deepti saxena

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4.4  

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मनहूस

मनहूस

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 "अरे आज सुबह सुबह देखो कैसी मनहूस का मुँह दिख गया"

बेऔलाद कमला कूड़ा डालने बाहर घूरे पे गयी तो वहां आने वाली औरतें बुदबुदाई। कमला के सदमा से लग गया। अभी तो घर में ही ताने सुन रही थी। आज सास के बाहर दावत में जाने के कारण कूड़ा डालने आयी तो बाहर की औरतों को जिन्हें सुबह धुंधलके में वो पहचान नहीं पाई ; उनकी बातें सुनकर स्तब्ध रह गयी।

घर आकर रोने लगी। उसका पति मुनेश आया और कारण पूछा तो उसने बताया।

मुनेश मुस्कुराया और बोला " जाने दे भगवान पर भरोसा रख"

ऐसी सांत्वना से 10 साल गुजर गए। एक दिन उसे टाइफाइड बना। बुरी हालत हो गयी। हॉस्पिटल में भर्ती हुई। मौत के मुह से बच कर आई। कुछ दिनों बाद उसकी गोद भर गई। घरवाले बड़े खुश। कई महीनों बाद वो घर के बाहर झाडू लगा रही । कुछ औरतों को किसी और के लिए कहते सुना

"अरे आज देखो वो मनहूस सुबह सुबह पानी भरने आ गयी। दिन खराब जाएगा"

कमला थोड़ी देर ठिठकी फिर उसे समाज की असलियत का भान हुआ। पुराना समय याद कर मुँह कसैला हुआ। फिर अपने काम में जुट गई। आज वो किसी दूसरी मजबूर औरत के लिए दुःखी थी।


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