वो एक बात,जो
वो एक बात,जो
हर मनुष्य के जीवन में कभी कभी अकस्मात ऐसे अनजाने पल में अनजाने चेहरों का सत्संग मिलता है, बातों बात में कोई ऐसी बात कह दी जाती हैं जो उसके जीवन का पथप्रदर्शक बन जाती है और भुलाए नहीं भूलती।कभी कभी उस घटनाक्रम के प्रभाव से तत्पश्चात बड़ी तेजी से विचारों में परिवर्तन आता है और अन्तर्मन में हूक उठती है कि जैसा सोचता था वैसा वस्तुत: है नहीं।
इसी तारतम्य में बीते दिनों की(उस समय हमारी आयु लगभग १७ वर्ष रही होगी) "वो एक बात" हमारे जेहन में स्मृति के रुप में समाई है।हम किसी के निवास पर एक बच्चे को विशेष विषय के पाठ्यक्रम के अध्यापन विसद् व्याख्या कर रहे थे तभी बच्चे के अभिभावक के साथ महानुभाव श्री "शलभ" जी (कविवर) मेरे समीप बैठ गये। सहसा उन्होंने मुझसे कुछ उद्गार सुनाने को कहा। हमने "क्या होगा" शीर्षक पर कुछ पंक्तियां सुनाई।बात के किसी मोड़ पर उन्होंने मुझसे कोई दो अंकों की संख्या सोचने को कह उसका इकाई अंक बताने को कहा।हमने वह अंक ७ बताया। इसपर उन्होंने कहा कि जिस प्रकार ७ एक अभाज्य संख्या है,उसी प्रकार आपके विचारों में दृढ़ता है जो कल्पना में आए लक्ष्य को जरुर बेधेगी।आप उस अर्जुन की तरह है जिसको कोई विचलित नहीं कर सकता और दहाई अंक पर आपने जो अंक २ सोच रखा है,वह सदैव न्यूनतम सम होने के कारण मदद करता रहेगा।और तो और दोनों अंकों का योग ९ है,वह एक अंक की महत्तम संख्या है यह आपको उच्चतम लक्ष्य तक पहुंचाने की क्षमता रखती है।
हम अब भी जीवन के आखिरी छोर पर भी"वो एक बात" की सार्थकता पर आत्मिक मनन करते हैं।