Hem Raj

Tragedy

3.4  

Hem Raj

Tragedy

बदलता दौर

बदलता दौर

6 mins
480



इतवार की सुबह सवेरे तड़के ही कोई रविन्द्र के आंगन से आवाजे लगा रहा था,"भाई साहब! ओ भाई साहब! चलो चलना है क्या?"

"कौन बिरजू है क्या?" अंदर से रविन्द्र चाय पीते हुए बोला।

" जी हां भाई साहब। मैं बोल रहा हूं।" बिरजू ने झट से उत्तर दिया।

रविन्द्र ने अपनी पत्नी को जल्दी तैयार होने को कहा और स्वयं भी कपड़े पहनते हुए बिरजू से बतियाता रहा।

" क्या बताएं बिरजू? हर चेले - घोपे के पास गए।हर डॉक्टर - हकीम के पास गए।लाखों का खर्च कर लिया है।और तो और अम्मा जी के कहने पर हवन -पाठ भी करवा लिए।पर शादी के दस साल बाद भी कोई औलाद नहीं हो रही है।कल जब तुम्हे दफ्तर से आती बार मन्दिर जाने के बारे में शांता से बतियाते हुए सुना तो सोचा हम भी एक बार तुम दोनों के साथ मन्दिर चल आते हैं।शायद अबकी भगवान हमारी सुन ही लें।"


" भाग्य का क्या पता भाई साहब? कब खुल जाए? मैं भी इन्हें बड़ी मुश्किल से मन्दिर में लिए जा रही हूं।वे भी आपके जाने के लिए राजी होने के बाद ही जाने को तैयार हुए हैं। वरना कहां ....? " शांता ने अदब से कहा।

 

 इस बार सचमुच भगवान ने रविन्द्र और तारा की सुन ली। दोनों की किस्मत खुली और उनके एक पुत्र रत्न पैदा हुआ।वह बच्चा बचपन में इतना बीमार रहा कि न जाने तारा ने उसको बड़ा करने के लिए क्या क्या नहीं किया? बेचारे रविन्द्र की आधी तनख्वाह हर महीने उसी के इलाज में लग जाती थी।बड़ी मुद्दत से जो हुआ था लाल। दोनों ने लालन पालन में कोई कोर कसर न छोड़ी।तारा तो उसके बी ए करने तक उसे अपनी थाली से ही खिलाती रहती थी।बेचारी खुद भूखी रह जाती पर कुन्दन पर आंच न आने देती।


       भगवान की कृपा से कुन्दन की नौकरी भी लग गई।नौकरी की खबर सुनकर उसकी एक सहपाठी ने उसे रिश्ता भेज दिया।यूं तो कुन्दन भी उसके प्यार में कालेज से ही लट्टू हुआ पड़ा था पर वह बड़ा भाव खा रही थी।वह थोड़े बड़े घराने की थी।पर नौकरी लगने के बाद वह कुन्दन से शादी करने को मान गई।रिश्ता तय हुआ और शादी भी हुई।साल भर सब ठीक से रहा। मां बाप ने भी न पूछा दोनों को।सोचा बच्चे हैं।करने दो मस्ती।साल बाद रविन्द्र की गाड़ी की एक दुर्घटना हुई।इसमें रविन्द्र ने तो अपनी जान ही गवाई और तारा की टांग टूट गई।अब घर का सारा काम कुन्दन और कुन्दन की पत्नी को करना पड़ रहा था।साल भर के इलाज के बाद तारा भी ठीक तो हो गई थी पर बूढ़े शरीर में दर्द तो बढ़ता ही जा रहा था। ईशा कुछ दिन तो इधर उधर टल कर खुद को घर के कामकाज से बचाती रही और पति से ही खाना भी बनवाती रही और कपड़े भी धुलाती रही। कुन्दन ने भी मां को बीमार देख चुपके से सब काम किया। परन्तु साल भर बाद एक दिन उसने साफ साफ कह दिया ," बुढ़िया ज्यादा नाटक करने की कोई जरूरत नहीं है।अब तू ठीक हो गई है।पेट भरना है तो खाना खुद बनाया कर और अपने कपड़े खुद धोया कर। वरना चली जा वृद्धाश्रम।पति के मरने के बाद पेंशन मिलती है।आश्रम वाले पाल लेंगे उन्ही पैसों से। हमें न पैसों की जरूरत है और न ही मुझसे ये सब होता।" 


