बेबसी
बेबसी
बाबू हरि वंश राय जो जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं। पर उनके मन की इच्छा जागृत हो उठी जो उन्होंने अपनी पत्नी के संग सोचा था कि एक बार चार धाम
की यात्रा सपरिवार करें। पर दुनियादारी के चक्कर में पूरी न हो सकी, पत्नी भी पिछले साल सांसारिक यात्रा पूरी कर अकेला छोड़ परलोक सिधार गई थी, बाबू जी पूरी तरह से टूट गए थे। हमेशा सदा खुश रहने तथा बात बात पर खिल खिला कर हँसने वाले इंसान ने एक चुप्पी सी ओढ़ ली,और धीरे धीरे अंदर से टूटने लगे।
उन्होंने कई बार बेटे को बोला की एक बार परिवार सहित चार धाम की यात्रा करा दे ताकि मैं चैन से तेरी माँ के पास जा सकूँ, बेटे ने कहा एक बार सिंगापुर से टूर से आ जाऊँ फिर चलते हैं। आज बाबू जी ने खाना खाते समय जब से समाचार सुना है कि चार धाम की यात्रा केदारनाथ में आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण अनिश्चित काल के लिए स्थगित है तब से कुछ ज्यादा ही बेचैन लग रहे थे, जो चेहरे पर साफ झलक रही थी। जैसे कुछ छूट रहा हो, आँखों में घोर निराशा के बादल छा रहे थे, एक वीरानी सी चुप्पी, जैसे जीवन के अंतिम क्षणों में कुछ खोने का अहसास। वहीं कुछ अधूरा रहने का मलाल, मानो अभी नहीं तो कभी नहीं। उम्मीदें टूटने लगी, दिल में एक हूक सी उठ रही थी, जैसे कोई ख़्वाब अधूरा सा रह गया हो ,जो अब पूरा नहीं हो सकता।
कुछ इसी तरह के निराशा भरे विचार के भँवर में डूबते उतरते उस रात बाबू जी सोये तो, फिर उठ नहीं सके, सुबह का सूरज नहीं देख सके।
हाँ,चेहरे पर उदासी और बेबसी का भाव साफ झलक रहे थे।
