उपहार
उपहार


सड़क पर चलते चलते राज रुक गया। सामने ठेले पर पड़ी पुस्तकों में जानी-पहचानी पुस्तक दिखी। उसकी लिखी पुस्तक थी जो अन्य पुस्तकों के साथ १५० रूपए किलो बिक रही थी, यह उसका लिखा ‘कहानी संग्रह’ था जिस पर उसने बड़ी आत्मीयता से मुखपृष्ठ पर अपनी दिवंगत माँ की तस्वीर छपवाई थी।
पुस्तक हाथ में लेकर मन ही मन उसने कहा, ‘अरे ये तो वही पुस्तक है जिसे पिछले महीने उसने अपने दोस्त कमल को जन्मदिन पर उपहार स्वरुप दी थी। उसने किताब खोल कर पढ़ने की तो क्या, पुस्तक पर चढ़े प्लास्टिक कवर तक को उतारना आवश्यक न समझा, आज ये पुस्तक यहाँ… रद्दी की दुकान पर … राज की आँखें नम हो आयीं।
उसने अपनी पुस्तक कबाड़ी वाले से खरीद ली और सीधा कमल के यहाँ जा पहुँचा।
राज के हाथ में पुस्तक देख कर कमल बोल पड़ा, “अरे, फिर एक किताब ले आये?”
“नहीं, जिस दोस्त के पास मेरे लिखे साहित्य को पढ़ने का समय नहीं, यह उसके लिए नहीं है, कम से कम पुस्तक के अंदर की सामग्री को न देखते, पर मेरी माँ का तो सम्मान किया होता जिनके दुःख भरे जीवन की सारी कहानियाँ मैंने इस पुस्तक में लिखीं हैं। जिससे दुनिया जान सके कि एक औरत को अपने जीवन में किन-किन कठिनाइयों से गुज़रना पड़ता है? फिर भी वह लड़ती रहती है परिस्थितियों से, जीती है अपने परिवार के लिए?”
कमल की आँखें शर्म से झुक गयीं। उसने किताब को लेने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि राज ने उससे कहा, “नहीं मित्र! अब यह पुस्तक देने के लिए नहीं, तुम्हें एहसास कराने के लिए लाया हूँ। इस पुस्तक पर मेरी माँ का चित्र है जिनके हाथ की रोटियाँ और लड्डू खाने के लिए तुम लालायित रहते थे। ”
कमल ने वह ‘कहानी संग्रह’ राज के हाथ से ले लिया और माँ की तस्वीर को अपने माथे से लगा कर चूम लिया।