Hem Raj

Children Stories Tragedy

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Hem Raj

Children Stories Tragedy

चिड़ा मर गया

चिड़ा मर गया

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रमा घर की दहलीज पर बैठी हुई थी और अंदर से किसी की आवाज आ रही थी ,"रमा! ओ रामा! बबलू कहां है?"

"पता नहीं काकी। यहीं कहीं खेल रहा था।"रामा बोली।

सर्दियों के दिन थे। बाहर बर्फ गिरी हुई थी। आज मौसम साफ हो गया था। बाहर बिछी बर्फ की चादर पर सुबह की सुनहरी धूप का प्रकाश कुछ यूं दमक रहा था कि आंखों के सामने चांदी की सी चमक उजासने लगी थी। बबलू घर के एक कोने में बने चिड़िया के घोंसले को हर रोज देखने जाया करता था।आज भी वह सुबह - सुबह पटरी पर दाना डालने गया था।उसे नन्हे - नन्हे हाथों से दाना डालते हुए चिड़िया जब देखती थी तो चहक - चहक कर मानो जैसे अपने प्रियतम को एक साथ दाना चुगने के लिए निमंत्रण देती। पास के पेड़ों की डालियों में धूप का आनंद लेने बैठा चिडा भी झट से चिड़िया के निवेदन को स्वीकार कर एक साथ दाना चुगने लग जाता। यह उसका नित्य प्रति का सिलसिला था। पर आज बाहर बर्फ थी। इसलिए वह घोसले से ही बाहर नहीं निकला था। बबलू ने जैसे ही दाना डाला चिड़िया ने चहचाना शुरू कर दिया। चिडा घोसले से बाहर निकला ही था कि घर की दीवार के एक सुराग से बिल्ली ने छलांग मारकर उसे धर दबोचा। बबलू चीख - चीख कर के रोने लगा,"मम्मा- मम्मा !चिडा मर गया।चिडा मर गया।"बबलू के इस करुण क्रंदन को सुनकर मां की आंखें भी नम हो आई थी। चिड़िया घंटों अकेली चहकती रही। आज उसने बबलू के दानों में से एक भी दाना नहीं चुका। बबलू दिन भर निराश था और रोता रहा। मां समझाती गई,"बेटा नियति के आगे प्रकृति का एक - एक प्राणी विवश है।" शाम हो चली थी, तब बड़ी मुश्किल से मां ने बबलू को जबरदस्ती निवाला मुंह में ठूंस कर खाना खिलाया। बबलू अभी इसी जिद पर अड़ा था कि चिड़िया का चिडा वापस लाया जाए। वह बेचारी अकेली हो गई है।




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