विवाह-एक खतरनाक ब्यथा(२)
विवाह-एक खतरनाक ब्यथा(२)
भाग एक में आप सबने पढ़ा कि बुंदेलखण्डी शादी में कौन कौन जन्तु(रिश्तेदार) कहाँ कहाँ आग लगाते हैं,ऐसे रिश्तेदार खूनपिपासू और जानलेवा होते हैं, अब देखिए बुंदेलखण्डी शादी में क्या क्या होता है?और पिछले भाग का इस भाग से कोई लेना देना नहीं हैं,इस बार सभी चरित्र बदल दिए गए हैं।
बारात वाली सुबह____
यार,तेरी शादी थी और मैं ना आ पाता,तू ऐसा सोच भी कैसें सकता हैं,बड़ी मुश्किल से करेंट का रिजर्वेशन लेकर आ पाया हूँ, रात भर सोया भी नहीं, दूल्हें का दोस्त राजीव बोला।
कोई बात नहीं यार ! तू नहा धोकर नाश्ता कर लें ,ये सबसे एकांत कमरा है यहाँ कोई नहीं आता जाता,तू कुछ देर सो लियों,विनय बोला।
यार ! तो रात को फिर तूने बैचलर पार्टी का मज़ा लिया या नहीं... दारू..शारू..,राजीव ने पूछा।
कहाँ यार ! ना कोई दोस्त हैं ना कोई यार,तुम लोग तो आज आ रहे हो ,वो भी मेरी शादी के दिन और फिर घर में सबसे बड़ा लड़का,कहों तो पूरे खानदान में मैं ही सबसे बड़ा,छोटे भाइयों के सामने ऐसा कैसे कर सकता हूँ, विनय बोला।
तो बारात मे इंतज़ाम किया हैं ना कि वहाँ भी सूखा सूखा,राजीव ने पूछा।
भाई ! बारात में तू तो नहा लियों दारू से ,इतना इंतज़ाम किया है, विनय बोला।
तब तो ठीक है भाई,अच्छा एक बात और बता एक सुन्दर सी लड़की दिखी थीं नीचे पिंक ड्रेस में, कौन थीं यार ?क्या धासू लड़की थीं, राजीव ने पूछा।
बेटा ! भूल कर ना देख लियों उसकी तरफ,मेरी बड़ी बुआ की नातिन है, बड़ी बुआ तेरी आँखें फोड़ देगीं,चील से भी ज्यादा तेंज निगाहें हैं उनकी,विनय बोला।
ना भाई ! सूरदास नहीं बनना, जैसा हूँ ठीक हूँ, राजीव बोला।
अच्छा, चल तू तैयार हो जा फिर और भी दोस्त आने वाले हैं, उनके लिए भी सब इंतज़ाम करना हैं, सबके मेसेज पड़े हैं, देखता हूँ ,कौन कहाँ तक पहुँचा और इतना कहकर विनय और भी काम सम्भालने चला गया।
उधर विनय की माँ सुधा आज पानी के लिए मोटर चला चलाकर परेशान हैं, इतनी बार चारों बाथरुम की टंकियाँ भरी जा चुकी हैं लेकिन कुछ देर में सब खाली,कुछ सामान चाहिए होता है तो सुधा कहाँ है?किसी को कोई नेगचार पूछना होता है तो सुधा कहाँ है, कोई रिश्तेदार आया तो सुधा कहाँ है, मतलब सुधा बेचारी एक और काम इतने सारें।
तभी बाथरूम से बाँदा वाली मौसिया सास नहाकर निकली और____
काहे,विनय की अम्मा ! खुशबू वाला साबुन काहे नहीं धरा , स्नानघर मा,हम तो बिना साबुन लगाएं नहाकर आ गए, इतनी कंजूसी,ऊँ भी लड़का के ब्याहे मा।
ऊँ का है ना मौसी !भूल गए थे,तुम आवाज दे देती तो हम दे देते,सुधा बोली।
जो हुई चुका ता हुई चुका,तुम हमें खुशबू वाला तेल देदो तो हम लगा ले,मौसी बोली।
अभी लाए देते हैं, सुधा तेल लाने चली गई तेल लाकर लौटी तो अतर्रा वाली बुआ सास आ धमकी और कहने लगी____
