वड़वानल - 52

वड़वानल - 52

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18 फरवरी को जनरल हेडक्वार्टर में जो उलझन की परिस्थिति थी वह आज भी कायम थी। दिनभर बैठकें चलती रहीं। विद्रोह द्वारा लिया गया नया मोड़, विद्रोह में सैनिकों का सहयोग, उनके द्वारा राजनीतिक पक्षों और सामान्य जनता से समर्थन के लिए की गई अपील, और विद्रोह को कुचलने के लिए प्रस्तावित व्यूह रचना इन प्रश्नों पर चर्चा हो रही थी। रिपोर्ट्स मँगवाई जा रही थीं; निर्णय सूचित किए जा रहे थे; प्रचार पर ज़ोर देने के लिए जनरल हेडक्वार्टर्स में प्रचार विभाग कार्यरत हो गया था। लोगों के सामने घटनाएँ जिस तरह से घटित हुईं उसके स्थान पर सरकार को जिस तरह लाभदायक हों उस तरह से घटनाओं को प्रस्तुत किया जा रहा था। अधिकृत न्यूज़ बुलेटिन प्रसिद्ध किए जा रहे थे। शान्तिपूर्वक निकाले गए जुलूस का वर्णन ‘सैनिक पागलों के समान प्राणघातक हमले करते रहे’, इस प्रकार के विकृत स्वरूप में किया गया।

रात को करीब नौ बजे यह ख़बर आई कि कलकत्ता के HMIS ‘हुगली’ के सैनिकों ने Commodor Bay of Bengal को अपनी माँगें पेश करते हुए शान्तिमय ‘काम बन्द’ आरम्भ कर दिया है। कलकत्ता में ही ‘राजपूताना’ जहाज़ के  सैनिक भी विद्रोह में शामिल होने का विचार कर रहे हैं। जामनगर के HMIS ‘वलसुरा’ बेस के सैनिकों ने विद्रोह की तैयारी शुरू कर दी है।

 ‘तलवार’ एवं अन्य नौसेना तलों पर ये समाचार पहुँचते ही उत्साह का वातावरण फैल गया।

जनरल हेडक्वार्टर्स में अस्वस्थता बढ़ गई थी। एचिनलेक ने Operation Room में Report Centre में शुरू करने का आदेश दिया और रात के ग्यारह बजते–बजते रिपोर्ट सेंटर कार्यान्वित हो गया। तीनों सैन्यदलों के अधिकारियों की नियुक्तियाँ की गईं। दीवार पर हिन्दुस्तान के बड़े–बड़े नक्शे लगाए गए। विद्रोह में शामिल नौसेना तलों और जहाज़ों को लाल रंगों के निशानों से दर्शाया गया। ब्रिटिश पलटन की उपस्थिति वाले स्थानों को यूनियन जैक जैसे  निशानों से प्रदर्शित किया गया।

19 तारीख की रात तक सरकार का रवैया संरक्षणात्मक था। रात को ग्यारह बजे एचिनलेक के घर का फ़ोन खनखनाया, ‘‘गुड मॉर्निंग सर। मैं बिअर्ड बोल रहा हूँ।’’

‘‘सर, अरुणा आसफ़ अली के ‘तलवार’ पर न जाने के बारे में आपको पता चल ही गया होगा।’’ बिअर्ड ने पूछा।

‘‘हाँ, पता चला। विद्रोह को कुचलने की जिम्मेदारी तुम्हें सौंपी गई है यह भी पता चला। मुम्बई में विद्रोह ज़ोरों पर है और वह पूरे हिन्दुस्तान में फैल रहा है, यह भी पता चला। मुम्बई में विद्रोह कुचल दिया गया तो अन्य स्थानों के सैनिक निर्बल हो जाएँगे। इस बारे में तुम्हारी क्या राय है?  तुमने कौन सी कार्रवाई करने का निश्चय किया है ?’’   एचिनलेक ने पूछा।

