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Saroj Verma

Drama

3  

Saroj Verma

Drama

विश्वासघात--(१६)

विश्वासघात--(१६)

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शक्तिसिंह और संदीप जैसे ही घर पहुँचे, उन्होंने सारा वाक्या लीला और कुसुम को सुनाया, सब खूब हँसें।

    बरखुरदार! बहुत बचे, अगर मोनिका डाँन्स के लिए ले जाती तो बेटा रेट्रो डान्स कैसे करते? शक्तिसिंह जी बोलें।

  अरे,अंकल ! बहुत बचाया आपने, संदीप बोला।

 अच्छा! अब दोनों जाकर हाथ मुँह धोकर कपड़े बदल लो, मैं खाना लगाती हूँ, वैसे भी काफ़ी देर हो गई हैं, बाकी बातें बाद में करना, लीला बोली।

  हाँ, बेटा संदीप! पहले खाना खाते हैं, क्लब में तो सिवाय दारू के कुछ था ही नहीं, शक्तिसिंह जी बोले।

सही कहा अंकल आपने, अच्छा मैं कपड़े बदलकर आता हूँ, संदीप बोला।

  और फिर सबने खाना खाकर आगे की योजना बनाई, अब बारी थी लीला के अभिनय की, ये तय किया गया कि सुबह मन्दिर में मधु की माँ साधना से मुलाकात की जाएगी।

   रात में सब योजना बनाकर सो गए, सुबह हुई और सब पहले से मन्दिर पहुँच गए और मोटर में बैठकर साधना का इंतजार करने लगे।

    साधना की मोटर आई, संदीप बोला मैं नहीं जाऊँगा, आप लोग जाइए और ऐसे जताइएगा कि इत्तेफ़ाक़ से मुलाकात हुई है, पहले उन्हें मन्दिर से दर्शन करके लौटने दीजिए, आप उनसे मन्दिर के द्वार पर मिलिए, जैसे कि अचानक ही मिल गए हो।

    ठीक है, शक्तिसिंह जी बोलें।

कुछ देर बाद सबने देखा कि साधना दर्शन करके लौट रही है___

    लीला, शक्तिसिंह और कुसुम मंदिर की ओर चल दिए उधर से मधु की माँ साधना को आते हुए देखकर शक्तिसिंह जी ने साधना को टोका____

   अरे, बहनजी! आप! उस दिन जो मेरे बेटे प्रदीप ने आपकी बेटी मधु के साथ व्यवहार किया था, मैं उसके लिए बहुत शर्मिन्दा हूँ, शक्तिसिंह जी बोले।

  कोई बात नहीं भाईसाहब! मेरी बेटी ने हरकत ही ऐसी की थी कि कोई भी नाराज हो जाता, साधना बोली।

  लेकिन बहनजी ! फिर भी मेरे बेटे को ऐसी हरकत नहीं करनी चाहिए थी, लीला बोली।

 जी, माफ़ कीजिए ,मैंने आपको पहचाना नहीं, साधना बोली।

अरे, ये मेरी घरवाली है लीला, उस दिन ये मन्दिर नहीं आई थी, ये मेरी बड़ी बेटी कुसुम और प्रदीप को तो आप जानती ही हैं, शक्तिसिंह जी बोले।

वैसे प्रदीप की गलती माफ़ करने के लायक नहीं है, मैंने जब सुना तो बहुत बुरा लगा मुझे, एक पल को लगा कि ऐसी परवरिश तो नहीं दी थी मैंने, लीला बोली।

अच्छा.... अच्छा... कोई बात नहीं बहन जी, बच्चे है, नादानी में गलतियां हो जातीं हैं, साधना बोली।

 सही कहा आपने बहनजी !कभी घर आइए ना! बैठकर बातें करतें हैं, लीला ने साधना से कहा।

 मैं बहुत कम ही घर से निकलती हूँ, मन्दिर जाने के सिवाय और कहीं आती जाती नहीं, साधना बोली।