का सुधा ! इ इंतज़ाम कीन्हौं हो, तुम पंचै ! माटी साहीं खाना हैं, मुँ मा धरें लायक निहा,कुछु अच्छा ना बनवा लेते,लरका का ब्याह एकदा होवत है, कुछु बार बार थोड़े होवत हैं, अतर्रा वाली बुआ बोली।
अपनी सोच से तो सब इंतज़ाम ठीकई हैं, तुम्हें का गलत लगों,बुआ ! तुमहीं बता देव,सुधा ने पूछा।
तुम तो कद्दू की सब्जी,आलू की सब्जी,पूड़ी और मूँग के हलवा में निपटा दिन्हौ,कुछ नीक सा बनवा लेते जैसे मटर पनीर,छोला भटूरा,मीठे मा रसगुल्ला, कुछु अच्छा कि खा के कलेजा जुड़ा जाए,अतर्रा वाली बुआ बोली।
अब तो बुआ हम का करें, तुमाय भतीजे से कहो तुम हमसे ना कहों और सुधा पल्ला झाड़कर भाग गई।
उधर सुधा की चित्रकूट वाली ननद ने आवाज लगाईं____
ओ सुधा भाभी ! कब से नहाधोकर भूखें बैठें हैं, तुम हमार तो कोन्हौं खबर ना लिन्हौं।
अरे ,आते हैं जिज्जी ! और खाने का इंतज़ाम तो ऊपर छत पर हैं ना ,वहीं सब खा रहें हैं, सुधा बोली।
कहीं तुम सठिया तो नहीं गई हो,हम बीस साल से सन्यासी बने बैठे और तुम कह रहीं हो कि सबका छुआ खा लो ,तुम हमारे लिए सात्विक भोजन बनाओ अपनी रसोई में,सादी लौंकी की सब्जी,मूँग की दाल और रोटी,समझी ! तभी हम खाएंगे, चित्रकूट वाली ननद बोली।
ठीक है अभी बनाकर लाते हैं,सुधा इतना कहकर खाना बनाने चली गई।
चित्रकूट वाली ननद के पति कम उम्र मे उनको छोड़कर चले गए थें, तब से सन्यासिनी बन गई बेचारी,बेटा बहु कभी बुलाते नहीं तो चित्रकूट मे स्थित सती अनुसुइया के किसी आश्रम में रहतीं हैं बेचारी।
गेट पर एक टैक्सी आकर रूकी____
राजेश....ओ राजेश,कहाँ हैं तू?
ये आवाज़ है कर्नल इन्द्रप्रताप की,जो कि राजेश के बड़े मामा हैं, राजेश यानि कि दूल्हें का पिता___
आवाज सुनकर राजेश फौरन गेट की तरफ भागा और मामा जी को नमस्ते कहीं....
हाँ....हाँ..रहने भी दो ये चोचलें,किसी को स्टेशन तो भेज सकते थे,मैं और तुम्हारी मामी कितने परेशान हुए यहाँ तक पहुँचने के लिए___कर्नल मामा बोले।
माफ कीजिएगा, मामाजी ! गलती हो गई, राजेश डरते हुए बोला।
राजेश ने टैक्सी वाले को किराया देना चाहा तो मामा बोल पड़े___
मैं ने भाड़ा चुका दिया है, मै कभी किसी का एहसान नहीं लेता।
अच्छा, ठीक है, पहले आप दोनों फ्रेश हो जाकर नाश्ता करके आराम कीजिए, बाकी बातें बाद में करते हैं।
तभी राजेश सुधा को ढ़ूढ़ते हुए रसोई में पहुँचा___
अरे,ये क्या? इतना पैसा देके रसोइया लगवा रखा ना है , फिर भी तुम क्यों खाना बना रही हो? राजेश ने पूछा।
ये खाना चित्रकूट वाली जिज्जी के लाने बना रहें हैं,सुधा बोली।
सही में सुधा,शादी ना हुई जी का जंजाल हो गई है, इसे ना देखो तो वो मुँ बनाता है और उसे देखों तो ये मुँ बनाता है, राजेश बोला।
अब जो भी है दो चार दिन की बात है काट लो,सुधा बोली।
तभी झाँसी वाली ताई जी ने आवाज लगाई__
अरी ओ बड़ी बहु....
