वो आखिरी कॉल
वो आखिरी कॉल
मैं कई दिनों से सोच रहा था .....फोन करने को पिता जी को पर हिम्मत नहीं हो रही थी .....क्योंकि उनसे एक बार बात करने के बाद मन अशांत हो जाता था और उन्हीं के पास घूमने लगता था कि .....वह अकेले कैसे रहते होंगे, उनका अकेलापन कैसे कटता होगा ...आदि आदि।
माँ के जाने के बाद से वह अंदर से टूट गये थे पर बाहर से सदा खुश रहने का दिखावा करते थे, पर हम जानते थे कि वह हम लोगों को कुछ बताना नहीं चाहते थे पर अंदर ही अंदर मन मे माँ को याद करके रोते थे।
उनसे फोन पर बात करते समय मैंने महसूस किया, कई बार .....,यही कारण था बात न करने का। इधर कई दिनों से उनको लेकर मन में अजीब अजीब से ख्याल आ रहे थे .....,रोज सोचता कि आज बात करके रहूँगा .....,फोन हाथ में लेता फिर रख देता .....,इसी तरह चार दिन बीत गये।
आज हिम्मत करके फोन करके उनसे बात करके रहूँगा, यह सोचकर फोन करने के लिए जैसे ही पिताजी का नम्बर डायल कर रहा था कि तभी फोन आ गया उनका .....,उठाकर बोला .....,हैल्लो पिता जी .....,पर उधर से आवाज आई कि .....,पिता जी अब नहीं रहे ......,अभी अभी ......,आगे कुछ सुनने की हिम्मत नहीं हुई ......,क्योंकि वह आखिरी कॉल थी।।