 कोई बात नहीं बहनजी! अगर मैं कभी आपके घर आना चाहूँ तो आ सकती हूँ ना! तब तो आपको कोई एतराज ना होगा, लीला बोली।

 एतराज़ कैसा ? बहनजी! आपका ही घर है, जब मन करें, तब आइए, साधना बोली।

 तो ठीक है, मैं आज या कल में आपके घर न्यौता देने आती हूँ, इतवार को प्रदीप की सालगिरह है ना! लीला बोली।

  अच्छा.... अच्छा... जरूर आइए, मैं आपका इंतजार करूँगी, साधना बोली।

 जी जरूर आऊँगी, अच्छा! अब हम सब चलते हैं, काफी देर हो गई, आपके घर आऊँगी तब इत्मीनान से बातें करूँगी, लीला बोली।

  अच्छा! ठीक है नमस्ते! और इतना कहकर साधना चली गई।

 लीला का अभिनय देखकर शक्तिसिंह जी बोले___

वाह...वाह....जी! तुमने तो सबको चारों खाने चित्त कर दिया।

  अरे, वाह...लीला माँ! कमाल कर दिया आपने तो मधु की माँ को घर बुलाने का बहाना भी ढूंढ लिया, कुसुम बोली।

 लेकिन इतवार तो दो दिन के ही बाद है, चलो तैयारियाँ करनीं हैं, शक्तिसिंह जी बोलें।

 चिंता मत करिए, ज्यादा लोगों को नहीं बुलाएंगे, नहीं तो सबको पता चल जाएगा कि प्रदीप हमारा बेटा नहीं है, ये राज साधना के सामने नहीं खुलना चाहिए, वो तो एक बहाना है, साधना को घर बुलाने का, भीड़ इकट्ठी नहीं करनी है, लीला बोली।

 हाँ, ठीक कहती हो जी! ये तो मैंने सोचा ही नहीं, शक्तिसिंह जी बोले।

साधना के जाते ही संदीप भी सबके पास पहुँचा और पूछा कि क्या बातें हुई।

  अरे, कुछ नहीं लीला माँ ने तो कमाल कर दिया, उनके घर जाने का रास्ता भी ढूंढ लिया और उन्हें घर बुलाने का रास्ता भी ढूंढ लिया, कुसुम बोली।

 ये तो बहुत बढ़िया रहा ,इसका मतलब़ है बुआ ने शानदार अभिनय किया, संदीप बोला।

आखिर बीवी किस की है हमारी! शक्तिसिंह जी बोले।

  अब प्रदीप को कहना पड़ेगा कि वो इतवार को अपना झूठा जन्मदिन मनाने को तैयार रहे, संदीप बोला।

 हाँ, और आज ही उसके लिए कुछ अच्छे कपड़े भी खरीद लो, नहीं तो शाम को सब बाजार चलते हैं, हमने भी तो अपनी दुल्हन को कुछ भी नहीं दिलवाया है अभी तक, शक्तिसिंह जी बोले।

 नहीं अंकल! अभी बुआ को भीतर ही रहने दीजिए, किसी को ये ना पता चले कि आपकी अभी शादी हुई है, नहीं तो लोग पूछेंगे कि इतने बड़े बच्चे कहाँ से आएं, संदीप बोला,

 ये बिल्कुल सही कहा तुमने, शक्तिसिंह जी बोले।

तो अब हमें हर कदम फूँक फूँककर रखना होगा, संदीप बोला।

 लेकिन आज अगर फैक्ट्री के लिए नटराज का फोन आया तो, शक्तिसिंह जी बोले।

कह दीजिएगा कि, अभी पैर की मोच ठीक नहीं है, फिर कभी बाद में मिलते हैं, संदीप बोला।

