वह मान गई
वह मान गई
जुगनू बाज़ार से लौटते हुए आंगन से आवाज लगता है," क्यों री सरला? आज नींद नहीं आ रही है क्या? और दिन तो सात बजे ही बिजली बुझा देती है। आज क्या हुआ है?" जुगनू आज बाजार से देर से लौटा था।
" नहीं - नहीं काका;ऐसा कुछ नहीं है! आज बन्नो दीदी आई है ना ! इसलिए........।" सरला ने प्यार से अंदर से कहा।
" अच्छा - अच्छा! तो सोचूं कि आज सूरज पछिम से तो ......?" जुगनू बाहर से ठहाका लगते हुए बोला।" ठीक ही हुआ यह भाई।कल देवकी भी आने वाली है। इसी बहाने दोनों की बात हो जाएगी।अच्छा सुबह मिलता हूं बन्नो बिटिया।चलता हूं।" जुगनू जाते हुए बोला।
" ठीक है काका।" बन्नो ने प्रत्युत्तर दिया।
दूसरे दिन सुबह - सुबह जुगनू के घर से जोर - जोर से रोने की आवाजे आई।सारे गांव में हड़कंप मच गया।सरला और बन्नो भी दौड़ी - दौड़ी वहां पहुंची।
" क्या हुआ जुगनू काका? काकी क्यों रो रही है?" सरला ने आंसू पोंछते हुए कहीं जने को तैयार जुगनू से पूछा।
" होना क्या है बेटा? तेरे काका - काकी की किस्मत फूटी और क्या?" जुगनू अपने माथे पर हाथ पटकते हुए हताश होते हुए से बोला।
" ऐसा क्या हुआ है काका? ठीक - ठीक क्यों नहीं बताते?" बन्नो ने आश्चर्य से पूछा।
" क्या बताना बेटा? देवकी ........!" अपना माथा बार - बार पीटते हुए जुगनू रोता हुआ बोला।
उधर जुगनू की बिलखती पत्नी को संभालती हुई महिलाओं ने सारा हाल बताया।देवकी शहर के कालेज हॉस्टल से नाइट बस में घर को आ रही थी।उसकी बस का सुबह के समय एक्सिडेंट हुआ और वह वहीं ढेर हो गई।सुबह - सुबह जुगनू को प्रधान जी ने बताया।उन्हे फोन आया था। शव पोस्ट मार्टम के लिए ले जाया गया है।जुगनू भी वहीं जा रहा है।जुगनू सरला के सिर पर हाथ फेरता हुआ चाननके साथ गाड़ी में चला गया। देवकी उनकी इकलौती बेटी थी।वह बन्नो की दोस्त थी।बन्नो की शादी हाल ही में पास के एक कस्बे में हुई थी।उसने देवकी को भी घर जवाई बनने को तैयार एक लड़का ढूंढ रखा था।उसी बात के सिलसिले वह आज अपने मायके आई थी।शायद देवकी को उसी ने फोन पर बुलाया था।पर जुगनू और उसकी बीवी को अभी यह पता नहीं था। यह खबर सुन कर सब का रो - रो के बुरा हाल था।
घटना के कई दिनों बाद एक दिन जुगनू सरला से झुकी नजर से बोला," बेटा एक बात बोलूं? बुरा तो नहीं मानेगी?"जुगनू और उसकी पत्नी का सरला से बचपन से ही विशेष प्यार था।उनका उसकी उम्र का बेटा किसी बीमारी से दो साल पहले जीवन से हाथ धो बैठा था।तब से तो वे और भी लगाव रखते थे। क्योंकि वे घर पर दोनों अकेले जो होते थे। सो हरिया को उसे कई बार अपने यहां भेजने को कहते रहते थे।हरिया के दो बेटियां और एक बेटा था।हरिया कहता," भाई इसे ही पूछो।मेरा कोई इनकार नहीं है।"पर उनकी पूछने की हिम्मत ही नहीं होती थी।
" नहीं काका! बोलिए! बुरा क्यों मानू?" सरला बोली।
" बेटा ....… मैं चाहता हूं कि तू कुछ दिन .... हमारे यहां ......!"जुगनू रुक - रुक कर बोलता हुआ अधूरी बात कह कर चुप हो गया।
" मैं समझ गई काका। मैं कल से आपके रहने आ जाऊंगी।आज मम्मा - पापा से पूछ लूंगी।"सरला जुगनू की धंसी हुई पोपलों को चूमती हुई सी बोली।
यह सुन कर जुगनू की दोनों बांछे खिल आई। सरला के हाथ पकड़ते हुए बोला," भगवान तेरा भला करे बेटा। तेरे आने से तेरी काकी का दुख हल्का हो जाएगा।"
जुगनू अपने घर लौट गया।घर पहुंचते ही अपनी बीबी से कुछ खुशी से बोला," सुनो भागवान ! वह मान गई।"
दोनों पति - पत्नी की आंखों में खुशी के आंसू थे और एक दूसरे को कुछ यूं देख रहे थे मानो आज उन्हें कोई अपार खजाना हाथ लगा हो।