STORYMIRROR

Madhu Vashishta

Inspirational

4  

Madhu Vashishta

Inspirational

वक्त बदलते देर लगे ना

वक्त बदलते देर लगे ना

6 mins
288

दरवाजे पर डोर बेल बजी। भावना जी ने जब दरवाजा खोला तो सामने निधि खड़ी थी। "नमस्ते भाभी! कैसी हो?" भावना जी घृणामिश्रित निगाहों से उसे देखकर बोली , "ठीक हूं!" निधि के अंदर आने पर भावना जी ने दरवाजा बंद किया और दोनों ही सोफे पर शांत बैठ गई। थोड़ी देर बाद चुप्पी तोड़ते हुए निधि ने पूछा "भाभी आप रोहन को अमेरिका से क्यों नहीं बुलवा लेती? नौकरी तो वह यहां भी कर लेगा ? आप यहां पर कितनी अकेली पड़ गई हो ना?"


"रोहन के पिता वसीयत में कोई जायदाद नहीं छोड़ गए हैं उसके लिए। कमाना तो उसे पड़ेगा ही ना?" बोलते हुए भावना जी का चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था।


"भाभी मुझे माफ कर दो", निधि की आवाज रुआंसी हो चली थी। भावना जी बुरा सा मुंह बनाकर सामने बैठ गई ।


निधि वर्मा जी की बड़ी बहन थी। वर्मा जी का 4 कमरों का बहुत बड़ा फ्लैट मुंबई में था लेकिन वर्मा जी की दिल्ली सरकार में असिस्टेंट की नौकरी लगने के कारण उन्हें दिल्ली आना पड़ा और वही उन्होंने अपनी सहकर्मी भावना जी से दोनों परिवारों की रजामंदी से विवाह भी कर लिया था। दिल्ली आने के बाद वर्मा जी पहले तो मुंबई जल्दी जल्दी चले भी जाते थे लेकिन रोहन और श्वेता के पैदा होने के बाद वर्मा जी मुंबई में अब जल्दी-जल्दी नहीं जा पाते थे। वर्मा जी के पिता मुंबई में बैंक मैनेजर थे। वर्मा जी के परिवार में केवल वह और उनकी छोटी बहन निधि ही थे। निधि का ससुराल संयुक्त परिवार था और घर के पास मुंबई में ही था। हालांकि निधि का संयुक्त परिवार था लेकिन फिर भी सभी अपनी अलग-अलग गृहस्ती बनाए हुए थे इसलिए निधि के दोनों बेटे मायके में ही पैदा हुए थे।              

कुछ समय बाद जब वर्मा जी के पिता भी रिटायर हो चुके थे और उनकी माता जी को दमे की बीमारी हो गई थी। शुगर और बीपी तो पिताजी का भी बड़ा ही रहता था। एक दिन जब वर्मा जी को खबर मिली कि उनके पिताजी को पिताजी को हार्ट अटैक हुआ है तो वह मुंबई गए और उन्होंने उन दोनों को दिल्ली अपने पास लाने का भरसक प्रयत्न भी किया लेकिन दोनों में से कोई भी दिल्ली नहीं आना चाहता था और वर्मा जी उन्हें अकेला भी नहीं छोड़कर आ सकते थे । इसलिए वर्मा जी ने निधि से कुछ दिन माता पिता के पास रहने की प्रार्थना की तो निधि ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि वह माता पिता जी के पास अपने परिवार के साथ रहकर उनकी सेवा केवल इस शर्त पर रह सकती थी कि वर्मा जी अपना हिस्सा छोड़ कर इस घर को निधि के नाम कर दें। क्योंकि ससुराल में रहते हुए उसे अपने परिवार की भी बहुत सी व्यवस्तताएं हैं। यह मायके वाला घर अगर उसके नाम पर ही हो जाता है तो उसके पति को भी यहां आकर रहने में कोई आपत्ति नहीं होगी। वर्मा जी क्योंकि खुद तो वहां रहकर अपने माता पिता का ख्याल नहीं रख सकते थे और भावना जी भी दिल्ली सरकार में ही नौकरी करती थी इसलिए वह भी अकेली वहां पर ज्यादा समय नहीं रह सकती थी इसलिए अंततः उन्होंने निधि की ही बात मान कर उस घर से अपना हिस्सा छोड़ने के लिए कानूनी कागजों पर भी साइन कर दिया।   अगली गर्मियों की छुट्टियों में जब वह सपरिवार मुंबई गए तो उन्होंने पाया कि उनका कमरा निधि ने अपना बना लिया था और बाकि कमरे अपने दोनों बच्चों के। किसी तरह से ड्राइंग रूम में ही भावना जी और वर्मा जी ने अपने परिवार के साथ एक सप्ताह काटा। अम्मा बाबूजी भी यह सब देख कर चुप ही थे शायद यह उनकी मजबूरी ही होगी क्योंकि अब उन्हें निधि के साथ ही रहना था। दुखी मन से वर्मा जी दिल्ली तो लौट आए लेकिन उसके बाद दोनों ने कभी भी निधि से बात नहीं करी। वर्मा जी के माता और पिता की मृत्यु के समय भी जब यह दोनों गए तो उन्होंने अपना इंतजाम घर के पास के एक होटल में किया था।