लेकिन कब तक टालेंगे, शक्तिसिंह जी बोले।

देखते हैं, थोड़ा समय और दीजिए मुझे, संदीप बोला।।

क्यों बरखुरदार, ऐसा भी क्या हो गया, शक्तिसिंह जी बोलें।

अरे, कुछ नहीं अंकल! डाँन्स सीखना है, थोड़ा स्टाइलिश बनना है, ताकि मोनिका के संग मटक सकूँ, संदीप बोला।

  कैसी बातें करते हो संदीप! बहुत सुन्दर है क्या वो मोनिका! कुसुम चिढ़कर बोलीं।

ना ऐसा नहीं है पगली! तुम तो ख्वामख्वाह में नाराज़ होती हो, मैं तो चाहता हूँ कि अब तुम भी वो आजकल के फैशन के हिसाब से घोंसले जैसे बाल बनाया करो, हील्स पहना करो और कुछ नए फैशन के कपड़े भी सिलवा लो, कभी नटराज के घर जाना पड़ा तो, संदीप बोला।

  हाँ, कुसुम! संदीप एकदम सही कह रहा है, आज ही किसी अच्छे पार्लर जाकर अपना डेंट पेंट करवाओं, शक्तिसिंह जी बोले।

 तो क्या? मैं आप लोगों को ऐसे अच्छी नहीं लगती, कुसुम बोली।

 अच्छी लगती है पगली! तुम्हारे इसी रूप पर ही तो मैं मोहित हुआ था, लेकिन अभी हमें नटराज से जीतने के लिए ये तो करना पड़ेगा, संदीप बोला।

     ऐसा करते हैं, आज ही सबकी शाँपिग ,बूटीक और पार्लर का काम निपटा आते हैं, कल शाम को लीला, मधु की माँ से मिलने उनके घर जाएंगी, शक्तिसिंह जी बोले।

  हाँ, अभी बुआ के पास कोई ढंग की साड़ी और गहने भी नहीं हैं, संदीप बोला।

 हाँ सही कहते हो संदीप! आज ही सारा काम निपटा कर लाते हैं, शक्तिसिंह जी बोले।

     और शाम को कुसुम, संदीप, प्रदीप और शक्तिसिंह सब मिलकर बाजार निकल गए, सबके लिए शाँपिग की, कुसुम पार्लर से लौटी तो सब उसे देखकर दंग रह गए और प्रदीप बोला___

दीदी! आप तो बिल्कुल शायरा बानों जैसी लग रही हो।

 नहीं रे! मुमताज़ जैसी, संदीप बोला।

 नहीं.... कुसुम बिटिया तो कुसुम ही लग रही है, हिरोइनों जैसे कपड़े पहनने से ही थोड़े ही इंसान बदल जाता है, हमारी कुसुम की सादगी को तो कोई भी हिरोइन नहीं पा सकती ,शक्तिसिंह जी बोलें।

  सही कहा आपने, अंकल! मेरी कुसुम जैसा तो कोई नहीं, संदीप बोला।

 और सब घर को वापस आ गए।

          दूसरे दिन काँलेज में प्रदीप को फिर से मधु दिखी लेकिन इस बार प्रदीप ही मधु को अनदेखा कर आगे बढ़ गया, मधु उसे जाते हुए देखती रही लेकिन बोली कुछ भी नहीं ,उधर प्रदीप भी सोच रहा था कि मधु उसे टोके लेकिन मधु ने प्रदीप को नहीं टोका और दोनों मायूस से चले गए।

    शाम हुई ,लीला तैयार होकर बाहर आई तो सब उसे देखते ही रह गए, सुआपंखी रंग की सिल्क की हल्की साड़ी आगे से सीधा पल्लू लेकर पहनी हुई, घने बालों का जूड़ा, माथे पर गोल लाल बिन्दी और गलें में तीन लड़ियों की लम्बी सोने की चैन, हाथों में पोटलीनुमा पर्स, वाकई में लीला आज कहीं की जमींदारन लग रही थीं।

    शक्तिसिंह जी ने लीला का ये रूप देखा तो बेसुध से हो गए, फिर मज़ाक करते हुए बोले___

