वड़वानल - 49

वड़वानल - 49

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लॉर्ड एचिनलेक मुम्बई पोलिस कमिश्नर द्वारा भेजी गई रिपोर्ट पढ़ रहे थे। रिपोर्ट में लिखा था :  

‘‘नौसैनिक राष्ट्रीय नेताओं का समर्थन प्राप्त करने की कोशिश में हैं। उनके प्रतिनिधि कांग्रेस, मुस्लिम लीग और कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं से मिल रहे हैं। इनमें से कांग्रेस विद्रोह को समर्थन देने की मन:स्थिति में नहीं है, कांग्रेस फ़िलहाल शान्ति चाहती है। हिन्दू और मुस्लिम इकट्ठे होने के कारण लीग इसमें सहभागी नहीं होगी। कम्युनिस्ट पार्टी आज तक स्वतन्त्रता आन्दोलन से दूर थी। इस पार्टी का जनता पर खास प्रभाव नहीं है। इसलिए यदि यह पार्टी समर्थन देती है, तो भी विशेष फर्क पड़ने वाला नहीं है। कांग्रेस के समाजवादी गुट के नेताओं,  विशेषत: अरुणा आसफ अली के समर्थन देने की सम्भावना है।’’एचिनलेक ने आख़िरी वाक्य पढ़ा और वे बेचैन हो गए। सुबह के अखबार में भी अरुणा आसफ अली का ज़िक्र था। ‘यह औरत एक तूफान है,’ वे अपने आप में पुटपुटाये। गोलियों की परवाह न करते हुए तिरंगा फ़हराने की उनकी ज़िद की याद आई। ‘अगर इस औरत का साथ उन्हें मिल गया तो...’  इस विचार से बेचैनी और बढ़ गई। उन्होंने  फ़ौरन मुम्बई के पुलिस कमिश्नर को आपात सन्देश भेजा, ''Serve an order on Mrs. Aruna Asaf Ali debarring her from taking part in public meetings.'' 

सैनिकों के प्रतिनिधि अरुणा आसफ अली से मिलने पहुँचे तो दिन के ग्यारह बजे थे।

‘‘आइये,    मैं आपकी राह ही देख रही थी।’’  उन्होंने मुस्कराते हुए प्रतिनिधियों का स्वागत किया। ‘‘क्या कहता है विद्रोह ?’’  उन्होंने पूछा।

‘‘विद्रोह को उम्मीद से बढ़कर समर्थन मिल रहा है। अभी,  इस वक्त करीब आठ से दस हज़ार सैनिक तलवार पर इकट्ठा हुए हैं और आठ–दस हज़ार हमें समर्थन देने वाले जहाज़ और ‘बेस’  सँभाल रहे हैं।’’  पाण्डे ने जवाब दिया।

‘‘तुम्हारा संघर्ष,   तुम पर होने वाले अन्याय,  तुम्हारे साथ किये जा रहे सौतेले व्यवहार, कम वेतन, अधूरा खाना इसी के लिए है ना ?’’ अरुणा आसफ़ अली ने पूछा।

‘‘नहीं, सिर्फ यही कारण नहीं है।’’  दो–तीन प्रतिनिधि एकदम बोले। ‘‘हमारी ये माँगें देखिये, तब समझ में आएगा।’’ पाण्डे ने माँगों का निवेदन उनके हाथों में दिया। अरुणा आसफ़ अली ने बारीकी से उन माँगों को पढ़ा। ‘’ इनमें  पहली और अन्तिम माँग कुछ हद तक स्वतन्त्रता से सम्बन्धित है।’’  उन्होंने कहा।

‘‘सही है। मगर कल रात को हमने रॉटरे से कह दिया है कि हमें स्वतन्त्रता चाहिए। तुम यह देश छोड़कर चले जाओ!’’ प्रतिनिधि मण्डल के यादव ने जवाब दिया।

‘‘और, अन्य माँगें पढ़कर क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि हमारा आत्मसम्मान जागृत हो चुका है ?’’  पाण्डे ने पूछा।

