वो बरसात
वो बरसात
दिव्या एक १० वर्ष की एक हंसमुख ,चंचल ,लड़की है,जो पूरा दिन मस्ती ,मजाक ,करती रहती हैं, पूरा दिन खेलने - कूदने में व्यस्त रहती हैं ,जो देखने में काफी सुन्दर और चुलबुली हैं ,
एक दिन उनके घर उसकी मम्मी के गांव के पास के गांव का एक आदमी आया ,मामा के गांव के पास का होने की वजह से उसकी मम्मी उसे भैया कहती हैं,
दिव्या और उसके भाई - बहन उसे मामा जी कहते हैं, पहले दिन से ही वो दिव्या को घूर - घूर कर देखता हैं ,पर क्यों देखता हैं , ये बात शायद दिव्या को समझ नहीं आती थी,वो आदमी एक डॉक्टर हैं ,जो अपना गांव छोड़कर दिव्या के गांव में रहने आया ,उसका घर पर आना - जाना कभी कभार हो जाता ,
एक बार दिव्या को बुखार हुआ तो उसकी मम्मी ने उस मामा जी को बुला लिया, बुखार देखने के बहाने वो कभी उसके पेट को छूता ,कभी माथे ,तो कभी हाथ पकड़ता ,दिव्या को उसका इस तरह से छूना अच्छा नहीं लग रहा था ,पर क्या करें ,उसका घर पर आना - जाना कुछ ज्यादा ही हो रहा था ,कभी भी कहीँ भी आता - जाता ,घर में आ जाता था , सब बच्चों को एक बात सिखाई गई थी कि जब भी कोई बड़ा मिले तो उसे नमस्ते करनी चाहिए, दिव्या भी सबको नमस्ते करती थी उस मामा जी को भी ,जो आशिर्वाद देने के बहाने उसके सिर पर हाथ फेरता ,कभी चेहरे को छूता ,तो कभी बेटा - बेटा करके कमर पर हाथ रखता , तो कभी कंधे पर, कभी हालचाल पूछने के बहाने ,कभी पढ़ाई कैसी चल रही हैं ये पूछने के बहाने हाथ पकड़ता ,
दिव्या डर गई थी ,अंदर ही अंदर घुट रही थी ,किसी से कुछ बोल भी नहीं पा रही थी, कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि घर वालों को क्या और कैसे बताये ,उसे लगता था कि अगर ये उसका वहम हुआ तो ,घर वाले उस पर गुस्सा करेंगे ,
एक दिन तो हद ही हो गई ,दिव्या स्कूल से आ रही थी ,तेज बारिश हो रही थी, छाता भी नहीं था ,तो किताबें भीग जाएंगी इस डर से तेजी तेजी से कदम बढ़ाती हुई घर की तरफ भागी जा रही थी ,रास्ते में एक घर के सामने से गुजरी तो वहाँ बैठे एक बुजुर्ग ने आवाज देकर रोक लिया ,कि बारिश रुकने के बाद चली जाना ,अब बच्ची ही तो हैं ,रुक गई ,जान पहचान के थे ,सोचा ठीक ही कह रहें हैं , दुर्भाग्य से वो मामा नाम का शख्श भी बारिश के कारण साथ वाले घर के दरवाजे पर खड़ा था ,उसने दिव्या को आते हुए देख लिया ,अब उसके पास बारिश का बहाना था ,और वो वही आ गया ,आकर पास में ही खड़ा हो गया ,दिव्या ने उसे नमस्ते की ,तो सिर पर हाथ रखने के बहाने हाथ को सिर पर से ले जाते हुए छाती तक ले गया ,जैसे ही उसने छाती पर हाथ फेरा , दिव्या का चेहरा घबराहट के मारे लाल हो गया ,पसीना छूटने लगा ,फिर जाने कहाँ से हिम्मत आई उसने उस मामा जी को एक बड़े झटके से पीछे धकेल दिया, और उसे बहुत गुस्से भरी नजरों से देखा , वो आदमी वहाँ से चला गया ,दिव्या को कुछ शांति हुई ,उसके चेहरे पर एक तेज था , विजय का गर्व था ,जैसे उसने कोई युद्ध जीत लिया हो ,उसने एक गलत आदमी का जो उसे गन्दे तरीके से देखता और छूता था विरोध किया ,बारिश भी कम हो गई थी हल्की सी मुस्कुराहट लिए दिव्या घर आ गई ,उस दिन के बाद वो मामा नाम का आदमी घर के आसपास भी नही दिखा ।।
