Hem Raj

Tragedy

4.5  

Hem Raj

Tragedy

दास्तान ए जात पात

दास्तान ए जात पात

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233


अपनी अरुणिमा को बिखेरते हुए सूर्य देव हिमालय की पावन वादियों में पहाड़ियों के बीचो बीच बसे इस छोटे से सुंदर एवं सुरम्य गांव को ऐसे नहला रहे थे, कि मानो आद्या सुंदरी परा शक्ति प्रकृति का चाकर बन कर अपनी सेवाएं नियमित दे रहे हो। घाटी के इस छोटे से गांव में कितनी आत्मीयता थी और कितना प्रेम और भाईचारा? कहते नहीं बनता। न कोई लड़ाई न कोई झगड़ा। न ही तो शहरों जैसी आपाधापी और लूट - खसोट। चारों ओर थी तो सिर्फ प्राकृतिक सुंदरता और असीम सुकून।

    

    नित्य प्राकट्य की तरह आज भी आदित्य देव अपनी सेवाएं देने धीमे - धीमे तप और विशाल प्रकाश के साथ पहाड़ी की चोटी पर निकल आया था। गांव की जानकी चाची की आवाजें रोज की तरह कानों में गूंज उठी।


" राधा, शालू, कमला ,मनु उठो भाई उठो। देखो तो सूरज चढ़ आया है। सारा संसार उजाला हो गया है और तुम ..........। " यह बोलते बोलते जानकी चाची उस कमरे में घुस गई, जहां राधा सोई थी।


 " अरे ओ मेरी भोली सी, प्यारी सी, अच्छी सी दादी। क्यों हर रोज सुबह - सुबह अपनी कोयल सी मधुर आवाज़ का प्रचार - प्रसार करती फिरती हो ? आस - पड़ोस को भी अलार्म का काम करती हो। " बिस्तर पर ऊंघते हुए से पलथी मार कर जानकी चाची के झुर्रियों से लबरेज चेहरे को चूमते हुए राधा बोली।


"तुझे अब सुबह इतनी देर तक सोए रहना शोभा नहीं देता राधा। शादी की उम्र हो गई है। मां का हाथ बंटाया कर। कुछ सीख भी जाएगी और मां की मदद भी हो जाएगी। "

जानकी चाची बूढ़ी आंखों की कोरों में पानी भरते हुए से बोली।

 " बस भी कर मेरी प्यारी दादी। जब देखो तो तब उपदेश। और हां जो ये बात - बात पर इन झील सी आंखों में लहरे उठाती रहती हो ना, ये मत किया करो जी। "राधा जानकी चाची की झुर्रियों से लबरेज पोपलों को दोनों ओर से पकड़ते हुए और पुचकारते हुए से बोली।


"कैसे चुप रहूं बच्चा? दादी जो हूं तेरी। " जानकी चाची कोरों का पानी पोंछते हुए और राधा का सिर सहलाते हुए बोली।


" उमा । ओ उमा। " बाहर से मोहन भैया ने आवाज लगाई।

" जी आई। "अंदर से रोटियों को बेलते हुए उमा भाभी बोली।


"अरे मैं काम पर जा रहा हूं। देर हो रहा हूं। बाहर कुछ सामान रखा है। देखना उठा लेना। राधा को बोल दे चाहे। " जाते हुए से मोहन भैया बोले।


" जी उठा लूंगी। आपकी लाड़ली तो अभी खराटे मार रही होगी। बिगाड़ रखा है बुढ़िया ने। " अंदर से उमा भाभी बोली।


 " ठीक है। उठा लेना। बाहर गाय भी चुग रही है। कहीं खा न ले सामान। " मोहन भैया सड़क से बोले।


" जी उठा लूंगी। शाम को जल्दी आना । " अंदर से उमा भाभी बोली। पर शायद ये सब मोहन भैया ने नहीं सुना हो। वे निकल पड़े थे।


 गाय को हट्टका करते हुए सामानों के थैले लिए हुए राधा और जानकी चाची रसोई में आई।


" क्यों री बुढ़िया की बच्ची? क्या कह रही थी ? बुढ़िया ने बिगाड़ रखा है!" जानकी चाची ने उमा भाभी के कान प्यार से पकड़ते हुए पुचकारते हुए से कहा।


"सॉरी -सॉरी अम्मा जी! अब नहीं बोलूंगी। " अपने कान पकड़ते हुए माफीनामे की तहजीब में उमा भाभी बोली।


