विधवा

विधवा

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उसने देखा कि पूरा गाँव दुःख के सागर में डूब चुका है। उस गाँव का हर कोई जिसे वह अपने जीवन का एक अभिन्न हिस्सा मान चुकी थी, सभी उसके दुःख में उसका साथ देने के लिए तैयार खड़े थे। उसके सास ससुर, देवर, ननद आँखों में आँसू लिये उसे श्रृंगार विहीन करने की तैयारी कर रहे थे।


उसने महसूस किया कि उसे अपनी इस स्थिति का जरा सा भी दुःख नहीं है। निर्बलता उसके मन को तो क्या, उसके शरीर को भी छूकर नहीं गई। वह एक अनूठे गर्व का संचार अपने अन्तःकरण में महसूस हो रहा था।


एक भारतीय सैनिक की विधवा बन चुकी थी वह लेकिन उससे ज्यादा भाग्यशाली शायद ही कोई दूसरा हो, जिसका सिंदूर मिट कर भी अमर हो गया था।



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