दिखावटी दुनिया
दिखावटी दुनिया
"अरे! दीदी, आज आपको देखने वाले आये हैं। आप इतना डर क्यों रही हो ?" बेला की छोटी बहन ने उत्सुकता से पूछा। बेला मायूस आवाज़ में बोली," ये जो लड़का देखने आया है, क्या पता मेरी जिंदगी बिगाड़ेगा या बनाएगा?"
"आप ऐसा क्यों सोच रही हो? वो तो बाबा से कह रहा था आपको अपने बड़े से घर की रौनक बनाएगा।"
"अरे नहीं, यहां से ले जाते समय सब ऐसी ही बातें बनाते हैं, लेकिन बाद में कोई ध्यान नहीं रखता।"
"अच्छा,ऐसा भी होता है?"
"एक तो हम अपना घरबार, पालक-पोषक और मित्रों को छोड़कर जाते हैं, उसके बावजूद हमारा निरादर होता है।"
"कैसा निरादर दीदी?"
"कभी हमें भूखा-प्यासा रखा जाता है तो कभी दरवाजों के भीतर कर दिया जाता है, जहां रोशनी भी नसीब नहीं होती। भूख-प्यास से ही न जाने कितनों का दम निकल जाता है"
"अरे! ऐसा जुल्म...ये तो पाप है, दीदी।"
"बीमारी-परेशानी में कोई पूछता तक नहीं। अपने आप जिंदगी के जद्दोजहद करके बच जाओ तो ठीक वरना...."
"सच में ये तो बड़ी दुखद बात है।"
"अधिकतर लोग यही नहीं जानते कि जब हम सुखी और स्वस्थ होंगे तभी फूलेंगे-फलेंगे। हमें भी देखभाल की आवश्यकता है। जब हम खुश होंगे तभी तो खुशी बांटेंगे।"
"हाँ, यह तो होता ही है। "
"आज का ज़माना सोशल मीडिया पर झूठे फोटो डालकर वाहवाही लूटने का है। असली प्रेम तो बस कुछ नसीब वालों के हिस्से में ही रह गया है।"
ये कहकर बेला चुप हो गयी। उसकी बातों में समाज का दिखावटी रूप झलक रहा था। इतने में वो लड़का आया और वृक्षारोपण महोत्सव हेतु उसे खरीद कर ले गया। लड़का उसके फूल और गंध से बहुत प्रसन्न था। बेला आशंकाओं से भरी सजल आंखों से नर्सरी को निहारती हुई चली जा रही थी।