" खबरदार जो आगे से किसी ने मेरी लाड़ली पोती को कुछ कहा तो। " फिर से आंखों की कोरें नम करते हुए से जानकी चाची बोली।


" नहीं कहूंगी कुछ अम्मा। पर इसकी मां हूं। चिंता तो होती है न! 24 की हो गई है। सबको आप जैसी सास थोड़े ही न मिलती है। " उमा भाभी रूआंसा चेहरा कर के बोली।


" सो तो मैं भी इसे समझाती रहती हूं बेटा। पर यह मानती कहां है?" यह बोलते - बोलते जानकी चाची की आंखें छलक आई थी।


" ओ री ओ सुंदर सास - बहू की जोड़ी। ये रोना धोना छोड़ो और कुछ नाश्ता - पानी कराओ। भूख लगी है। तुम्हारी राधा जिंदा है अभी। मरी नहीं है । " राधा ने दोनों को छेड़ते हुए से कहा।


" चल !झल्ली कहीं की? पहले नहा -धो कर आ, फिर खाना कुछ। " जानकी काकी आंसू पोंछते हुए बोली।


अपनी अल्हड़ मस्ती में राधा नहाने जाती है। इस बीच चाची और उमा भाभी में यह बात हो रही थी कि परसों राधा को देखने लड़के वाले आ रहे हैं।

 " उमा के बाबू जी बोल रहे थे कि बेटी जवान हो गई है। हाथ पीले करना हमारा फ़र्ज़ है। फिर बी ए भी इस साल इसकी पूरी हो जाएगी। "उमा भाभी चाची से बोल रही थी।


" सो तो है बच्चा। बेटियां तो है ही पराया धन। कब तक पास रखोगे?" चाची उमा भाभी से बोल रही थी।


" जब देखो तब सब बस मेरे पीछे हाथ धोकर पड़े हैं। किसी न किसी तरह से मुझे जल्दी भगाने की तैयारी में चुपके - चुपके लगे हैं। मैं नहीं करूंगी अभी शादी हां। कह दिया मैंने। जबतक एम ए न कर लूं। " राधा बाल झाड़ते हुए झल्ला कर बोली।


 "बस कर री ओ छमक छलो। कब तक बाप के यहां बैठी रहेगी? 24की हो ली फिर कब 50की करेगी शादी क्या?

कौन वरे गा तब तुझे। तेरी उम्र की थी न हम। ,तो दो - दो 

औलाद जन बैठे थे। "पास मनु को नहला रही चंपा दीदी व्यंग्य करते हुए बोली। वह यहां मायके अपने बच्चों के साथ मेहमान आई थी। शायद राधा का यह रिश्ता भी उसी की सलाह पर उमा भाभी और मोहन भैया करवा रहे थे। पर इसमें राधा को विश्वास में न लिया गया हो शायद।


" वह आप का जमाना था फूफी। अब मॉडर्न जमाना है। समझी !" राधा पुचकारते हुए से बोली।


" हां - हां तोड़ ले अपने बाप की रोटियां और! तुझे कौन समझाएं?" चंपा दीदी बोली।


" बस भी कर चंपा! तू हमेशा इसे छेड़ते हुए क्यों ताने मरती रहती है?" जानकी चाची डांटते हुए से बोली।


" हां - हां मां और चढ़ाओ इसे सर पर। तूने ही तो इसे बिगाड़ रखा है। ठीक कहती है भाभी। " चंपा दीदी बोली।


"हर चीज का एक समय होता है बच्चा। शादी की भी एक उम्र होती है। ठीक कह रहे हैं सब। " राधा की बेनी बनाते हुए चाची बोली।

   तीसरे दिन लोक रीत के तहत बुलाए गए मेहमान आते हैं और राधा जैसी सुंदर और पढ़ी लिखी लड़की को देख कर रिश्ता तुरंत पक्का कर लेते हैं।

     दिन गुजरते गए। यहां राधा ने बुद्धि से तो यह रिश्ता कबूल लिया था पर दिल से नाखुश ही थी। एक दिन पास में एक मेला था। राधा अपनी सहेली रूपा के साथ मेला देखने चली गई। रास्ते में उन्हें पिंकू मिला, जो उन का क्लास मेट था। वह पास के गांव का रहने वाला था और एक अच्छा लड़का था। उसने गाड़ी रोकी।