 माशाल्लाह! आज तो ना जाने कितने कत्ल होंगे और ना जाने किस किस पर बिजलियाँ गिरेगी।

  हटो जी! बुढ़ापे में भी मसखरी करने में बाज़ नहीं आते, लीला बोली।

 तो क्या करें जानेबहार! जवानी में तो आप मिलीं नहीं, बुढ़ापे में ही मसखरी सही, शक्तिसिंह जी बोले।

 कैसी बातें करते हो जी! बच्चों के सामने, लीला बोली।

बच्चों ! जरा मुँह घुमा लो, हमें अपनी पत्नी से मसखरी करनी है, शक्तिसिंह जी बोलें।

 शक्तिसिंह जी की बात सुनकर सब हँसने लगें।

  अच्छा! कुसुम बिटिया! चलो हम मधु के घर चलते हैं, ड्राइवर से कह दो कि मोटर निकाले, इनका तो ऐसे ही चलता रहेगा, लीला बोली।

 ठीक है लीला माँ, अभी कहतीं हूँ, कुसुम बोली।

    अच्छा! सब याद तो है ना! कि वहाँ क्या क्या बोलना है, शक्तिसिंह जी ने पूछा।

हाँ जी! सब याद है, लीला बोली।

  ठीक है तो तुम लोग जाओ, शक्तिसिंह जी बोले।

      दोनों मोटर में बैठीं और कुछ देर में ही मधु के बँगले के सामने मोटर आकर रूकीं, दोनों सकुचाते सकुचाते गेट तक पहुँचीं, दरबान ने परिचय पूछा और भीतर जाकर दरबान ने साधना से बताया कि कोई प्रदीप की माँ आपसे, मिलना चाहतीं हैं,

साधना बोली तो खड़े क्यों हो? उन्हें जल्दी से भीतर लेकर आओ।

    लीला और कुसुम बँगले के भीतर आएं, साधना ने उन्हें देखा और खुश होकर बोली___

अरे, बहनजी! आप! आइए ना, भीतर आइए, साधना और लीला भीतर गए, लीला उन्हें बैठक में बैठाकर भीतर चाय नाश्ते के लिए बोलने चली गई, थोड़ी देर बाद व़ो उनके पास आकर बोली___

 कहिए बहनजी! कैसे आना हुआ?

 वो मैंने आपको बताया था ना कि मेरे बेटे प्रदीप की सालगिरह है इतवार को, उसी का न्यौता देने आई थी, लीला बोली।

 हाँ...हाँ...याद आया, साधना बोली।

  तब तक नौकरानी चाय नाश्ता लेकर आ पहुँची, तब साधना ने लीला से कहा___

 लीजिए ना बहनजी ! पहले चाय लीजिए नहीं तो ठण्डी हो जाएगी, बेटी तुम भी चाय लो और ये समोसे खाकर देखो, मैंने बनाएं हैं।

  दोनों ने चाय ली और कुछ देर यहाँ वहाँ की बातें करके लीला साधना से बोली__

अच्छा ! तो अब हमें जाना होगा, रात के खाने की भी तैयारी करनी है दोनों माँ बेटी ही आ गए साथ में, नहीं तो कुसुम अगर घर पर होती तो वो तो खाने की तैयारी कर ही लेती और इतवार को आना मत भूलिएगा, मधु बिटिया को जरूर साथ में लाइएगा, मैं तो उससे मिली भी नहीं, लीला बोली।

  जी ,जरूर लाऊँगी उसे, अभी बाहर गई है, अच्छा लगा जो आप हमारे घर आईं, साधना बोली।

हमें भी अच्छा लगा यहाँ आकर ,लीला बोली।

    और दोनों माँ बेटी घर लौट आई, घर आकर उन्होंने बताया कि घर तो बहुत बड़ा है लेकिन रौनक बिल्कुल नहीं है, साधना को देखकर लगता है कि कोई बात तो है जो उसे हमेशा परेशान किए रहती है।

क्रमशः___



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