उन्होंने गर्दन हिलाते हुए सम्मति ज़ाहिर की।

‘‘किसी समाज का आत्मसमान जब जाग जाता है तो स्वतन्त्रता की लहर उफ़न उठती है। हमारा आत्मसम्मान जागृत हो गया है। हमें अब स्वतन्त्रता चाहिए।’’   पाण्डे ने कहा।

‘‘समझो, यदि सरकार ने तुम्हारी पहली और अन्तिम माँग ठुकराकर बची हुई माँगें मान लीं तो क्या संघर्ष वापस लेने के लिए आप लोग तैयार हैं ?’’  उन्होंने टटोलने की कोशिश की।

‘‘कभी नहीं!’’   सारे प्रतिनिधियों ने एक सुर में जवाब दिया।

‘‘सारी माँगें मंज़ूर होनी ही चाहिए। यदि वैसा नहीं होता है तो हम आख़िर तक लड़ने के लिए तैयार हैं।’’   यादव ने जवाब दिया।

अरुणा आसफ अली मुस्कराईं। सैनिकों की तैयारी देखकर उन्हें अच्छा लगा था।

‘‘मुझसे आप किस तरह की मदद चाहते हैं ?’’  उन्होंने पूछा।

‘‘आप हमारा प्रतिनिधित्व करके माँगें मनवा लें। यदि सरकार माँगें मंज़ूर नहीं करती है तो फिर आप हमारे विद्रोह का प्रतिनिधित्व करें।’’ पाण्डे ने सहायता के स्वरूप के बारे में बताया।

‘‘ठीक है। मैं सरकार से विचार–विमर्श करूँगी और तुम लोगों से मिलकर ही निश्चित करूँगी कि मुझे तुम्हारा नेतृत्व करना है अथवा नहीं। आज ही दोपहर को चार बजे मैं ‘तलवार’ में आकर तुम लोगों से मिलकर तुम्हारे विचार समझ लूँगी; अपने विचार तुम्हारे सामने रखूँगी इसके बाद ही निर्णय लूँगी।’’  अरुणा आसफ़ अली ने सैनिकों का साथ देने का इरादा कर लिया।

अरुणा आसफ अली शाम चार बजे ‘तलवार’ पर आकर सैनिकों का मार्गदर्शन करेंगी यह ख़बर हवा के समान फैल गई। सैनिकों के बीच उत्साह का वातावरण उत्पन्न हो गया। जहाज़ों और नाविक तलों पर रुके हुए सैनिक भी तलवार की ओर निकले। कई सैनिक अभी भी शहर में नारे लगाते घूम रहे थे,  उन्हें इस मुलाकात की जानकारी हो जाए इसलिए खान और मदन ने चार ट्रक्स लाउडस्पीकर्स लगाकर पूरी मुम्बई में घोषणा करने के लिए भेजे।

अरुणा आसफ़ अली की मुलाकात के बारे में अख़बार वालों को पता लगते ही अख़बारों और समाचार एजेन्सियों के प्रतिनिधि तलवार की ओर भागे। सामान्य सैनिकों की भूमिका क्या है ?  अरुणा आसफ अली उन्हें क्या सलाह देने वाली हैं, किस तरह का मार्गदर्शन करने वाली हैं ? इसके बारे में उन्हें उत्सुकता थी।

‘‘आपका संघर्ष किसलिए है ?’’  एक पत्रकार ने पूछा।

‘‘स्वतन्त्रता के लिए!’’ एक सैनिक ने जवाब दिया।

‘‘सरकार तो यह कह रही है कि यह संघर्ष वेतनवृद्धि,  अच्छा खाना, सम्मानजनक व्यवहार आदि माँगों के लिए है। स्वतन्त्रता का इससे लेशमात्र भी सम्बन्ध नहीं है।’’   दूसरे पत्रकार ने एक अन्य सैनिक को छेड़ा।

‘‘सरकार तो यही कहेगी। हमारी माँगें बेशक वेतनवृद्धि,  अच्छा खाना, सम्मानजनक व्यवहार के सम्बन्ध में हैं, मगर स्वतन्त्रता प्राप्त हुए बिना हमें न्याय मिलने वाला नहीं है इसका हमें यकीन है। ‘ज़रा ‘तलवार’ में घूमकर देखो। यहाँ की दीवारें स्वतन्त्रता के नारों से सजी हैं। हम तो क्या, यहाँ का एक–एक कण स्वतन्त्रता की इच्छा से  सम्मोहित है।’’  दूसरे सैनिक ने गुस्से से जवाब दिया।