" अरे राधा और रूपा कहां जा रही हो?" पिंकू ने कहा।

" ओह पिंकू! हम मेले जा रही है और तुम?" रूपा ने चौंकते हुए से कहा।

" मैं भी मेले जा रहा हूं। आओ चलो बैठो। " पिंकू ने कहा।

दोनों गाड़ी में बैठ जाती है। और तीनों बतियाते- बतियाते मेले पहुंचे। बातचीत से माहौल तो पहले ही खुशनुमा हो गया था उस पर मेला भी आ गया । मेले के पास रास्ता कुछ खराब था। सो राधा ने पिंकू को हाथ दे कर मदद करने को कहा।

    पिंकू ने जैसे ही ऊपर से नीचे को राधा को ऊपर खेंचाने के लिए हाथ किया, त्यूं ही उसकी नजर राधा के वक्ष स्थल के ऊपर वाले अधखुले भाग पर पड़ी। राधा ने पिंकू को देखते हुए भांप लिया। दोनों के दिलो में एक अजीब सी हलचल हुई, जो शायद इन दोनों ने पहली बार महसूस की थी। वे एक दूसरे को संभालते - संभालते नयन मटके में उस मेले के पास वाली किचन में फिसल गए। दोनों के कपड़े खराब हो गए। रूपा को वहीं बिठा कर वे पास के नाले में अपने कपड़े साफ करने गए।


" तुम्हारी सगाई सच में हो गई क्या?" कपड़ों को झाड़ता हुआ पिंकू शरमाते हुए सा बोला।


" क्यों? नहीं हुई होती तो तब क्या तू.............?" राधा ने स्त्री सुलभ मुस्कुराहट बिखेरते हुए नीची नजर कर के तिरछी चितवन निहार कर कपड़े धोते हुए कहा।


" नहीं - नहीं। बस सुना था। सो पूछ लिया। " पिंकू उसी मुद्रा में बोला।


" हां हो गई है । ठीक सुना है तुमने। " राधा ने भी उसी मुद्रा में जबाव दिया।

 वे दोनों बातों ही बातों में मस्त हो गए थे। बाहरी परिचय तो उनका पहले से ही था, पर आज तो उनका रूहानी परिचय भी हो गया था शायद। ऊपर से धीमे से रूपा की आवाज आई," ओ री ओ राधा। जल्दी कर बच्ची। तेरा मंगेतर मेले में पहुंच गया है शायद। फोन कर रहा है। "


" उठा ले तू ही। " राधा ने ठिठोली करते हुए कहा।

" अरे ओ लैला! कहीं उसने तुम्हें यूं देख लिया न

पानी में आग लग जाएगी आग हां। जल्दी कर। " रूपा ने चठकरी करते हुए कहा।


"अच्छा पिक्की!" हाथ हिलाते हुए राधा ने पिंकू से जाते हुए कहा।

 

राधा के मुख से अपने लिए पिंक्की सुन कर पिंकू के दिल की आग में घी पड़ गया। शाम को राधा अपने घर पहुंची और सीधा अपने कमरे में चली जाती है।


" राधा। ओ राधा। " जानकी चाची ने आवाज लगाई।


" जी दादी। " राधा अंदर से कपड़े बदलते हुए बोली।

" देख तो तेरा फोन आया है। " चाची बोली।

  " किसका है दादी? " राधा बोली।

" किसका होगा ? तुझे नहीं मालूम क्या?" चाची ठिठोली करते हुए बोली।

     चाची की बातों से राधा ने अंदाजा लगाया लिया कि उसके मंगेतर का ही होगा। उसने उतना तबजो न दिया। कपड़े बदलती रही। इतने में शालू खिखियाते हुए राधा के कमरे में फोन ले कर आया।


" सुन भी तो लो दीदी। जीजा जी नाराज हो जाएंगे नहीं तो। " वह छुटकू राधा को छेड़ते हुए से बोला।


" होने दे नाराज। पीछा छूटेगा। " राधा अपनी घर वाली कमीज़ पहनते हुए बोली और उसके हाथ से फोन झुंझला कर ले लेती है।


" हेलो ! कौन है? अब बोलो भी चुप क्यों हो। कपड़े बदल रही थी । देर लग गई। इसमें नाराज होने की क्या बात है?