‘‘सर, मेरा ख़याल है कि हम आक्रामक रुख अपनाएँ। इससे मुम्बई का विद्रोह दबा दिया जाएगा। मुम्बई का विद्रोह यदि टूट गया तो अन्य स्थानों पर विद्रोह को समाप्त करना कठिन नहीं होगा। हमें आक्रामक नीति का मौका दिया जाए और आक्रामक होने का दोष न लगे इसलिए सैनिकों को निहत्थे करके हिंसा के लिए प्रेरित किया जाए। कल से इन सैनिकों का दाना–पानी बन्द कर दिया है।’’   बिअर्ड ने अपनी रणनीति बतलाई।

‘‘तुम्हारी इस योजना पर विचार करके कल सुबह नौ बजे तक तुम्हें निर्णय बता दिया जाएगा।’’  एचिनलेक ने फ़ोन बन्द किया।

 रात के ग्यारह बजे थे। अरुणा आसफ़ अली से मिलने गए सेंट्रल कमेटी के सदस्य वापस लौटने लगे थे। पाण्डे, दत्त, गुरु और अन्य सदस्य उनकी राह देख रहे थे। खान और मदन के उतरे हुए चेहरे देखकर वे आशंकित हो गए।

 ‘‘क्या हुआ? मिलीं क्या वो ?’’  गुरु ने सबके दिलों की बात पूछ ली।

‘‘न आने की वजह तो उन्होंने बताई ही नहीं उल्टे माँग–पत्र देखकर सलाह दी, ‘माँगें प्रस्तुत करने में तुम लोगों ने गड़बड़ कर दी है। तुम्हारी माँगों को दो भागों में बाँटा जा सकता है; एक सेवा सम्बन्धी माँगें और दूसरी राजनीतिक माँगें। तुम राजनीतिक और सेवा सम्बन्धी माँगों को एक में न मिलाते हुए सिर्फ सेवा सम्बन्धी माँगों के पीछे लगो’।’’ खान ने निराशा से कहा।

‘‘और तुम चुप बैठ गए ?’’  दत्त ने पूछा।

‘‘नहीं, हमने उनसे साफ–साफ कह दिया, हमारा संघर्ष स्वतन्त्रता के लिए है। सेवा सम्बन्धी माँगें दूसरे स्थान पर हैं। स्वतन्त्रता प्राप्त हुए बगैर हमारी माँगें सच्चे अर्थों में पूरी नहीं होंगी यह हमें पता है। सबका समर्थन हमें प्राप्त हो इसलिए ये सेवा विषयक माँगें डाली गई हैं। इस पर उन्होंने फिर से सलाह दी, तुम लोग शान्त रहकर अपनी सेवा सम्बन्धी माँगों के लिए संघर्ष करते रहो।’’  मदन ने कहा।

‘‘ये सलाह हम मान ही नहीं सकते थे। अब उनसे मिलने में कोई तुक नहीं है। हम लोग बड़ी आशा लेकर उनके पास गए थे, मगर उन्होंने हमें अधर में लटका दिया। सुबह वे मुम्बई से बाहर जाने वाली हैं। उन्होंने हमें सरदार पटेल से मिलकर उनसे सलाह लेने का मशविरा दिया।’’ खान के चेहरे से निराशा छिप नहीं रही थी।

‘‘ठीक है। तो अब अपना रास्ता हमें खुद ही ढूँढ़ना होगा। हम जिसे सूरज समझते थे, वह सूरज नहीं था, वह था दूसरे के प्रकाश में टिमटिमाता चाँद।’’ दत्त समझा रहा था।

‘‘आज अगर शेरसिंह मुक्त होते... किसी और के पास जाने की तब ज़रूरत ही नहीं थी।’’   गुरु को शेरसिंह की याद आई।

‘‘जो हुआ सो हुआ। अब उसके बारे में सोचने से कोई फ़ायदा नहीं। जहाज़ों के और ‘बेसेस’ के प्रतिनिधियों के आने के बाद हम अपनी व्यूह रचना निश्चित करेंगे।’’ दत्त ने सुझाव दिया और सब लोग विश्राम करने के लिए अपनी–अपनी बैरेक में गए। मगर नींद किसी को भी नहीं आई।

सुबह मुम्बई छोड़ने से पहले अरुणा आसफ़ अली ने पंडितजी को तार भेजा, ''Naval strike tense, situation serious climaxing to a grim close. You alone can control and avoid tragedy. Request your immediate presence in Bombay.''