अपनी रिटायरमेंट के बाद वर्मा जी अक्सर उदास और चुप ही रहते थे। रोहन विदेश चला गया था और श्वेता की भी शादी हो चुकी थी और वह भी अपने ससुराल चली गई थी। भावना जी को भी गठिया की बीमारी ने घेर लिया था। बेटी श्वेता कभी मिलने आ जाती थी। एक दिन अचानक ही रात को वर्मा जी सोए तो सुबह उठ ही ना पाए। अमेरिका से रोहन भी आया था लेकिन उसको नौकरी पर वापिस जाना था तो भावना जी ने उसे रोका भी नहीं। श्वेता अपने ससुराल चली गई थी। रिटायरमेंट के बाद सोसाइटी के जिस फ्लैट में वह रहती थी उसके बाहर खड़ा गार्ड उनके लिए दूध और घर का सामान ले आता था और गार्ड की पत्नी भावना जी के घर का काम कर देती थी।


आज निधि को अपने घर में देखकर भावना को बेहद गुस्सा आ रहा था लेकिन इससे पहले कि वह कुछ बोलती कि तभी निधि बोली। "भाभी, भैया की मृत्यु के समय मुझे चिकनगुनिया हो रहा था ,इसलिए नहीं आ पाई।" फिर वह लगभग गिड़गिड़ाती हुई बोली भाभी अगर "आपने मुझे माफ किया तो भैया भी मुझे माफ कर देंगे। मैंने उनका घर तो अपने नाम करा लिया था लेकिन जैसे मेरे संस्कार मेरे बच्चों ने देखें उन्होंने भी वैसा ही करा। इनकी मृत्यु के बाद दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली और इनकी सारी जमा पूंजी आधी आधी बांट ली । मेरी बीमारी में भी सेवा करने की बजाय मुझ पर घर अपने नाम कराने के लिए दबाव डालते थे। दोनों मिलकर मां के गहने भी छीनना चाहते थे।


इनके जाने के बाद मुझे हर पल भैया की याद आती थी मेरे एक बार कहने पर ही उन्होंने अम्मा बाबूजी के लिए अपना घर भी मेरे नाम लिख दिया। धन्य है ऐसे सपूत बेटे। निधि फूट-फूटकर रो दी। अगर मैंने अपने भैया को अपना बनाया होता तो मैं इतनी अकेली कभी नहीं होती भाभी!!! उसके बाद निधि ने अपने बैग में से अम्मा के बहुत से गहने निकाल कर कहा भाभी इन पर सिर्फ आपका ही अधिकार है। अगर आप चाहो तो मैं घर को भी आपके नाम पर कर दूंगी।" अब निधि और भावना जी दोनों ही फूट-फूटकर रो रहीं थीं। निधि बोली "भाभी मैं बच्चों को बिना बताए फ्लाइट लेकर दिल्ली आ गई। अब मैं वहां कभी नहीं जाऊंगी। मैं------------।" भावना जी ने निधि को शांत होने के लिए कहा और बोली ह"में किसी चीज की कोई जरूरत नहीं है। श्वेता अपने घर में खुश है और रोहन जब आएगा तब देखेंगे। यह घर तुम्हारे भाई का ही है, तुम जब तक चाहो यहां रह सकती हो। हम एक से दो भले।" ऐसा कह कर भावना जी सामने रखी वर्मा जी की फोटो को देखा ------वर्मा जी भी तो अपने परिवार से बहुत प्यार करते थे । ऐसा ही कुछ सोचते हुए भावना जी निधि के लिए चाय बनाने को उठ पड़ी।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational