विदित अजनबी
विदित अजनबी
जब हुए आशना
वो भी इक समा था
फ़िर नज़रें फ़ेरी यूँ
पहचान भी न रही
मगरूर हमेशा थे
उलझन-ए-जज़बात पलशुदा
परत जब हटी तो
पहचान आ गई!
जब हुए आशना
वो भी इक समा था
फ़िर नज़रें फ़ेरी यूँ
पहचान भी न रही
मगरूर हमेशा थे
उलझन-ए-जज़बात पलशुदा
परत जब हटी तो
पहचान आ गई!