 कुन्दन ने ईशा को थोड़ा फटकारा।ईशा घर छोड़ कर माइके चली गई।उधर ईशा की मां ने तो और भी आग में घी डालने का काम किया। कुन्दन ईशा के बेगैर रह ही नहीं सकता था। मनाते मनाते बात यहां तक आ पहुंची कि अब हमारी ईशा उस घर में तभी जाएगी ,जब आप अपनी मां को अलग रखोगे या वृद्धा आश्रम में छोड़ आएंगे। कुन्दन ने डरते हुए से ईशा से कहा ," ईशा तुम समझती क्यों नहीं? अभी हम मां को न अकेला रख सकते हैं और न ही तो आश्रम को भेज सकते हैं। अभी पापा को मरे हुए मात्र एक साल ही हुआ है।पति मारा है उसका। और फिर समाज क्या कहेगा?"

 ईशा ने सर्पणी की तरह फुंकारते हुए उत्तर दिया," पति क्या सिर्फ तेरी मां का ही अनोखा मरा है? संसार में कईयों के पति मरे हैं। मैं कुछ नहीं सुनना चाहती। मैं समाज समूज कुछ नहीं जानती।फैसला तुम्हे करना है।तुम्हे मां चाहिए या फिर मैं? नहीं तो तलाक के पेपर तैयार करो पापा।" " नहीं बेटी । कुछ दिन का समय इसे और देते हैं।" ईशा के पापा ने शराब का पैग लेते हुए कहा।

कुन्दन शाम को मां से सब सच सच कहता है।तारा ने कुन्दन से कहा, " बेटे तेरे पापा ने तो तुझे तभी कहा था कि यह लड़की कुछ ठीक नहीं है बेटा।कोई और लड़की देखते हैं।पर तेरी जिद्द के आगे हमारी एक न चली।अभी भी वक्त है बेटा ।वे अगर तलाक मांग रहे हैं तो दे दे तलाक।वह लड़की तुझे बर्बाद कर डालेगी।"

तारा के इतना कहते ही कुन्दन आग बबूला हो उठा," ठीक कहती है ईशा और उसके मम्मा -पापा।तेरे साथ रहना सचमुच ठीक नहीं है।पड़ी रह घर में अकेली। हम रह लेंगे क्वार्टर में ।बड़ी आई तलाक दे दे।"

दोनो मियां बीबी क्वार्टर में रहने लगे।जितना कुन्दन महीने का कमाता ,उससे तीन गुना खर्चे मैडम के थे।घर के काम काज को रखी नौकरानी पैसे न मिलने के कारण नौकरी छोड़ गई।सब काम कुन्दन को खुद करने पड़ते थे।मैडम जी तो दिन रात व्यस्त ही रहती थी और नशे में चूर।बेटे की हालत देख कर नौकरानी को पैसे देना तारा ने चुपके से शुरू किए ताकि बेटे पर बोझ न पड़े।कुन्दन पर बैंक का कर्ज भी बहुत हो गया था।अब वह भी परेशान हो कर और ससुराल की संगत से शराब पीने लग गया था।एक दिन उसने दफ्तर से लौट कर मैडम को किसी गैर मर्द की बाहों में लिपटे देखा तो उससे रहा नहीं गया।उसने सासू मां और ससुर साहब से ईशा की करतूतों की शिकायत की।उन्होंने उसे जबाव दिया," तो क्या हुआ? यह तो आजकल आम बात है।हमारी बेटी है ही बहुत सुंदर दामाद जी। आ गया होगा किसी का दिल उस पर।तुम्हारा भी किसी और पर आ जाए तो उसमें क्या गलत है? इस बात पर ज्यादा बबाल करने की कोई जरूरत नहीं है।"

उधर बैक वालों की चिट्ठियों से कुन्दन अलग से परेशान था। कुन्दन को एक दिन दिमागी दौरा पड़ा।वह हस्पताल में कराह रहा था।तारा को नौकरानी ने खबर दी।तारा उसे घर ले आई और उस अपाहिज बुद्धि का इलाज भी करती रही और उसका कर्जा भी भरती गई। उन बूढ़ी बाहों में अब और इतनी शेष ताकत नहीं थी कि वे इस बुढ़ापे में भी अपने बेटे को अपना पेट काट कर पालती।पर क्या करती? उसे यह सब मजबूरी में करना पड़ रहा था।मैडम ईशा ने अपने माइके में उसी गैर मर्द के साथ डेरा जमा लिया था।एक दिन तारा उसे घर बुलाने गई तो उसने बेहूदा जवाब दिया ," क्या करूंगी तेरे अपाहिज बेटे के साथ रह कर?"

तारा रोते रोते घर लौट आई।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy