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Namita Sharma

Abstract

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Namita Sharma

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विदित अजनबी

विदित अजनबी

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जब हुए आशना

वो भी इक समा था

फ़िर नज़रें फ़ेरी यूँ

पहचान भी न रही


मगरूर हमेशा थे

उलझन-ए-जज़बात पलशुदा

परत जब हटी तो

पहचान आ गई!


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