बोलो भी कुछ नहीं तो मैं काट रही हूं। " राधा त्योरियों को चढ़ाते हुए बोली।


 " सुन - सुन , मैं पिंक्की बोल रहा हूं। फोन मत काटना प्लीज!" फोन पर पिंकू ने धीरे से कहा।


  यह सुन कर राधा घर के पिछवाड़े में फोन सुनने चली गई। घरवालों ने सोचा कि यह हमसे शर्मा कर दामाद से बात करने पिछवाड़े गई है। चाची ने राधा का फोन पहले उठाया था। उस पर किसी मर्द की आवाज सुन कर अंदाजे से दामाद का फोन होने का अनुमान लगाया था।

    सब खुश थे कि बेटी को दामाद का फोन आया है। पर किसे मालूम कि राधा ने फोन पर किसी और से कल मुलाकात का प्रोग्राम फिट किया है।


    हल्की - हल्की बारिश बाहर हो रही थीं। कस्बे के नुकड़ पर बने रेन शेल्टर में राधा और पिंकू दो के दो बैठे हैं। कोई उन्हें देख नहीं रहा है।


"क्या तुम अपने मंगेतर से खुश नहीं है?" पिंकू ने राधा से कहा।

" किसने कहा?" राधा ने तल्खियों में कहा।


" तुम ही तो कल फोन पर कह रही थी। " पिंकू ने कहा। पिंकू ने राधा को शालू के छेड़ने पर बड़बड़ाते हुए सुन लिया था।


" हां नहीं हूं खुश। तो क्या कर लोगे तुम?" राधा बोली।

  

" तूने क्या यह फिल्म समझी है? कि हीरो विलन को पीट देगा। " पिंकू बोला।


" हीरो । और वो भी तू?" राधा हंसते हुए से बोली।


" हां - हां मैं। क्यों आपको कोई शक है?" पिंकू बड़े रुआब से बोला।

     पिंकू की यह अदा तो राधा को और भी घायल कर गई।


" अच्छा - अच्छा एक बार फिर से करो ऐसा भला। " राधा ने अनुनय किया।

  पिंकू ने क्रिया पुनः दोहराई।


उस रोज राधा के ससुराल वाले राधा की शादी की बात करने आए थे।

" देख भाई कुडमा (समधी)। अगले महीने तक जो देना ब्याह करी एबे। से मठा भी आई जाना घरा जो। फेरी कंपनी मंझा छुट्टी नी मिल दी। "राधा का ससुर मोहन भैया से बोल रहा था।

"हां बेटा ब्राह्मणा ते लग्न जोड़ी ले ओ। बाकी फेरी ब्याह रे घरा निकलें कई काम। " चाची ने हामी भरते हुए कहा।


शादी का लग्न शोध लिया गया था और तैयारियां दोनों ओर जोरों से थी। एक दिन दोनों परिवारों के लोग शहर शादी के जेवर - कपड़े खरीदने आए थे। राधा को भी पसंद का सामान खरीदने के लिए साथ लाया गया था। सभी खरीद फरोख्त कर रहे थे। इस बीच राधा टॉयलेट गई। वहां से वह वापिस नहीं आई। थोड़ी देर बाद सब का ध्यान जब इस ओर गया तो दोनों परिवारों में खलबली मची। फोन लगाया। वह स्विच ऑफ आ रहा था। शहर का कोना - कोना छान डाला पर कोई खबर नहीं मिली। शाम होने वाली थी। तब सब ने निर्णय लिया कि पुलिस में रपट दर्ज की जाए। रपट लिखवाते ही सब अपने - अपने घरों को चले गए।

    तीन दिन बाद डाकिया चिट्ठी को चाची के पास दोपहर को छोड़ गया था। चाची को पढ़ना आता नहीं था।

शाम को जब भैया और भाभी आए तो उन्हें दे दी।

" देखना मोहन तेरे नाम डाकिया चिट्ठी दे गया था। " चाची बोली।

 मोहन भैया ने जब चिट्ठी पढ़ी तो आग बबूला हो उठा।

" नालायक को यह दिन दिखाने के लिए ही पाला - पोसा था हमने। नाक कटा डाली मूर्ख ने हमारी। मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा कहीं। क्या बोलेंगे समधी जी को। चलो उनसे तो ले दे के निपट भी लेंगे पर समाज को क्या कहेंगे?" मोहन भैया गुस्से से लाल हो कर बोल रहे थे।