हाँ,बड़ी अम्मा !का है,इते है हम,सुधा बोली।
कहाँ घुसी हो रसोइया में और राजेश तुम भी जहीं हों,अच्छा तो गुटुर गूँ हो रही हैं तोता मैना में, ऐसई तुमाही बाप मताई हते,वे भी जब देखो एक दूसरे के संगे चिपके रहत ते और ऐसई तुमई औरें हो,अरे कछु शरम लिहाज हैं के नइया,बहु आए वाली है, उके सामने भी ऐसई ढंग कर हो,तुम दोनों, झाँसी वाली ताईं बोल पड़ी।
अब तो सुधा के काटो तो खून ना निकलें और राजेश रसोई से उड़न छूँ हो गया।
तभी सुधा ने बेशर्म होके पूछा___
कहो, का बात हैं बड़ी अम्मा,कछु काम हतो का हमसे।
ना,हम तो जे पूछबें आए ते कि दूल्हा निकासी के लाने हम एक अच्छी सी साड़ी दे देती पहनबे के लाने,कौन्हू पुरानी सी धरी होए तो,झाँसी वाली बड़ी अम्मा बोली।
पुरानी काहें, अम्मा तुम तो नई ले लइओ,सबकुछु तुमाओ तो हैं, सुधा बोली।
कितनी अच्छी बहु हैं,एक वो हमाई सगी बहु ना किराए के पइसा दए और ना खर्चा के,बड़ी अम्मा बोली।
अब हमाई सास तो है नइया, जो कछु हैं तुमई हो बड़ी अम्मा,सुधा बोली।
जीती रह,दूधो नहाओ,पूतो फलो और इतना कहकर बड़ी अम्मा चली गई।
और इसी तरह दोपहर होने होने तक सभी रिश्तेदार शादी में इकट्ठे होने के लिए पहुँच गए।
और फिर हुई शादी की तैयारियाँ शुरु, कोई मेकअप मे बिजी,कोई अपने कपड़ो की मैंचिग के एयरिंग और चूड़ियों मे बिजी,मतलब सब के पास काम था,सब एक दूसरे से सुन्दर दिखना चाहतें थे और जो बहुएं थीं वो एक दूसरें गहनों और कपड़ो को देखकर जल रहीं थीं।
दूल्हें का उबटन हुआ और आज सब लड़के लड़कियों ने अपने अपने पसंद के लड़के लड़कियों को मजाक मजाक मे हल्दी लगा दी,फिर आपस में शादी हो चाहे ना हो मज़ा लेने मे कोई हर्ज नहीं हैं।
दूल्हा सज सँवर के तैयार हुआ,दूल्हे की निकासी का समय हुआ महिलाओं ने मंगलगीत गाने शुरु कर दिए ,और देवी के दर्शन के लिए दूल्हें को घोड़ी मे बैठकर मंदिर तक जाना था,ये वो समय होता हैं जब एक गधा घोड़ी पर चढ़ता हैं और जैसे ही दूल्हा घोड़ी पर बैठा पता नहीं किसी को क्या शरारत सूझी,किसी ने जलती हुई बीड़ी घोड़ी को छुला दी,अब तो घोड़ी बिदक गई और गधा मतलब दूल्हा घोड़ी से नीचे,बड़ी मुश्किल से घोड़े वाले ने घोड़ी को काबू किया, दूल्हे के दोस्त बोले,भाई सीख ले घोड़ी वाले से कि कैसे काबू किया जाता है आगें जरूरत पड़ सकती है।
ऐसा हँसी मजाक तो चलता रहता हैं शादी ब्याह में,अब बारात कुलदेवी के दर्शन भी करके आ गई और बस में बैठकर रवाना हो गई, पीछे दो चार कारें और उनमें नई फसल मतलब युवा वर्ग, पीछे इसलिए कि,___
जो डिग्गी में दारू की बोतलें हैं उन्हें कौन खतम करेगा, ऐसा नहीं है कि बस वाले लोग भी इससे अनछुए थे वो भी समय समय पर मज़ा ले रहे थे,काफ़िला मज़े मज़े ले लेकर आगें बढ़ रहा था।
मतलब गज़ब की बात है ना कि एक लड़की को विदा कराने दूल्हा इतने सारे लोगों को लेकर जाता है और वो शेरनी सी अपने मायके से अकेली ही चली आती हैं।
तो फिर क्या था काफ़िला पहुँचा जनवासे, कभी कभी होता है कि ज्यादा पी लेने से लड़की के यहाँ नाश्ता करने के बाद कुछ लड़को को ऐसी उल्टियाँ होती हैं... ऐसीं उल्टियाँ होती है कि सब समझ जाते हैं कि साले क्या करके आए होगें।
अब सबसे मज़ेदार पार्ट जनवासे से घर तक बारात पहुँचने में सबका डांस,जो दारू चढ़ी होती हैं वो नागिन डाँस करके और ना जाने कौन से आइटम डाँस आपको देखने को मिल जाएंगे, लोट लोटकर जो जमीन साफ की जाती हैं ना भाईसाब मत पूछिए,उस दिन तो वो भी कूल्हें मटका लेता है जिसे डाँस के नाम पर कुछ नहीं आता।
इससे आगें बाद में___