सुबह से घने बादल छाए थे। पूरे वातावरण में नीरव उदासी छाई थी।सरदार पटेल का फ़ोन सुबह–सुबह खनखनाया, ''Good morning, Sir.'' गवर्नर के पी.ए. , बटलर ने ‘विश’ किया।

‘‘बोलो, क्या खबर है?  हमें फिर से पकड़ने का इरादा तो नहीं है ना सरकार का ?’’   पटेल ने हँसते हुए पूछा,  ‘‘सुबह–सुबह फोन किया, इसलिए पूछा।’’

‘‘नहीं, वैसी कोई बात नहीं है। मुम्बई के नौसैनिकों का विद्रोह बिगड़ता ही जा रहा है। कल सैनिक बेकाबू हो गए थे। अरुणा आसफ़ अली सैनिकों से मिली नहीं, यह अच्छा ही हुआ, वरना परिस्थिति और बदतर हो जाती। उनकी माँगें देखी हैं आपने ?’’  बटलर ने पूछा।

‘‘नहीं अभी तक तो नहीं।’’ सरदार ने कहा।

‘‘उन्हें अधिक सुविधाएँ चाहिए, ज़्यादा खाना चाहिए। ये सब हासिल करने के लिए उन्हें राष्ट्रीय पक्ष का समर्थन चाहिए। मुम्बई के गवर्नर साहब की यह राय है कि सेना सम्बन्धित प्रश्न उनके आन्तरिक प्रश्न हैं; सरकार उन्हें अपने स्तर पर सुलझाएगी; राष्ट्रीय दल इसमें हस्तक्षेप न करें। ऐसे हस्तक्षेप से परिस्थिति खतरनाक हो जाएगी। लीग इस विद्रोह को समर्थन नहीं दे रही है यह स्पष्ट हो गया है। कांग्रेस की क्या भूमिका है ?’’  बटलर ने पूछा।

‘‘कांग्रेस उन्हें समर्थन नहीं देगी, मगर उनकी समस्याओं का क्या ? उन्हें यदि सुलझाया नहीं गया तो स्थिति नियन्त्रण से बाहर हो जाएगी ऐसा मेरा विचार है।’’  पटेल ने कांग्रेस की भूमिका स्पष्ट की।

‘‘ये सैनिक दूसरे महायुद्ध में साम्राज्य की खातिर लड़े हैं। उनकी बहादुरी और कर्तृत्व पर हमें नाज़ है। ये सैनिक    साम्राज्य का एक हिस्सा हैं। उनकी समस्याएँ हम सुलझाने ही वाले हैं। शर्त बस यह है कि वे अपना संघर्ष वापस लें और फ़ौरन काम पर वापस आएँ।’’  बटलर ने सरकार की भूमिका प्रस्तुत की, ‘‘ये सब सामोपचार से हो जाए इसके लिए कांग्रेस सहायता करे ऐसी सरकार की इच्छा है।‘’

‘‘कांग्रेस से किस प्रकार के सहयोग की अपेक्षा है ?’’  पटेल ने पूछा।

‘‘कांग्रेस सैनिकों पर दबाव डालकर उन्हें बिना शर्त काम पर लौटने को कहे। उनकी समस्याएँ कानूनी मार्ग से हम सुलझाएँगे।’’  बटलर ने आश्वासन दिया।

 ‘‘कांग्रेस कोशिश करेगी।’’

''Thank you very much, sir.'' बटलर ने फ़ोन बन्द किया।

 सुबह के अखबारों ने 19 फरवरी की घटनाओं की जानकारी घर–घर में पहुँचाई थी। कुछ समाचार–पत्रों ने इस विद्रोह के बारे में अरुणा आसफ़ अली की राय प्रकाशित की थी। उन्होंने कहा था, ‘‘मुम्बई के करीब पन्द्रह हज़ार नौसैनिकों ने इतवार से भूख हड़ताल कर दी है। सैनिकों की माँगें उचित हैं। वेतन, विविध प्रकार के भत्ते, खाना,  सुविधाएँ आदि बातों में हिन्दुस्तानी एवं ब्रिटिश सैनिकों में जो भेदभाव है उसे दूर किया जाए यह उनकी माँग है। ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा हिन्दुस्तानी सैनिकों के साथ जो भेदभाव किया जाता है उसका वे विरोध करते हैं। इन सैनिकों की आर्थिक और सेवा सम्बन्धी माँगों पर वर्तमान तनावपूर्ण राजनीतिक परिस्थिति    का परिणाम हुआ है। सेना के नौजवान अब मतिमन्द व्यक्तियों की तरह अंग्रेज़ों की दादागिरी और गाली–गलौज सहन करने को तैयार नहीं  हैं।’’

खान ने अरुणा आसफ अली के विचार पढ़े और दत्त से बोला, ‘‘अरुणा आसफ़ अली ने अपने विचार स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किये हैं। मगर हमारी स्वतन्त्रता सम्बन्धी माँगों के बारे में उन्होंने कुछ भी क्यों नहीं कहा है ? और यदि उन्हें हमारे बारे में इतना अपनापन लग रहा था तो वे हमारा मार्गदर्शन करने, हमारा नेतृत्व स्वीकार करने आईं क्यों   नहीं ?’’

‘‘उन्होंने हमारे स्वतन्त्रता–प्रेम के बारे में अथवा स्वतन्त्रता विषयक हमारी माँगों के बारे में कुछ भी नहीं कहा है।  इससे ग़लतफहमी होने की सम्भावना है। वैसा न हो इसलिए हमें कुछ करना चाहिए। वे आईं क्यों नहीं, इसकी वजह तो वे ही जानें।’’  दत्त ने जवाब दिया।

‘‘मुम्बई से प्रकाशित होने वाले और स्वतन्त्रता आन्दोलन का पक्ष लेने वाले ‘फ्री प्रेस जर्नल’  ने नौसैनिकों के विद्रोह पर सम्पादकीय लिखा था। ‘अस्वस्थ नौदल’ (Not a Silent Navy) शीर्षक से इस सम्पादकीय में लिखा था, ‘‘नौदल सैनिकों द्वारा निकाले गए जुलूस अर्थपूर्ण थे।’’ सम्पादकीय में इन जुलूसों का राजकीय स्वरूप स्पष्ट करके आगे लिखा गया था, ‘‘इन सैनिकों ने राष्ट्रध्वज फहराते हुए राष्ट्रप्रेम के नारे लगाए।’’  सम्पादकीय में दिल्ली में हवाईदल के सैनिकों की हड़ताल के तुरन्त बाद नौदल के सैनिकों द्वारा की गई हड़ताल और जुलूसों का सम्बन्ध राजनीतिक परिस्थिति से जोड़ा गया था। सम्पादकीय में आगे कहा गया था, ‘‘आज़ाद हिन्द सेना के ‘जय हिन्द’  इस नारे का सैनिक जिस खुलेपन से इस्तेमाल कर रहे थे, उससे यह बात ध्यान में आती है कि उन्हें आज़ाद हिन्द सेना का केवल महत्त्व ही समझ में नहीं आया था,  बल्कि वे स्वयँ को भी बड़े गर्व से उसके सदस्य मान रहे थे।’’

सैनिकों द्वारा आयोजित जुलूसों के बारे में सम्पादकीय में कहा गया था, ‘‘मुम्बई में सैनिकों द्वारा निकाले गए प्रदर्शन शायद राष्ट्रीय पक्षों के प्रदर्शनों से छोटे हों; चाहे सैनिकों की हड़ताल और प्रदर्शन परिस्थिति को ध्यान में न रखते हुए अथवा इसमें से कुछ अच्छा ही होगा, ऐसी उम्मीद न रखते हुए किए गए हों; फिर भी स्वतन्त्रता संघर्ष में यह घटना एक मील का पत्थर बन गई है। सैनिकों को राजनीतिक प्रभाव से दूर रखने के सरकार के अब तक के सभी प्रयास असफल हो गए हैं।’’

‘‘देख, सरकार के खुशामदी अख़बारों ने विकृत समाचार दिया है।’’ ‘गोंडवन’ का बैनर्जी जगदीश से कह रहा था।

‘‘हाँ, देखा है। ‘टाइम्स’ ने तो यहाँ तक कह दिया है कि ‘कल सैनिक पागलों के समान प्राणघातक हमले कर रहे थे।   असल में कल तो हम पूरी तरह संयमित थे। कल से रेडियो भी हमारे ख़िलाफ़ काँव–काँव कर रहा है। ये सब हमारी छवि को मलिन करने के लिए किया जा रहा है। यदि यह इसी तरह चलता रहा तो...!’’

‘‘मैं नहीं समझता कि यह प्रचार हमें बदनाम कर सकेगा। क्योंकि स्वतन्त्रता के समर्थक, सरकार विरोधी अख़बार सही खबरें दे रहे हैं और लोग इन्हीं अखबारों पर विश्वास करते हैं। फिर लोगों ने हमारे शान्तिपूर्ण जुलूस देखे हैं। इसलिए ग़लतफहमी होगी नहीं।’’  बैनर्जी ने समझाया।

‘‘तुम ठीक कह रहे हो।’’ इतनी देर सारी चर्चा शान्ति से सुनने वाले यादव ने सहमति दर्शाते हुए कहा, ‘‘कांग्रेस का समर्थन मिलेगा ऐसा हम सोच रहे थे। मगर कल अरुणा आसफ़ अली मार्गदर्शन करने आईं ही नहीं। और उधर कांग्रेस के और देश के सर्वश्रेष्ठ एवं वन्दनीय नेता - महात्माजी ने हमारे विद्रोह पर असन्तोष व्यक्त किया है।  उन्हें सैनिकों का यह काम पसन्द नहीं आया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि ‘सैनिक यदि असन्तुष्ट हैं तो वे नौकरी छोड़ दें’।’’

‘‘क्या महात्माजी को यह मालूम नहीं है कि सेना की नौकरी एक अनुबन्ध होती है। अनुबन्ध तोड़ने से सज़ा मिलती है। ठीक है। हम सज़ा भुगतने के लिए भी तैयार हैं। मगर इससे होगा क्या? हज़ारों नौजवान नौकरी के लिए दर–दर भटक रहे हैं। वे सेना में भर्ती हो जाएँगे और तब हमारे नौकरी छोड़ने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। नयी भर्ती के कारण अंग्रेज़ी हुकूमत का हिन्दुस्तान में सैनिकी–आधार ही उखड़ नहीं पायेगा, इस बात का एहसास हमें था इसलिए हमने यह मार्ग चुना। मगर यह सब उस महात्मा से कौन कहे!’’ बैनर्जी के शब्दों से उसकी आन्तरिक पीड़ा झाँक रही थी।

ठाणे के HMIS ‘अकबर’ का वातावरण कल से तनावपूर्ण था। ‘तलवार’ पर विद्रोह की ख़बर मिलते ही ‘अकबर’ के सैनिक जोश में नारे लगाते हुए बैरेक से बाहर निकले। ‘अकबर’ के कमांडिंग अफ़सर ने आपातकालीन उपाय के रूप में ‘बेस’ के लगभग चालीस गोरे सैनिक बाहर निकाले। उनके हाथों में लाइट मशीनगन्स देकर हिन्दुस्तानी सैनिकों को देखते ही गोली मारने का आदेश दे दिया।

‘‘कितनी देर हम यहाँ इसी तरह, कैदियों की भाँति रहने वाले हैं ?  ये मुट्ठीभर गोरे हम पाँच सौ लोगों को बन्द करके रखते हैं, इसका मतलब क्या हुआ ?’’ Able Seaman रामलाल अपने साथियों से पूछ रहा था।

‘‘अरे, मगर उनके हाथों में मशीनगन्स हैं। फिर उन्हें Shoot at Sight की ऑर्डर भी तो स्टीवर्ड ने दे रखी है।’’  हाल ही में भर्ती हुआ हवासिंह बोला।

‘‘रहने दो ना! अरे, एक मशीनगन हाथ में आ गई तो उन तीस–चालीस लोगों पर काबू पाना मुश्किल नहीं है।’’ रामलाल के दिमाग में कुछ और ही विचार उमड़ रहे थे।

‘‘मगर यह एक मशीनगन हाथ में आएगी कैसे ?’’ सोहन लाल ने पूछा।

‘‘उसी के बारे में सोच रहा हूँ। मशीनगन वाले सैनिक हालाँकि चालीस हैं फिर भी वे सब एक साथ नहीं घूमते। यदि हम आठ–दस लोग एक गोरे को घेर लें तो मशीनगन छीनना मुश्किल नहीं है।’’

‘‘और उस एक गोरे को बन्धक बनाकर अन्य मशीनगन्स और गोरे सैनिकों को अपने कब्जे में ले सकते हैं...’’ मोहन लाल उत्साह से योजना बना रहा था।

बैरेक के बाहर गश्त लगा रहे सैनिक को घेरकर उसकी मशीनगन पर कैसे काबू किया जाए यह निश्चित किया गया। इसके लिए जब वह चल रहा  होगा तो उसके पीछे की ओर पत्थर, बोतलें आदि फेंककर उसका ध्यान विचलित किया जाए। वह पीछे घूमकर ढूँढ़ने लगेगा, तब वह निश्चय ही बैरेक के सामने वाले आम के पेड़ के नीचे से आएगा,  तब पेड़ पर छिपकर बैठे दो लोग अचानक उस पर हमला कर दें। उसी समय अन्य सैनिक उसे घेर कर उसे अपने कब्ज़े में लें। इसी तरीके से और एक–दो को कब्जे में लिया जाए। इस कार्रवाई की ज़िम्मेदारी रामलाल और हवासिंह ने ली।

सुबह नौ बजे इस ज़बर्दस्त घातक चाल से ‘अकबर’ के हिन्दुस्तानी सैनिकों ने तीन मशीनगनधारी गोरे सैनिकों को अपने कब्जे में ले लिया, और इसके ज़ोर पर सैनिकों से मशीनगन्स छीन लीं। गोरे सैनिकों और अधिकारियों को ‘बेस’ से भगा दिया और ‘बेस’ पर अधिकार कर लिया। चालीस सैनिकों को बेस की सुरक्षा के लिए छोड़कर बाकी सैनिक रेल से ‘तलवार’ की ओर निकले। लोकल ट्रेन में सफ़र करते हुए वे नारे लगा रहे थे; लोकल के हर कम्पार्टमेंट में जाकर विद्रोह का उद्देश्य, उन्हें होने वाली तकलीफों, उनके साथ किये जा रहे अमानुष बर्ताव के बारे में मुसाफ़िरों को बता रहे थे।

‘गोंडवन’ के सैनिकों ने भी ‘तलवार’ की ओर जाने की तैयारी कर ली। निकलने से पहले ‘गोंडवन’ पर अधिकार कर लिया; सैनिकों के एक्शन स्टेशन्स निश्चित किए गए; गोला–बारूद और हथियारों पर कब्जा करके उनका इस्तेमाल कब करना है इस बारे में निर्णय लिये गए और वे ‘तलवार’ की ओर निकले।


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