‘‘क्या आपको यकीन है कि आपके इस संघर्ष से स्वतन्त्रता प्राप्त हो जाएगी ?’’   पत्रकार का प्रश्न था।

‘‘क्यों नहीं होगी ?’’  सैनिक ने पलट कर पूछा।

‘‘तुम लोग मुट्ठीभर हो, कमज़ोर हो इसलिए–––।’’

‘‘सही है। हम मुट्ठीभर हैं, मगर कमज़ोर नहीं हैं। हम एक हैं। लड़ाइयाँ हमने भी देखी हैं। लड़ाई में कब कौन–से दाँवपेंचों का इस्तेमाल किया जाना है, यह हमें मालूम है। हमें यकीन है, कि यदि राष्ट्रीय दलों और नेताओं ने हमारा साथ दिया तो जय हमारी ही होगी। स्वतन्त्रता अब दूर नहीं।’’ सैनिक ने जवाब दिया।

‘‘क्या तुम्हें यकीन है कि राष्ट्रीय दल और नेता तुम्हारा साथ देंगे ?’’ पत्रकार ने पूछा।

 ‘‘साथ क्यों नहीं देंगे ?  उनका हमारा उद्देश्य तो आख़िर एक ही है ना। अरुणा आसफ़ अली से मुलाकात किस ओर इशारा करती है ?’’  सैनिक ने स्पष्ट किया।

‘‘तुम्हारा संघर्ष अहिंसक नहीं है।’’

‘‘किसने कहा ?  हम अहिंसा के मार्ग पर ही चल रहे हैं। और चलते रहेंगे।’’ अविश्वास के प्रति चिढ़कर सैनिक ने जवाब दिया।

‘‘कल की अमेरिकन झण्डे...।’’

‘‘वह हमारी ग़लती थी, हमने इसके लिए माफी माँगी है। याद रखिये, हम सैनिक हैं। बन्दूक की ज़ुबान हम समझते हैं। अहिंसा का मार्ग हमारे लिए नया है। एकाध बार पैर फ़िसल सकता है,  मगर इसका मतलब यह नहीं हुआ कि हम हिंसा पर उतारू हो गए हैं।’’

पत्रकारों और संवाददाताओं को यह बात समझ में आ गई कि सैनिक एक हो गए हैं। जागृत हो चुके आत्मसम्मान के बल पर ही उन्होंने संघर्ष आरम्भ किया है, वे अहिंसा के मार्ग पर चल रहे हैं और उनमें ज़बर्दस्त आत्मविश्वास है। 

मुम्बई के रास्तों पर नारे लगाते घूम रहे सैनिकों को देखकर मुम्बई प्रान्त के गवर्नर सर जे.  कोलविल परेशान हो गए।

‘‘अब तक तो ये सैनिक अहिंसक थे। यदि उन्होंने हिंसा का मार्ग अपनाया तो ?’’ इस सन्देह के मन में उत्पन्न होते ही वे बेचैन हो गए, उनकी आँखों के सामने जलती हुई मुम्बई खड़ी हो गई,  बेचैनी बढ़ गई। बेचैन मन से वे उस विशाल हॉल में चक्कर लगाने लगे।

‘‘यह सब रोकना ही होगा। किसी भी तरह से सैनिकों को काबू में करना ही होगा।’’ उन्होंने निश्चय किया और वरिष्ठ अधिकारियों की मीटिंग बुलाने का निर्णय   लिया।

मुम्बई के गवर्नमेंट हाउस में भाग–दौड़ बढ़ गई थी। दिन के सवा दो बजे से ही वरिष्ठ अधिकारी पहुँचने शुरू हो गए थे। आए हुए अधिकारी छोटे–छोटे समूहों में इकट्ठा होकर मुम्बई की परिस्थिति और उसके फलस्वरूप निर्माण होने वाले प्रश्नों की धीमी आवाज़ में चर्चा कर रहे थे। दीवार घड़ी ने ढाई बजे का घण्टा बजाया और मुम्बई के गवर्नर ने गवर्नमेंट हाउस में प्रवेश किया। शानदार कदमों से वे सीधे मीटिंग हॉल में आए। उन्हें देखते    ही अधिकारियों की फुसफुसाहट थम गई। सभी अधिकारी अटेन्शन की मुद्रा में आ गए और उन्होंने गवर्नर को ‘विश’   किया, ''Good noon, Sir!''

‘‘मुम्बई में आज जो परिस्थिति है उसके बारे में आप सब जानते हैं। सबसे पहली ज़रूरत है इन सैनिकों पर काबू पाना। इसके लिए भूदल और हवाईदल का प्रयोग करने के लिए मैं तैयार हूँ। रियर एडमिश्ल रॉटरे, आपके पास जो नौदल अधिकारी और गोरे सैनिक हैं, क्या उनकी सहायता से आप हिन्दुस्तानी सैनिकों पर काबू पा सकेंगे ?’’ प्रस्तावना में समय न गँवाते हुए गवर्नर सीधे विषय पर आ गए।

‘‘सर,   मुम्बई के नौसैनिकों की संख्या करीब बीस हज़ार है। इनमें से अधिकांश सैनिक विद्रोह में शामिल हो गए हैं। अधिकारियों और गोरे सैनिकों की संख्या लगभग दो हजार है। माफ कीजिए, इतने छोटे सैनिक बल से में इन सैनिकों पर काबू नहीं कर पाऊँगा। सैनिकों ने अभी तक तो हिंसा का मार्ग अपनाया नहीं है। अधिकारियों की बात तो वे सुनेंगे ही नहीं, मगर यदि हिंसा पर उतारू हो गए तो... सभी...’’  रॉटरे ने अपनी असमर्थता जतार्ई।

‘‘यह आग कितनी दूर तक फैल चुकी है ?’’ गवर्नर ने पूछा। 

‘‘मुम्बई में बाईस जहाज़ और सभी नाविक तल विद्रोह में शामिल हो गए हैं। ऐसी मेरे पास जानकारी है। मुम्बई    से बाहर के कुछ नाविक तलों के भी शामिल होने की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसा नहीं है कि इस विद्रोह में सिर्फ कनिष्ठ सैनिक ही शामिल हैं,  बल्कि कुछ हिन्दुस्तानी अधिकारी और ज़्यादातर पेट्टी ऑफिसर्स और चीफ पेट्टी ऑफिसर्स भी सम्मिलित हैं। कल ‘तलवार’ पूरी तरह सैनिकों के कब्जे में था। आज ‘तलवार’ ही की तरह अन्य जहाज़ और नाविक तल सैनिकों के नियन्त्रण में हैं,’’   रॉटरे ने जानकारी दी।

‘‘मतलब, परिस्थिति गम्भीर है। जनरल बिअर्ड, मेरा ख़याल है कि भूदल का इस्तेमाल करना होगा, आपकी क्या राय है ?’’  गवर्नर ने एरिया कमाण्डर जनरल बिअर्ड से पूछा।

‘‘आज मेरे अधीन लैंचेस्टर रेजिमेंट की आधी बटालियन और मराठा रेजिमेंट इस काम के लिए पर्याप्त नहीं है ऐसा मेरा विचार है। क्योंकि फोर्ट और कैसल बैरेक्स में गोला–बारूद और शस्त्रास्त्र हैं। विद्रोह में शामिल सैनिकों के शस्त्रों का इस्तेमाल करने की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसी स्थिति में ज़रूरत पड़ने पर सशस्त्र पुलिस की सहायता, आवश्यकता पड़ने पर, ली जाए।’’

बिअर्ड ने भूदल के इस्तेमाल के बारे में स्पष्टीकरण दिया।

 ‘‘मुम्बई में विद्यमान सेना अपर्याप्त क्यों प्रतीत होती है ? क्या ऐसी स्थिति में हवाईदल की मदद ली जा सकती है ? बेशक, सशस्त्र पुलिसदल आपको दिया जाएगा।’’   पुलिस कमिश्नर बटलर ने पूछा।

‘‘हमारी लैंचेस्टर रेजिमेंट में जो सैनिक हैं वे युद्ध के दौरान भर्ती किए गए किसान, मजदूर आदि हैं। वे अनुशासित और पूरी तरह से प्रशिक्षित हिन्दुस्तानी नौसैनिकों के सामने टिक नहीं सकेंगे। हवाईदल पर हम विश्वास नहीं कर सकते, क्योंकि कुछ ही दिन पहले दिल्ली के हवाईदल की बेस पर विद्रोह हुआ था। नौसैनिकों की ही भाँति ये सैनिक भी सुशिक्षित हैं। उन पर विविध राजनीतिक दलों का प्रभाव है। ये सैनिक सरकार के प्रति कितने वफ़ादार रहेंगे इसमें सन्देह है।’’  बिअर्ड ने जवाब दिया।

‘‘मुझे याद है, कि लार्ड वेवेल ने चीफ़ ऑफ दि स्टाफ़ को पत्र लिखकर आज की परिस्थिति जैसी नौबत आने पर कितने सैनिकों, जहाजों, विमानों की आवश्यकता होगी इसकी एक पूरी फेहरिस्त ही भेजी थी। यह पत्र 22 दिसम्बर को,  अर्थात् करीब दो महीने पूर्व प्राप्त हुआ था। इसमें से कितनी डिप्लॉयमेंट प्राप्त हो चुकी है ?’’  गवर्नर के सलाहकार बिस्ट्रो ने पूछा।

‘‘कुछ भी नहीं,’’  बिअर्ड ने जवाब दिया। ‘‘फोर्ट बैरेक्स और कैसेल बैरेक्स के गोला–बारूद और शस्त्रास्त्रों को पहले अपने नियन्त्रण में लेना चाहिए। समयानुसार इन नाविक तलों पर हमले करना भी ज़रूरी है।’’

‘‘इन तलों के शस्त्रास्त्रों को कब्जे में लेना हालाँकि जरूरी है, मगर हमला करने की जल्दबाज़ी न करें। चिढ़े हुए बीस हज़ार सैनिक मुम्बई में तांडव मचा देंगे; यदि हमारे इरादे की उन्हें ज़रा सी भी भनक पड़ गई तो वे बाहर निकल आएँगे और फिर हालात बेकाबू हो जाएँगे।’’ बटलर ने चेतावनी दी।

‘‘नाविक तलों पर भूदल की सहायता से नियन्त्रण किया जा सकता है, मगर जहाज़ों का क्या ? इन पर कब्जा कैसे करेंगे ? इन जहाज़ों पर दूर तक मार करने वाली तोपें हैं। इन तोपों की मार से पूरी मुम्बई नष्ट हो सकती है तलों के साथ–साथ जहाज़ों पर भी कब्ज़ा करना होगा।’’  ब्रिस्टो को विस्तारपूर्वक जानकारी चाहिए थी।

‘जहाज़ों पर कब्जा करने के लिए हवाईदल की मदद लेनी चाहिए। हिन्दुस्तानी हवाईदल विश्वास करने योग्य नहीं रह गया है अत: ब्रिटिश एअर फोर्स के कुछ बॉम्बर्स मँगवाने चाहिए। भूदल की सहायता के लिए भी आसपास के तलों से ब्रिटिश भूदल के सैनिक लाए जाएँ। सम्भव हो तो कुछ जहाज़ भी मँगवा लिये जाएँ। इन टुकड़ियों के पहुँचने तक सैनिकों को उनकी बैरेक्स में दबाकर रखा जाए। दरमियान के काल में बातचीत का नाटक करते रहेंगे।   पर्याप्त सैनिक शक्ति प्राप्त होते ही इस विद्रोह को कुचल देंगे।’’ रॉटरे ने व्यूह रचना प्रस्तुत की।

जनरल बिअर्ड ने नौसैनिकों को बैरेक्स में दबाए रखने की और पर्याप्त सैनिक सहायता प्राप्त करने की ज़िम्मेदारी स्वीकार की।

मीटिंग से जब ये सारे वरिष्ठ अधिकारी बाहर निकले,   तो वे अपनी रणनीति निश्चित कर चुके थे।


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