वाल्य :तराजू के दो पलड़े
वाल्य :तराजू के दो पलड़े


तराजू के दो पलड़े
करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान
रसरी आवत जात ते सिल पर परत निशान
वास्तव में आज हम समझ ही नहीं पा रहे क्या गलत क्या सही है ? जैसे लाल पीले छींटों में डूबा कैनवास सफेदी को छुपा देता है, उसी तरह गलत खबर को अनवर्तिता सच बना ही देती है ।
अभी कुछ समय पूर्व ऐसे ही एक वाकया हुआ ।होटल में काम करते दो छोटे बच्चों को देखकर उन पर अत्याचार हो रहा है, उनका शोषण हो रहा है, यह बाल मजदूरी है ।क्या सरकार ने आंखें बंद कर ली ? कहते हुए कई संस्थाओं ने सहायता हेतु आगे कदम बढ़ाएं ।सरकारी कार्यवाही शुरू हुई।
एक एक सेकंड की खबर फोटो सहित अखबारों में छपी ।टीवी पर साक्षात्कार हुआ ।चौबीस घंटे चलने वाले चैनलों ने अड़तालीस घंटे की स्पीड से, तिल का ताड़ बना दिया संस्थाओं के लिये शाबाशी के कसीदे भी पढ़ लिए ।
वहीं दूसरी तरफ सिने जगत की पाठशाला में,प्रतियोगिता निमित सुबह छह बजे से देर रात, अनियमित समय तक रीटेक पर रिटेक देते, थके हारे, टूटे फूटे बदन लिये, भूखे प्यासे मासूम बच्चे, जब अपना काम पूरा करते हैं तब अत्याचार शोषण की परिभाषाःःमेहनत लगन मे परिवर्तित हो गौरवशाली लगने लगती है।
उभरते कलाकारों का खिताब लेते ही यही संस्थाएं अखबार, मीडिया उनकी तारीफ के पुल बांधते हुये बीस बीस घंटे काम करने वालों को""परिश्रमी, कुशलः उभरते,कलाकार ""कहते हुऐ उपाधियों से नवाजती है उन्हे बडे़ मंच पर पर्दे पर सम्मानित किया जाता है क्यों?
क्या यह बाल मजदूरी नहीं ? दोनों ही तरफ अबोध बच्चे हैं ।दोनों ही अपनी मेहनत से पैसा कमा रहे हैं । दोनों के उद्देश्य एक हैं
सच्चा जीवन यश सम्मान आखिर हम किसे सच माने, एक अपराध दूसरा प्रोत्साहन।