 

" अरे हुआ क्या है? जरा हमें भी तो बता। बस उसे कोसता ही जा रहा है। ऐसा क्या किया है उसने?" चाची ने डांटते हुए से बोली।


" तुम तो चुप ही रहो अम्मा । तुम्हीं ने उसे अपने लाड़ प्यार से बिगाड़ा, जिसका परिणाम आज हम भुगत रहे हैं। " मोहन भैया झल्ला कर बोले।

" अरे मुझे जो भला - बुरा कहना है सो बाद में कहना। पहले बता तो सही हुआ क्या है?" चाची भी कड़की से बोली।


" होना क्या है अम्मा? यह कोर्ट की न्यायिक सूचना है। जिसमें लिखा है कि राधा ने पवन सुपुत्र बृजमोहन से शादी कर ली है और क्या?" मोहन भैया गुस्से से बोले।

  उस दिन चंपा दीदी पुनः राधा के गायब होने की खबर सुन कर यहां खबर संभाल करने आई थी। वह चौंक कर बोली," क्या? उस बृजमोहन के लड़के से, जो पड़ोस के गांव का है?" 

" हां वही। " मोहन भैया ने ऊंघते हुए से बोला।


" देखा न । आखिर उसने अपनी करतूत दिखा ही ली आखिर। मैं न कहती थी कि यह लड़की तुमने कुछ ज्यादा ही सिर पर चढ़ा रखी है । बिगाड़ दी ना उसने जात। मेरी सुनता ही कौन था?" चंपा दीदी इठलाते हुए सी बोली।


" इससे तो वह मर ही गई होती तो एक ही दुख तो होता। अब तो वह जिंदगी भर खुद भी मारेगी और हमें भी मारती रहेगी। " छाती पीटते और रोते हुए उमा भाभी बोली।


" वह जीए अब अपने हाल में। मैं उसे अपने घर में घुसाने नहीं दूंगा। मेरे लिए वह मर गई समझो। " मोहन भैया ने झुंझलाते हुए से कहा और अंदर चला गया।


कुछ दिन बाद राधा ने घर पर फोन किया। उमा भाभी ने उठाया । रोते - रोते बोली," बेटा क्या कसर रखी थी हमने तुझे पालने में? तूने तो हमें कहीं का न छोड़ा! भागना भी था तो किसी अपनी जाति वाले के साथ भागती। क्या जरूरत पड़ी थी पिंकू के साथ भागने की? रिश्ता मंजूर न था तो मुझसे कहती, अपनी दादी से कहती। पर तूने तो हमारी नाक कटवा दी। ," रोते - रोते उमा भाभी ने फोन काट लिया।

   राधा अभी अपनी बात कह ही नहीं पाई थी। वह कैसे बताती कि ईशक जात - पात को नहीं देखता। वह तो बस हो जाता है। और जब होता है तो सब नियम तोड़ कर अपनी मंजिल को लक्ष्य कर निशाना साधता है। पर वह जानती थी कि अभी मां का ही गुस्सा नहीं ठंडा है तो पिता जी का तो सातवें आसमान पर होगा।

       कई दिन बीते पीछे बृजमोहन जी मोहन भैया के घर सुलह की बात करने आए। वह अपनी बिरादरी का 

 गांव में ही नहीं इलाके में रसूखदार आदमी था। ऊंची जाति के लोग भी उसके ओहदे की तासीर के चलते ऊंची जुबान में उन से बात नहीं करते थे। पर वे दिल और व्यवहार के बहुत अच्छे थे। उन्होंने ही उस दिन कोर्ट में राधा और पिंकू की शादी करवाई थी। पिंकू को फोन पर जब राधा ने अपनी शादी की बात बताई थी तो उन्होंने इन दोनों की बाते सुन ली थी। सारी सेटिंग फोन पर इन्हीं की छत्र छाया में संपन्न हुई थी।


" अब क्या लेने आए हो बृजमोहन साहब? बेटी को तो ले गए हो बहला - फुसलाकर । उससे पेट नहीं भरा क्या? और क्या हमारी किरकिरी करने में अपनी ऊंची समझते हो?" मोहन भैया ने अनमने मन से कहा।


" नहीं मोहन बाबू। हम किसी को नीचा दिखाने नहीं आए हैं। बस सुलह करने आए हैं। " बृजमोहन शांति से बोले।


