अद्भुत कोना होता था।
सबसे सुखदायक और मधुर ध्वनियों में से एक जो मैंने सुनी है, वह है आग से होने वाली लकड़ियों के चटकने की आवाज।
बहुत खूबसूरत दिन थे वो, जब कड़ाके की सर्दी में घर के सभी लोग चिमनी के पास बैठकर कहानियाँ सुनाते या अंताक्षरी खेलते या कुछ आध्यात्मिक बातों पर चर्चा करते थे।
आग के चारों ओर बैठकर, मूंगफली खाने, और उसी आग में आलू भूनने और अंडे भूनने की ज्वलंत यादें।
वह समय आज भी मेरे दिमाग में ताजा है। अब उन चिमनियो से धुआँ नहीं निकलता था, बल्कि चिमनियो स्थान पर बिजली के हीटर देख मन खुश कम हुआ और भावुक ज़्यादा।
वो हसीन दिन, बचपन की वो मासूम शरारतें, छोटी-छोटी बातों पर लड़ना झगड़ना। कभी किसी के बाग से सेब चुराना तो कभी सीढ़ीदार धान के खेतों में हाथ फैलाकर दौड़ना।
निःसंदेह, अब भी सेब के बहुत सारे बाग थे लेकिन एक बंद क्षेत्र में। लाल पके सेब मुझे अपनी और खींच रहे थे, एक बार फिर से कम से कम एक चोरी करने के लिए मेरे मन ने उकसाया, परंतु ऐसा नहीं कर सकी, बाड़ के अंदर होने के कारण अब उन तक पहुंचना आसान ना था। मैं काफ़ी देर तक उन्हें ललचायी निगाहों से देखती रही।
नानी मां के घर में, उनकी मृत्यु के बाद, नियमित रूप से बगीचे की देखभाल करने वाला कोई नहीं था। जहाँ कभी सेब, आड़ू और चेरी के कई पेड़ हुआ करते थे, वहां सेबों से लदा केवल एक पेड़ था। मेरे कदमों ने स्वतः ही मुझे उसकी ओर खींच लिया। पेड़ की छांव में बैठकर ऐसा लगा मानो मैं अपनी नानी की गोद में बैठी हूं।
सभी चचेरे भाई बहनों और दोस्तों से मिलकर दिली प्रसन्नता मिली। कुछ ने मुझे पहचाना, और बहुत कम को मैंने।
मेरे एक चचेरे भाई ने सुझाव दिया कि पहले हमें जाकर "कोटली का पुल" देखना चाहिए क्योंकि यह सबसे पुरानी भूतों की कहानियों और अफवाहों से जुड़ा था। जब हम बच्चे थे तो यकीन मानिए उस जगह के बारे में खौफनाक कहानियां थीं, "सूर्यास्त के बाद कभी वहां मत जाना, नहीं तो भूत तुम्हें पकड़ लेंगे।"
पुल गांव के बाहरी इलाके में एक सुनसान जगह पर था।
अब उस जगह कई घरों और दुकानों को देखकर हैरानी हुई, साथ ही खुशी भी, कि अब लोग उन पुरानी अफवाहों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते।
हमारे घर के पास एक छोटी नदी नीरू बहती थी। नदी को फिर से देखने के दौरान मैं प्रफुल्लित सी महसूस कर रही थी। बर्फ के ठंडे पानी में प्रवेश करने से खुद को ना रोक पायी। पानी में पैरों को डाल गर्म पत्थर पर बैठ, कुछ पल के लिए पुरानी यादों में खो गयी।
नीरू नदी के बर्फीले पानी में डुबकी लगाना, और बाद में गर्म पत्थरों पर लेटकर धूप का आनंद लेना, हमारा पसंदीदा शगल था।
मेरे दिमाग में सब कुछ ताजा था मानो कल की बात हो।
"अहा, क्या दिन थे वो भी।"
रात के खाने में जब मामी जी ने सुखी सब्जियों का व्यंजन परोसा तो मैं बाग बाग हो गई।
मुझे याद आ गया गर्मियों में, घरों की महिलाएं अक्सर ताजी कटी हुई सब्जियों को सुखाती थीं और उनसे माला बनाती। जब सर्दियों में, भारी बर्फबारी के कारण, ताजी सब्जियां उपलब्ध नहीं होती, तो सूखी सब्जियां लोगों के आहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती थीं।
अधिकतर ये सेम, बैंगन, टमाटर और कई अन्य स्थानीय सब्जियां होतीं। याद रहे सूखी सब्जियां भी उतनी ही स्वादिष्ट और सेहत के लिए फायदेमंद होती हैं जितनी कि ताज़ा।
अखिर में, इतना कहना चाहूँगी कि, मैं, मेरे दोस्तों और नाते रिश्तेदारों सहित सब कुछ बदल जाने के बावजूद, जाने क्यूं, घाटी अब भी मुझे बिल्कुल वैसी ही दिखती थी, जेसी तब जब मैं छोटी थी। वही नीरू नदी का बर्फीला पानी, वही बर्फ से लदे पहाड़, वही घास के मैदान और वही प्यारे लोग।
सर्दियाँ अभी भी धूमिल और बर्फीली थीं और गर्मियाँ अभी भी आरामदायक और सुखद।
4/5 दिन बिताने के बाद, उन खूबसूरत पलों को अपने दिल और अपने कैमरे में कैद करके, मैंने अगले साल वापस आने का वादा करते हुए, भारी मन के साथ सभी से विदाई ली। बहुत भावुक क्षण थे वो, हर किसी की आंखें भीगी हुयी थीं।
मेरे प्रवास के दौरान, मेरी आत्मा एक अनोखे प्रकार के नशे और खुमारी में लिप्त और पूर्ण शारीर आनंद में डूबा रहा।
पहाड़ मेरी आत्मा को सकारात्मक ऊर्जा और महान विचारों से भर देते हैं।
वर्षों बाद, यह मेरी एक यादगार यात्रा थी।