" काहे की सुलह ? कोई सुलह नहीं होगी। जाओ ,चले जाओ यहां से। हमारे लिए वह मर गई और उसके लिए हम। "मोहन भैया झल्ला कर बोले। यहां गांव वालों ने मोहन भैया की बात की दाद दी। उससे वे और शेर बन बैठे। उन्हें लगा कि अब गांव वाले मेरा आदर फिर से वैसे ही करेंगे, जैसे पहले करते थे।


" देखो मोहन बाबू! अब छोड़ो भी सारा गुस्सा। बच्चों ने प्यार किया कोई पाप नहीं किया। अब दोनों की कानूनी शादी भी हो चुकी है। अब तो उन्हें माफ कर लो और अपना लो। बच्चों को जितनी ही जरूरत हमारी है ,उतनी ही आपकी भी है। " बृजमोहन पुनः शांति से बोले।


" क्या बात करते हो बृजमोहन साहब? अपने ओहदे और पैसों की धौंस मत जमाना। किस कानून की बात करते हो तुम? वही कानून तो तुम्हें जाति - पाती के प्रमाण पत्र बांटता है। फिर हम कैसे तुम्हारे साथ उठना - बैठना मंजूर करें?" मोहन भैया त्योरियां चढ़ाते हुए बोले।


" देखो मोहन भैया। इस संसार में कुदरत ने दो ही जातियां बनाई है। एक स्त्री और दूसरी पुरुष। वही सृष्टि के घटना चक्र को चलाने में सदा से कुदरत का साथ दे रही हैं। बाकी तो सब मनुष्य मन की खुरापात है। इसलिए इस जात - पात के विवाद में न पड़ कर बच्चों के बारे में सोचो। " बृजमोहन ने शांति से समझाते हुए से बोला।


"अपना यह ज्ञान कहीं और सुनाना, यहां नहीं। बड़े आए उपदेश देने। जब तुम एस सी का प्रमाण पत्र ले कर आरक्षण लेने के लिए अपनी जाति बड़े फक्र से बताते हो, तब यह उपदेश नहीं देते? तब नहीं कहते कि हमें जाति प्रमाण पत्र नहीं चाहिए। हमें मानव होने का प्रमाण पत्र दो। अब अपनी जाति स्वीकारने में हेठी समझ रहे हो। " मोहन भैया ने अपने मन की सारी भड़ास उतार दी।


" अरे भाई क्यों बात उलझा रहे हो? मैं मानता हूं कि आरक्षण होना ही नहीं चाहिए। हो भी तो जातियों के आधार पर न हो। आर्थिक आधार पर हो। यह बहुत पहले हो जाना चाहिए था। ऐसा अगर समय पर हो गया होता तो इन आजादी के सत्तर साल में हमारे बच्चों ने आपसी रिश्ते कायम कर जात - पात का रोग ही मिटा दिया होता। पर यह तो राजनीतिक मसला है। इसमें हम क्या कर सकते हैं? और फिर इन बच्चों का तो कोई दोष ही नहीं। " बृजमोहन ने पुनः समझाते हुए से कहा।


" अच्छा! तुम कुछ नहीं कर सकते हो या कि जानबूझ कर कुछ करना ही नहीं चाहते? बृजमोहन साहब तुम जैसे रसूखदार जब इस बुराई का विरोध करें ना, सरकारों को रातों रात सब बदलना पड़ेगा। हम तुम्हारी चालाकियों को खूब समझते हैं। उससे पहले कि गांव वाले तुम्हारे साथ कुछ बुरा कर डालें, अपने रास्ते चलते बनो। " मोहन भैया विलक्षण मुद्रा में बोले।


    बृजमोहन समझ गए कि इन तिलों से तेल नहीं निकले गा। अपने छोटे को इशारा कर घर को चले गए।


वर्षों बीत गए। वहां राधा और पिंकू के एक बेटी हुई। वह चार - पांच साल की हो गई थी। अब सुंदर बहू का मोह धीरे - धीरे राधा की सास से उतर रहा था। हर रोज दोनों में घर के किसी न किसी कामकाज पर नोक - झोक होती ही रहती थी। उस दिन सास ने राधा को बहुत खरी - खोटी सुनाई थी," तेरे मां - बाप ने तुझे रखा कहां था? खाना भी बनाना नहीं सिखाया। किसी भी काम की नहीं है डायन। मेरे बेटे को डोरे डाल कर अपना उल्लू सीधा कर गई बेईमान। " और भी न जाने क्या कुछ?


   राधा अपनी बच्ची को उठा कर दुखी हो कर अपने पिता के यहां चली आई। सोचा मां - बाप माफ कर लेंगे। शाम के समय में जब वह अपने मायके पहुंची तो उसके पिता आंगन में बैठे थे। उससे पहले कि वह अपना दुख कहती । मोहन भैया ने आते ही उसे डांटना शुरू किया,

" क्यों आईं है यहां अब नालायक ? रह गई है कुछ कसर क्या?"

    राधा रो रही थी। उसकी नन्ही सी मुन्नी उसके आंसू पोंछ रही थी और तोतली आवाज में बोल रही थी,"तुप तरो मम्मा! तुम तियुं डो डही हो? यह तुम्हे डांट रहे हैं। ये कौन है?"

      मोहन भैया की ऊंची आवाज सुन कर घर के सब बाहर आ गए। पड़ोस के लोग भी बाहर निकल आए। राधा अपराधिनी की तरह नजरे झुकाए खड़ी थी।


" चुप भी कर अब मोहन। बस बोले ही जा रहा है। देखता नहीं कि कितने दिनों बाद बेटी आईं है?" चाची ने डांटते हुए कहा। और राधा को गले से लगा कर हालचाल पूछा।


   दोनों को बतियाते और रोते हुए उमा भाभी की आंखें भी भर आई। लोगों को बाहर देख कर राधा को दोनों मियां बीबी ने पुनः डांटना शुरू किया। डांटते - डांटते अंदर चले गए। सब लोग बाहर दात दे रहे थे। मोहन बिल्कुल ठीक बोल रहा है। इस कुलटा ने तो सारे गांव की नाक काट ली। उधर चाची ने सब को डांटा और भगा दिया।

अंदर भैया और भाभी आपस में मशविरा कर रहे हैं कि इसे रात को रखना कहां है? लोक लाज से बचने के लिए उसे बेटी के साथ नीचे वाले कमरे में रखने का निर्णय हुआ। सोचा धीरे -धीरे लोग भूल जाते हैं, तब सब ठीक होगा।


  उस रात राधा को निचले कमरे में रखा गया। सुबह जब राधा की नन्ही बच्ची ममी - ममी चिल्लाने लगी तो सब निचले कमरे की ओर दौड़े। देखा वहां राधा थी ही नहीं। बच्ची को पूछा गया कि ममी कहां गई? पर उसे कुछ भी मालूम नहीं था। वह तो बस रो रही थी।

       शालू रोता - रोता आया, "अरे पापा ,पापा दीदी वहां चटान के पास पड़ी है। उसके मुंह से खून निकल रहा है। "

 सब वहां भागे - भागे जाते हैं। पर राधा अब चले गई थी।

बच्ची ममी से चपटना चाह रही थी। उसे दूर ले जाया गया। सब रो रहे हैं। मोहन भैया भी फुट - फुट कर रो रहे हैं। शायद राधा ने रात को बच्ची को सुला कर उस पास वाली चट्टान से कूद कर अपनी जान दे दी थी। वह कुछ सहन नहीं कर पाई थी शायद। उसकी सहन शक्ति जबाव दे गई होगी। वहां सास की खींच - खींच और यहां उसे निचले कमरे में रखा जाना शायद रास नहीं आया। वह अंदर ही अंदर कुढ़ कर अपनी जान दे देती है।

     उधर शहर से राधा के पति व ससुर घर पहुंचते हैं। उनसे राधा की सास ने कहानी उल्टी बता दी थी। पोस्ट मार्टम हुआ और लाश जाला दी गई। पुलिस केस दोहरा हो गया था। राधा के घर वालों ने मोहन भैया का केस किया और मोहन भैया ने घरेलू हिंसा का केस किया। दोनों परिवारों में आग लगी है। यहां पिंकू भी बहुत दुखी है। वह तो शायद दूसरी शादी कर के संभल जाएगा पर बेचारी उस नन्ही सी बेटी की मां को कौन वापिस लाएगा? वह हर रोज मायूस हो कर उस रास्ते को देखती रहती है, जहां से उसकी मां को जलाने के लिए ले जाया गया था।


घोषणा :- यह मेरी मौलिक और स्वरचित कहानी है।


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